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जिंदगी के धूप छांव ने एक मां को कितना रुलाया.. – निधि शर्मा 

अरे मम्मी आपने तो सोचा था कि लड़का अकेला है तो मेरी बेटी को ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं रहेगी। अब आपको भी क्या मालूम था कि अगर आपके दामाद को कभी जरूरत पड़ी तो उनके मां-बाप अपने ही बेटे की मदद नहीं कर पाएंगे, मम्मी मैं बता रही हूं इसी को घोर कलयुग कहते है।” नीतू फोन पर अपनी मां से बातें करते हुए अपने सास-ससुर को सुनाते हुए बोल रही थी। 

आंगन में बैठी नीतू की सास विमला जी अपने पति शर्मा जी से बोलीं “क्यों जी ये मैं क्या सुन रही हूं नितेश (बेटा) को पैसों की दिक्कत है और आप उसकी मदद नहीं कर रहे हैं.! एक ही तो हमारा बेटा है, बेटी को ले देकर सुखी संपन्न परिवार में ब्याही ताकि जीवन में कभी उसे दिक्कत का सामना ना करना पड़े। यहां तो मेरा ही बेटा दिक्कत में है और ये बात मुझे दूसरों से पता चल रही है।”

शर्मा जी अखबार पढ़ते हुए बोले “तुम्हारा बेटा कोई 12वीं की परीक्षा नहीं दे रहा जो से कोई परेशानी हो तो मैं उसकी मदद कर दूंगा। हट्टा कट्टा मुसंडा और एक बच्चे का बाप बन चुका है, मैं ठहरा रिटायर आदमी मैं क्या उसकी मदद करूंगा। क्या नीतेश ने तुमसे आकर अपनी परेशानी कहीं या पैसों की मदद मांगी है. ? तुम जिसकी बात सुनकर मुझे सुना रही हो उसको ज्ञान देने वाली के पास और कोई काम नहीं है तो तुम भी एक कान से सुनो और दूसरे कान से निकाल दो।”

विमला जी बोलीं “मानती हूं बहू की मां झूठ बोल रही होगी पर वो तो एक पत्नी है वो अपने पति के लिए क्यों झूठ बोलेगी.? हमारा बेटा ठहरा भोला वो खुद अपने मुंह से कभी नहीं कुछ मांगता, आपसे कुछ नहीं होगा आने दीजिए नितेश को मैं खुद पूछूंगी कि उसे क्या परेशानी है।”

शर्मा जी बोले “हां सब अपने बेटे को सीधा समझते हैं और बहू को खराब पर जब तक बेटा खराब नहीं होता कोई बहू खराब नहीं होती। जरूर तुम्हारे बेटे ने कुछ कहा होगा तभी तो बहू अपने मायके तक खबर पहुंचा रही है, तुम जैसी मांओं को बार बार ठोकर लगती है फिर भी वो कुछ नहीं सीख पाती। भाग्यवान मुझे माफ करो अब इन हड्डियों में पहले जैसी ताकत नहीं है कि मैं अपने खून पसीने की बची हुई कमाई से तुम्हारे सपूत को खुश रख सकूं।” इतना कहते हुए शर्मा जी हाथ में अखबार लेकर घर से बाहर निकल गए।

बेचारी मां बेटे के परेशानी की झूठी ही खबर से भी परेशान हो जाती तभी तो लोग कहते हैं मां का जी गाय का और पुत का जी कसाई का एक मां अपने बेटे के एक खुशी पर सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार रहती है पर बेटा आगे जाकर क्या करेगा इसकी कोई गारंटी नहीं रहती।



बरहाल समय बीता शाम हुई नितेश दुकान पर से लौटकर आया आते ही विमला जी नीतू को आवाज लगाई “बहू नितेश आ गया है इसके लिए चाय बना दो। आओ बेटा बैठो बाहर तो ठंडी हवा चल रही होगी अपना ध्यान रखा करो।”

