जिंदगी की धूप छांव का गणित – डॉ. पारुल अग्रवाल

आज सिया बहुत खुश थी आज उसकी बेटी महक विदेश से अपनी रिसर्च पूरी करके आ रही थी। वो उसके आने की खुशी में तरह-तरह के पकवान बना रही थी पूरे घर में फिरकी की तरह से दौड़ भाग कर रही थी। उसे ऐसा लग रहा था कि आज उसका सपना पूरा हो गया हो।

असल में सिया ने अपने बचपन में बहुत दुख देखे थे। हुआ यूं था कि सिया को जन्म देते ही उसकी मां इस संसार से चली गई थी। पापा थे,पर वो भी मां के जाने के बाद जिंदगी से विरक्त से हो गए थे। वैसे पापा की नौकरी अच्छी थी, घर पर खाने-पीने की कोई दिक्कत नहीं थी पर संयुक्त परिवार था। 

चाचा-चाची, दादी सब एक साथ रहते थे। चाचा-चाची के खुद के तीन बच्चे थे तो किसी का भी ध्यान सिया की तरफ नहीं था। वैसे भी वो बिन मां की बच्ची थी,जिसके पिता ने भी कहीं ना कहीं उसकी किस्मत को ही मां की मौत का जिम्मेदार मान लिया था। वो ज्यादातर घर से बाहर ही रहते थे,जिससे सिया की शक्ल ही न देखनी पड़ी । इसी तरह समय बीत रहा था,छोटी सी सिया भूख लगने पर कई बार रोते-रोते अंगूठा चूसते ही सो जाती। कई बार दादी को उस पर बड़ा प्यार भी आता पर चाची के डर से वो कुछ नहीं कर पाती थी। एक तरह से सिया ने बिना किसी के साथ के खुद अपनेआप को पाला था। 

सिया ने ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई का सामना करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की। अब उसकी शादी की उम्र हो चली थी। वैसे तो उसके पापा को उससे कोई मतलब नहीं था पर दादी के बार-बार कहने पर उन्होंने सिया की शादी अपने बड़े अच्छे दोस्त के बेटे के साथ तय कर दी। शादी के समय भी उन्होंने दूर से ही सिया को आर्शीवाद देकर घर से विदा कर दिया। ससुराल में भी सिया के लिए कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं था। यहां भी उसकी सास और ननद का राज चलता था पर पति अच्छे थे। 



वैसे भी वो अपने घर से दूर नौकरी करते थे,सिया को उनके साथ ही रहना था। इस तरह सिया ने अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत की ।शादी के दो साल बाद वो मां बनने वाली थी। उसके पति और वो बहुत चाव से अपने पहले बच्चे का इंतजार कर रहे थे पर बच्चा पैदा होने के कुछ समय पहले वो घर की सीढियों से नीचे गिर गई। आनन फानन में उसको हॉस्पिटल ले जाया गया उसने बहुत सुंदर सी बेटी को जन्म दिया। 

डॉक्टर्स ने ये भी बोला कि किसी तरह मां-बेटी की जान बच गई पर गर्भाशय पर चोट के कारण सिया दोबारा मां नहीं बन पाएगी। इस पर उसकी सास को अपना वंश आगे न बढ़ पाने का बड़ा धक्का लगा। वो सिया को और उसकी बेटी को बहुत उल्टा सीधा बोलने लगी। उधर सिया ने जब बेटी को अपनी गोद में लिया तब उसको ऐसा लगा कि मानो उसकी ज़िंदगी के सारे अभाव दूर हो गए हों।

 पता नहीं बेटी को गोद में लेते ही सिया को कहां से इतनी हिम्मत आ गई कि उसने बहुत जोर से सबके सामने बोला कि मैं अपनी बेटी के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकती। जिसको भी मेरी बेटी के होने से दिक्कत है वो यहां से चला जाए।मेरी बेटी ही अब मेरे लिए सब कुछ है। जब में छोटी थी तो कोई भी मेरे को कुछ भी कहकर चला जाता था क्योंकि मेरी मां नहीं थी पर मेरी गुड़िया के साथ ऐसा नहीं होगा उसकी मां जिंदा है। 

यहां उसके पति ने भी मौन रहकर उसका साथ दिया। सिया को तो जैसे गुड़िया के आने से अपना बचपन वापिस मिल गया था। जिंदगी के सारे गम इस खुशी के आगे फीके पड़ गए थे। सिया ने प्यार से अपनी बेटी का नाम महक रखा क्योंकि उसके आने से पूरा घर महकने लगा था। महक भी बहुत प्यारी बेटी साबित हुई। कहने को तो वो सिया की बेटी थी पर सिया के थोड़ा सा भी बीमार पड़ने पर वो उसकी मां की तरह देखभाल करती थी। सिया के भगवान से सारे गिले शिकवे दूर हो गए थे। 

बेटी पढ़ाई में भी अच्छी थी। विदेश से उसको रिसर्च का प्रस्ताव मिला था। सिया और उसके पति ने दिल पर पत्थर रखकर महक को बाहर भेजा था। आज महक सिया की बगिया को महकाने पढ़कर वापिस आ रही थी। सिया तो अपने ख्यालों में ही खोई थी,इतने में कार के हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी। देखा तो सामने से महक आकर सिया के गले लग गई थी। सिया को आज जिंदगी की धूप-छांव का गणित अच्छे से समझ आ गया था। उसे लग गया था कि जीवन में कभी खुशी कभी गम का दौर चलता ही रहता है।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी,अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दीजियेगा। मेरा भी यही मानना है कि ऊपर वाला सबके साथ पूरा इंसाफ करने की कोशिश करता है। अगर ज़िंदगी में कभी गम आते हैं तो खुशियां भी आती हैं।

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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