जिंदगी कभी धूप तो कभी छांव भी – ज्योति आहूजा

समीर और गौरी एक ऐसा जोड़ा जिन की मिसाल पूरा खानदान और सभी दोस्त दिया करते| इनकी शादी को दो साल हो चुके थे|  समीर बैंक में काम करता था और गौरी एक  होम  मेकर| खाना बनाने में माहिर थी  गौरी| कुछ चीजें तो वह इतनी टेस्टी बनाती कि समीर उंगलियां चाटता रह जाता| उसके बनाए खाने की तारीफ किए बिना नहीं रहता| बहुत प्यार से जिंदगी चल रही थी इनकी|

दोनों हर काम में एक दूसरे की रजामंदी लेते| इनकी इन्हीं बातों ने तो पूरे परिवार में इनकी अलग जगह बनाई हुई थी|

परंतु कुछ दिनों से समीर के स्वभाव में थोड़ा बदलाव देख गौरी को कुछ अजीब लगने लगा था| दरअसल इन दिनों  समीर के ऑफिस में  काम का जोर थोड़ा अधिक होने लगा था| टारगेट पूरे ना होने के कारण उसका तनाव बढ़ने लगा था जिस कारण से वह उन दिनों चिड़चिड़ा रहने लगा था| उसके करियर में ऐसा पहली बार हो रहा था| उसने कोशिश भी की कि ऑफिस की परेशानी घर तक ना आए| पर आखिर था तो इंसान ही ना| उसकी ये निराशा तनाव के रूप में उभर कर बाहर आ रही थी| वो  कहते है ना काम का असर कहीं ना कहीं घर पर भी होने लगता है| यही समीर साथ हो रहा था जो गौरी समझ नहीं पा रही थीं|और इधर समीर भी उसे कुछ नहीं बताना चाहता था!

 

एक दिन! गौरी! गौरी कहां हो? समीर ने गौरी को आवाज दी|

“क्या हुआ समीर? गौरी ने कहा|”

“तब समीर कहता है” मेरी अलमारी के कपड़े अपनी जगह पर क्यों नहीं है? ना ही रूमाल मिल रहा है| ना मोजे|

 

तुम ढ़ंग से क्यूं नहीं रखती हो?

इस बात पर गौरी कहती है| “हमेशा मैं ही तो रखती आई हू| जैसे पहले रखती थी वैसे ही अब रखे है| तुम्हारे सामने ही तो है| गौरी ने रूमाल निकालते हुए कहा|




“हां| ठीक है| रख दो| पर जरा ढ़ंग से रखा करो| समीर ने उसे टोकते हुए कहा|

“गौरी को समीर का यह अंदाज कि कोई गलती ना होते हुए भी उसे सुनने को मिल रहा है| कुछ पसंद नहीं आया|

 

फिर भी उसने कहा,” ठीक है”| और बात आई गई हो गई|

“अगले दिन फिर छोटी छोटी बातो पर समीर गौरी को टोकने लगा| जैसे कि” ये क्या पहन लिया? इसे बदल  लो| बाल ऐसे नहीं ऐसे बनाओ| वगैरह वगैरह|

इतने में  गौरी कहती है|  समीर इन कपड़ों में क्या बुराई है?पहले भी तो पहनती आई हू| अब अचानक से क्या हो गया?

 

तभी एकदम से  समीर कहता है| “हां ठीक है !कोई बात नहीं| पहने रखो| तुम्हारी जैसी मर्जी|

“लेकिन पति के कहे हुए इन शब्दों के बाद एक पत्नी का मन कैसे माने? यह सोच कर गौरी ने कपड़े बदल लिए|

फिर तो ऑफिस से घर पहुंचते ही रोज थोड़ी देर बाद समीर किसी ना किसी बात पर टोक लगा ही देता| उदाहरण के तौर पर क्या बात आज घर की सफाई नहीं हुई| यह बाथरूम इतना गीला कैसे है? इसे तुम साफ क्यों नहीं रखती हो! वगैरा-वगैरा| भले ही घर साफ ही क्यों ना हो| फिर भी कुछ ना कुछ कह ही देता|

समीर इस अजीब स्वभाव  की वजह से  गौरी सोच में पड़ जाती कि अचानक से क्या हो गया है|




 समीर की इस टोकने वाली आदत से धीरे धीरे गौरी मन में उदासीनता छा रही थी| वह समीर से दूर दूर रहने लगी थी|

 

एक दिन  उसने बोला” क्या बात समीर? तुम पहले से बदल गए हो| 2 साल हो गए हमारी शादी को| तुमने कभी भी मुझे किसी बात पर नहीं टोका|

अब तुम दिन में एक या दो बार किसी न किसी काम में मेरी कमी निकालते हो या मुझे टोक ही देते हो| मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता| कभी कपड़ों को लेकर| कभी खाने को लेकर| घर के कामों को लेकर किसी ना किसी बात पर टोकते ही रहते हो| पहले तो तुम ऐसे नहीं थे|

