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जिन्दगी धूप-छांव की तरह है!!! – अर्पणा जायसवाल

“नहीं, ये नहीं हो सकता… मैं अपनी बेटी किसी को नहीं दूंगी” सारिका ने अपनी तीन महीने की बेटी को छाती से जोर से चिपका लिया और अपने कमरे में जाकर जल्दी से दरवाजा बंद कर लिया।

“सारिका बहू! बाहर आओ! दरवाजा खोलो! हम जो कुछ भी कर रहे तुम्हारे भले के लिए कर रहे। जब विनय था तब बात अलग थी लेकिन अब तुम उसकी विधवा हो! सारा जीवन यूं कैसे बीतेगा? इसलिये हम सभी का कहना मान लो और गुनगुन को विकास और रीमा की गोदी में डाल दो” सास माधुरी जी बहुत गुस्से से सारिका को समझा रही थी।

सारिका ने कोई जबाब नहीं दिया… अंदर से उसके सिसकने की आवाज साफ सुनायी दे रही थी।

अंदर सारिका गुनगुन को प्यार से निहारते हुए बोली, “नहीं, कभी भी नहीं… कोई कुछ भी कहे, कोई कितने भी ताने मारे लेकिन मैं अपनी बेटी को खुद से जुदा कभी नहीं करूंगी। अब मेरे जीने का सिर्फ तू ही सहारा है। तुझमें विनय का अक्स है। एक पल के लिए भी तुझे खुद से दूर नहीं करूंगी।” तभी गुनगुन रोने लगती है सारिका उसे आंचल में छुपाकर फीड कराने लगती है और मातृत्व के सुखद अहसास से भीग जाती है और साथ ही उसकी पिछ्ली जिन्दगी चलचित्र की तरह उसके मानस पटल पर घूमने लगती है।

दो साल पहले विनय की दुल्हन बनकर सारिका ने ससुराल में कदम रखा। शादी के दूसरे दिन ही उसे अहसास हो गया कि बहुत कठिन है डगर पनघट (ससुराल) की… सासू जी ने उसे सिर्फ विनय की जिद की वजह से छोटी बहू के रुप में स्वीकार किया था। विनय सारिका से एक दोस्त की पार्टी में मिला था। भीड़ से अलग सांवली सलोनी सारिका को देखते ही विनय अपना दिल हार बैठा।

फिर विनय ने सारिका की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और मुलाकातों का सिलसिला शुरु हुआ और एक दिन विनय ने सारिका से उसे शादी के लिए प्रपोज कर दिया। सारिका ने विनय से कहा कि वो शादी तभी करेगी जब हमारी फैमिली इस रिश्ते को स्वीकार करेगी। सारिका के मम्मी-पापा इस रिश्ते के लिए मान गए लेकिन माधुरी जी ने साफ मना कर दिया क्योंकि उनकी पसंद की लड़की उनके लिए सौगातों से भरी बड़ी कार के साथ आ रही थी। लेकिन विनय की शादी ना करने की जिद ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वो सारिका को अपनी छोटी बहू के रुप में स्वीकार करे।




माधुरी जी के साथ सारिका का जीवन बहुत आसान नहीं था लेकिन विनय के प्यार की छांव में सारिका सब सह लेती थी।

फिर जल्दी ही उसकी प्रेगनेंसी की खबर ने उसकी जिंदगी में खुशनुमा अहसास ले आया। दादी बनने की चाह लिए माधुरी जी का भी रवैया सारिका के प्रति नम्र हो गया क्योंकि उनकी बड़ी बहू रीमा शादी के आठ साल बीत जाने पर भी उन्हें यह सुख नहीं दे सकी।

बेटी गुनगुन के आते ही सारिका की झोली में खुशियों की बहार आ गयी। माधुरी जी ने भी उसे अब छोटी बहू का मान देना शुरु कर दिया। लेकिन खुशियों को बहुत जल्दी ही नज़र लग गयी। एक सड़क दुर्घटना में विनय की अचानक मौत ने उसकी जिन्दगी का रूख ही बदल दिया। ससुराल में सभी का रवैया बदल गया। माधुरी जी सारिका को विनय के लिए अपशगुनी और मनहूस बोलने लगी।विनय के अंतिम संस्कार के बाद माधुरी जी ने सारिका की मम्मी से कहा, “ले जाईए अपनी मनहूस बेटी को और आज के बाद मैं उसका साया ना अपने घर पर और ना गुनगुन पर पड़ने दूंगी। आज और अभी से गुनगुन के मम्मी-पापा मेरे बड़े बेटे और बहू विकास और रीमा होंगे। अपनी बेटी से कहिए कि हमारी गुनगुन को हमें सौंपकर आपके साथ चली जाए और एक नयी जिंदगी की शुरुआत करे।”




माधुरी जी के मंसूबों को जानते ही सारिका ने गुनगुन के साथ खुद को कमरे में बंद कर लिया और अब बाहर नहीं आना चाहती ।

“माफ कीजिएगा समधन जी! इस घर के हालात और आप सभी की नीयत देख कर हम लोग सारिका के साथ गुनगुन को भी अपने साथ ले जा रहे। नियति ने उसके साथ बहुत बुरा किया। विनय को उसने अपनी जिंदगी से हमेशा के लिए खो दिया और अब आप लोग विनय की आखिरी निशानी भी उससे छिनना चाहते है। गुनगुन पर आप सभी का अधिकार है लेकिन एक दादी, एक बड़े पापा-मम्मी की हैसियत से। इस रिश्ते से अगर आप उससे मिलने आएंगे तो हम मिलने देंगे। वरना आप लोग सारिका के साथ गुनगुन को भी भूल जाईये। एक मां का स्पर्श बच्चे के लिए बहुत जरुरी है और यह स्पर्श मैं सारिका से कभी नहीं छीन सकती।”

सारिका की मां दीपा जी ने उसका साथ दिया और साथ ही उसे आश्वासन दिया कि मां-बेटी को कोई अलग नहीं करेगा। सभी की इच्छा के विरुद्ध जाकर दीपा जी सारिका और दीपा को अपने साथ ले आई। सारिका ने भी अपने आंसुओं को पोछा और अकेली ही अपनी बेटी के साथ दुनिया से लड़ने को तैयार हो गयी क्योंकि वो जानती है कि जिंदगी धूप-छांव की तरह है।

स्वरचित,

अर्पणा जायसवाल

#कभी धूप_कभी छांव

 

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