 नितेश ने बैग रखा जूते मौजे खोलें और बैठते हुए बोला “मां बोलना बहुत आसान है बाहर जाकर काम करना पड़ेगा तब पता चले। पापा का क्या था दफ्तर में काम करते थे समय पर लौट आते थे, काम करें ना करें हर महीने तनख्वाह तो मिल ही जाती थी और आप उसी तनख्वाह से ऐश और आराम से रहती थीं। पर मेरे और मेरी पत्नी के साथ ये नहीं हो सकता, किसी महीने अच्छी कमाई होती है तो किसी महीने बहुत घाटा हो जाता है।”

थोड़ी देर में नीतू चाय और पानी लेकर आई और बोली “किसके सामने अपना दुखड़ा रो रहे हैं जिन्हें आपकी कोई परवाह ही नहीं है।” विमला जी बोलीं “बहु ऐसे क्यों कह रही हो..! तुम्हारा पति ये बाद में होगा पहले मेरा बेटा है, मुझसे ज्यादा इसकी प्रवाह कौन कर सकता है..?”

नीतू मुंह बनाते हुए बोली “अगर इतनी ही परवाह है बेटे की तो पूछिए ना क्यों नहीं रात में सो पाते हैं आखिर क्या परेशानी है।” इतना कहते भी नीतू वहां से चली गई विमला जी शर्मा जी की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रही थीं। शर्मा जी ने बिल्कुल भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि वे जानते थे की परेशानियों से ही सीखकर इंसान जीवन के धूप छांव से लड़ना सीखता और आगे बढ़ता है हर समय मां-बाप का सहारा लेना भी सही नहीं है।

मां को पिता की ओर देखते हुए नितेश बोला “मां क्यों उनकी तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखती हो वो मेरी कुछ मदद नहीं करेंगे। उन्हें लगता है जब वे जाएंगे तो सारे पैसे अपने साथ ले जाएंगे, दुनिया को दिखाने के लिए बस एक बेटा रखा पर जब संपत्ति से मदद की जा सकती है तो उस पर ताला लगा कर बैठे हैं।” इतना कहते हुए नितेश कहां से उठकर चला गया।

रात में विमला जी बड़े दुखी मन से शर्मा जी को बोलीं “क्यों नहीं आप उसकी मदद कर देते हैं। सच ही तो कहता है अरे वो कौन सा आपकी तरह नौकरी करता है, व्यापार में ऊपर नीचे तो लगा रहता है।” शर्मा जी हंसते हुए बोले “सही कह रही हो जब फायदा होता है तब वो आकर तुम्हें क्यों नहीं कहता कि मां इस बार व्यापार में बहुत फायदा हुआ है। जब भी कुछ घाटा होता है तभी वो तुम्हारे पास आकर क्यों रोता है कभी सोचा है इसके बारे में..?”

उस रोज तो विमला जी चुप हो गई पर आए दिन किसी न किसी बात पर वो शर्मा जी को बेटे की मदद के लिए कहती रहती थीं। एक रोज शर्मा जी बोले “विमला तुम समझ नहीं रही हो मेरे पास जितने भी पैसे थे उसकी पढ़ाई में मैंने लगा दिया। पढ़ाई तो उसने इंजीनियरिंग की थी परंतु अपने साले को देखा देखी उसने भी व्यापार शुरू किया, फिर व्यापार में भी मुझसे ही पैसे लगवाए..! अरे मैं कोई कुबेर का खजाना खोलकर नहीं रखा हूं आज हूं कल नहीं, पेंशन के थोड़े बहुत पैसे आते हैं जिससे मैं अपना और तुम्हारा खर्चा चलाता हूं अब तुम ही बताओ मैं मदद करूं तो कैसे करूं..?”



विमला जी ठहरी एक सीधी-सादी गृहिणी वो बेचारी इन सब चीजों को कहां समझती थीं। एक रोज फिर से बहू के ताने सुनकर वे बोलीं “बहू तुम जो अपने ससुर जी को इतना गलत समझती हो वो ऐसे नहीं हैं। आज तक तो उन्होंने ही मदद की अब तुम ही बताओ उनके पास जब कुछ है नहीं तो वो नितेश की मदद कैसे करेंगे।”