इस पर  समीर ने कहा| “पहले जैसा ही  तो हू| तुम्हे ज्यादा ही कुछ महसूस हो रहा है|

“इसी तरह से कई दिन निकलते रहे| और गौरी जो अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी| उनकी आंखों का तारा थी| जिसे कभी उसके माता-पिता ने कुछ ना कहा हो| और शादी के बाद पति भी ऐसा मिले जो पलकों पर बिठा कर रखे उसकी हर इच्छा का सम्मान करें| उसकी तारीफ करें| एकदम से यदि उसमें बदलाव आ जाए तो कहां से वह इसे बर्दाश्त करती|

“कुछ दिन तो थोड़ा बर्दाश्त करना संभव है| परंतु यदि छोटी-छोटी बातों पर टोका टाकी सुनने को मिले तो वह इंसान ज्यादा दिन तक बर्दाश्त नहीं कर पाता| ऐसा ही कुछ  गौरी के साथ हो रहा था|

“एक दिन जब बहुत अति हो गई| जिस वजह से गौरी के मन में इतना रोष पैदा हो गया कि उसने समीर का घर छोड़ अपने माता-पिता के घर जाना उचित समझा| एक स्त्री के मन का रोष उसकी मां के सिवाय कौन जान सकता है| यह सोच कर वह अपनी मां के घर आ गई|

 

घर पहुंचते ही मां शीला जी ने पूछा,” क्या हुआ गौरी? इतनी उदास क्यों लग रही हो?कुछ हुआ क्या बेटा|

कुछ नहीं मां| बहुत समय हो गया था ना| आप से मिली नहीं थी तो सोचा थोड़े दिन आपके यहां रहने आ जाऊं|

 

खाने की मेज पर भी गौरी ने ढंग से खाना नहीं खाया तब उसकी मम्मी ने फिर पूछा| “क्या हुआ बेटी ?तुम खाना भी नहीं खा रही हो| तुम्हारी तबीयत तो ठीक है|

हां मम्मी!मेरी तबीयत ठीक है| आज थोड़ा भूख नहीं है| ऐसा कहकर  गौरी अपने कमरे में चली गई|

अगले दिन भी वह  गुमसुम बैठी हुई थी| किसी काम में मन नहीं था| होता भी कैसे? पहली बार इस तरह से पति से नाराज होकर मायके जो आ गई थी|

मन ही मन अपने से कहती| “यह भी भला कोई बात हुई हर बात में टोकना| कमी निकालना| ऐसे मैं कब तक बर्दाश्त करूंगी? इन 2 सालों में कभी ऐसा नहीं हुआ| मैं नहीं सह पा रही हूं| मैंने सही किया जो मैं यहां आ गई| अब थोड़े दिन अकेले रहेंगे तब अकल आएगी|




दो-तीन दिन निकल गए| जैसे ही कोई फोन की घंटी बजती|  गौरी तुरंत फोन उठाने भागती| यह सोच कर कि जरूर समीर का फोन होगा| आखिर प्रेम जो करती थी उससे| पर दोनों का अहम इस बार आड़े आ रहा था| ना  समीर ने फोन किया| और ना ही नाराजगी के चलते गौरी ने|

 

उधर दफ्तर से घर आते ही समीर को जब खाली घर मिलता| घर पर कोई रौनक नहीं| कोई चूड़ियों की खनखनाहट नहीं| पर उसका अहम भी इस बार कुछ बड़ा ही था| वह भी मन ही मन सोच रहा था| ” मै क्यों मनाऊ| ऐसा मैंने क्या किया| जरा सा टोकना इतना बुरा लग गया कि घर छोड़कर बिना बताए चली गई चाबियां पड़ोसी को देकर| मेरा इंतजार भी नहीं किया| मैं फोन नहीं करूंगा|

 

पर ना इधर ना उधर| किसी के  मन को चैन नहीं था|

 गौरी की मां भी महसूस कर रही थी कि जब भी  गौरी पहले घर रहने आती  थी तब भी उनसे और अपने पापा से कम बात करती और पति समीर से फोन पर लगी रहती| पर इस बार कई दिन होने को आए| ना ही उसका कोई फोन आया ना ही इसने किया| कुछ तो बात है|

जब उन्होंने गौरी से पूछा तब गौरी ने तुरंत पूरी बात बता ही दी| ये सब सुनकर मा, बेटी गौरी लेकर अपने घर के पीछे के बगीचे में ले जाती है और एक फूल तोड़ने को कहती है| जैसे ही गौरी फूल तोड़ने लगती है एक कांटा उसके चुभ जाता है|

तब मा शीला जी बेटी को समझाते हुए कहती है| “देखो बेटी| ये जो फूल है ये तुम दोनों के प्यार की भांति खिल खिला रहे है| और ये कांटे उस टोक की तरह जिसने तुम्हारे मन को थोड़ा पीड़ित कर दिया| जिस प्रकार फूलों के साथ कांटे होते है| उसी प्रकार दाम्पत्य जीवन में प्रेम रूपी फूलों के साथ थोड़ी टोक या कामों में कमी निकालना या बुराई कर देना रूपी कांटे भी होते है| इससे फूल की खुशबू क्या कम हो जाती है?नहीं ना|

तो हम  फिर इन कांटो से क्यों घबरा रहे है?ये तो बहुत  छोटी बातें है| जीवन में बहुत कुछ देखना पड़ता है| जिंदगी कभी सूरज की चमकती रोशनी( खुशी) तो कभी  काली अंधेरी रात( गम) के समान होती है! और तुम्हारे  केस में तो यह बहुत बहुत छोटी बात है!अब अपने पापा को ही देख ले| वो भी कुछ कम नहीं है| फिर भी क्या मै नाराज होकर कभी गई| कभी सुन लेते है और कभी प्यार प्यार से सुना देते है| हर समय सब कुछ अच्छा अच्छा हमारे मन मुताबिक हो ऐसा भी नहीं होता| और तुम भी  समीर को टोक दिया करो| “ऐसे नहीं ऐसे करो| ये नहीं वो करो| और हिसाब बराबर| मां ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा|

 

“अपने आप  समीर को अहसास होगा| ऐसे रुष्ट नहीं होते| घबराते नहीं है| वैसे भी बेटी समीर तुझसे बहुत  प्यार करता है| तेरी हर इच्छा को पूरा करता है| इतना तक कि तू उसी में रम गई और हमें भूल गई| जिससे मै बहुत खुश हूं| बेटियां सुखी रहे| उनकी शीतल पवन के झोंके दूर तक मा बाप को शीतलता दे ते रहे| मा बाप को और क्या चाहिए| और तुम दोनों के प्यार की मिसाल तो सब परिवार दोस्त देते है| तुम उनके लिए आदर्श हो| मैंने तुम्हे ऐसे संस्कार नहीं दिए| तुम तो अच्छी बेटी हो|




“और हो सकता है इन दिनों वो ऑफिस में परेशान चल रहा हो| किसी से उसकी कोई बात हो गई हो| जिस कारण से उसके स्वभाव में फर्क आ गया हो| हो जाता है कभी कभी ऐसा| क्या तुमने पूछा उससे?और तुम चिंता मत करो| सब जल्दी है ठीक हो जाएगा|

मां की इन प्यार भरी बातो से बेटी  गौरी की आंखो में आंसू आ गए|

उसने रोते हुए मां से कहा| “हां मम्मी| मैंने पूछा था| पर  ढ़ंग से उन्होंने कुछ नहीं कहा|

और इन सब रोज की बातो की वजह से मैं बहुत रोष में थी और आपके पास चली आई| शायद मुझे ऐसे यहां नहीं आना चाहिए था| मुझे पहले कम से कम आपसे फोन पर ही बात कर लेनी चाहिए थी|

“ऐसे रोते नहीं बेटी| तू समझ गई ये ही बहुत बड़ी बात है| चल अब आंसू पोंछ और समीर फोन लगा| मै जरा तेरे पापा को चाय बना कर देती हू| मां ने बेटी को कहा|

 

“माँ के जाने के बाद जैसे ही समीर को फोन लगाने लगती है| उसके फोन में घंटी बजती है| वह समीर का ही फोन होता है| दो घंटी में ही  गौरी फोन उठा लेती है|

“हेलो, समीर बोल रहा हू| उसकी आवाज सुनते ही गौरी की आंखो में अश्रु की धारा बहने लगती है|

तभी समीर प्यार से कहता है| “मेरी प्यारी पत्नी! तेरे राजमा चावल बहुत याद आते हैं| कब आ रही है खिलाने? आई मिस यू मेरी मटको (प्यार का नाम)| जल्दी आ जा| तेरे बिना ये घर घर नहीं मकान है| तू ही इस छोटे से आशियाने की शान है| ऐसे नाराज़ नहीं होते मेरी जान| कल मैंने छुट्टी ली है दफ्तर से| तुझे लेने आ रहा हूं, तैयार रहना| आगे से ध्यान रखूंगा कि तुझे कुछ ऐसा ना कहूं कि तुझे दुख हो| इन दिनों थोड़ा काम का जोर ज्यादा था दिमाग भी थोड़ा शांत नहीं था| तो बात बात पर तुझे कुछ ना कुछ कह बैठा|  शायद स्ट्रेस लेवल  ज्यादा हाई  था!प्यार में खींचा तानी तो चलती रहती है तो घर छोड़कर थोड़े ही जाते है| खैर, अब तो माफ़ कर दे| माफी मांग रहा है तेरा पति तुझसे|

पति के ये सब शब्द सुनते ही  गौरी की आंखों में मुस्कान के साथ साथ अश्रु की धार मोती बनकर टपकने लगती है| वो तुरंत हां कह देती है| और गुस्से में आकर मायके बिना बताए आने के लिए वह माफी भी मांगती है| और आगे से ऐसा कभी नहीं करेगी उसके लिए वायदा भी करती है|

और फोन रख कर तुरंत पैकिंग करने खुशी खुशी कमरे में भाग आती है|

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी?

इंतजार में|

ज्योति आहूजा

 

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