नीतू बोली “मम्मी जी आप दिल की बहुत भोली है। आपको क्या लगता है पापा जी के पास पैसे नहीं है, शहर में दूसरी जगह एक छोटी सी जमीन है जिसमें सब्जी का कारोबार होता है और हर महीने उसके आधे पैसे घर पर आते हैं। बताइए उन पैसों से होता ही क्या है अगर बेटे की मदद करने की इच्छा है तो उस जमीन को बेच दे और दे दे इनके हाथ में पैसे।”

कुछ रोज विमला जी सोचती रही कि कैसे शर्मा जी को इस बात के लिए मनाया जाए फिर एक रोज उन्होंने दोपहर का खाना नहीं खाया तो नीतू बोली “मम्मी जी खाना खा लीजिए वरना आपकी तबीयत खराब हो जाएगी। ऐसे ही आपका बेटा परेशान रहता है आपको इस तरह से देखकर और परेशान हो जाएगा।” ये बात जब शर्मा जी को पता चली तो बोले “विमला मैं तुम्हें भली भांति जानता हूं जरूर तुम्हारे दिमाग में कुछ चल रहा है, क्या कहना चाहती हो साफ-साफ कहो।”

जब विमला जी ने उस जमीन की बात छेड़ी तो शर्मा जी बोले “विमला बस वही जमीन का एक टुकड़ा है जो तुम्हारे नाम पर है। ये घर पहले ही मैंने नितेश के नाम कर दिया था जब उसे दोबारा व्यापार के लिए लोन लेने की जरूरत पड़ी थी। मैं जानता हूं मां अपना सब कुछ लुटाकर भी बच्चे को खुश देखना चाहती है पर क्या बच्चा बुढ़ापे की दुपहरिया में अपनी मां को वहीं छांव दे पाएगा..? कल को अगर कुछ उचनीच हो गई तो मैं इस उम्र में तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाऊंगा ये बात तुम क्यों नहीं समझती हो।”



विमला जी ने एक नहीं सुनी और आखिरकार शर्मा जी को पत्नी की बात माननी ही पड़ी। उन्होंने वो जमीन बेच दी पर कुछ पैसे किसी को बताए बिना अपनी पत्नी के लिए रख दिया। अब नितेश और उसकी पत्नी बहुत खुश थे और कुछ रोज सास-ससुर की खूब सेवा होती रही।

पैसों से मिली खुशी तो मौसम के धूप छांव की तरह होती है जो पल पल आती जाती रहती है, नितेश एक लापरवाह इंसान था एक दो साल व्यापार ठीक चला फिर से वही तंगी होने लगी। बेटे बहू को लगा कि अब इनके पास है क्या तो वो उनके साथ खराब व्यवहार करते, तब विमला जी की आंखों में आंसू बहता और अपने पति की बातें याद आती थी।

जब कभी विमला जी नितेश के सामने आंसू बहाती तो नितेश बड़ी बुरी तरह से उन्हें चार बातें सुनाता तब शर्मा जी कहते “बेटा कभी सोचा तुमने अपना सब कुछ लुटाकर भी मां कभी रोती क्यों नहीं और बेटे के एक अपशब्द से उसी मां के आंखें क्यों भीग जाती है.? जिस मां के आंसू तुम्हें पिघला नहीं सके कल वही आंसू तुम्हारी आंखों में भी उतरेंगे पर शायद उन्हें देखने के लिए तब हम नहीं होंगे।”

बेटे बहू ने मां बाप से मानो एक किनारा कर लिया था पर शर्मा जी ने अपने पति होने का धर्म आखिर तक निभाया। शायद आने वाली विपदा को वो पहले ही भांप चुके थे और उस वक्त उन्होंने कुछ पैसे रख लिए थे। पत्नी के तीमारदारी में उन्होंने कभी अपने बेटे के सामने हाथ नहीं फैलाया और आखिरी तक सम्मान के लिए जिए और उसी सम्मान के लिए दुनिया से चले गए।

दोस्तों एक मां कितनी तकलीफ सहकर एक बच्चे को जन्म देती है। बाद में वही बच्चे मां के दिल को चोट पहुंचाते फिर मलहम लगाते और फिर उसके टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं! क्या कभी वो ये नहीं सोचते कि मां सब कुछ देकर भी मुस्कुराती है और बच्चे सब कुछ पाकर भी मां को एक खुशी नहीं दे पाते।

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निधि शर्मा 

 

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