ये रिश्ते हैं अनमोल से कुछ नाज़ुक से बेमोल से – कुमुद मोहन 

आज अम्मा जी के पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे! उनके बेटे राकेश  और बहू मीरा के ब्याह के बाद पहली बार उनकी बेटी कुसुम  अपने तीन साल के बेटे सोनू के साथ जो आ रही थी।

अम्मा जी सुबह से नहा धो कर पलंग पर बैठी हिदायतों पर हिदायतें दिये जा रहीं थी! मीरा वैसे ही परेशान थी क्योंकि काम वाली बाई दो दिन के लिए गांव गई हुई थी!

मीरा काम कर रही थी और अम्मा जी का प्रवचन धारावाहिक की तरह चालू था “भई!  मेरी तो एक ही छोरी है ,बड़े नाज्जों से पाला मैंने उसे,कोई कमी ना होने दी ध्यान रखियो कोई बात ऐसी ना हो जावे जो उसे बुरा लग जावे! हमारे घर में हमेशा उसी की चली है और राकेश  के लिए तो उसकी कही हर बात चाहे सही हो या गलत पत्थर की लकीर है। दो दिन को आऐगी आराम करेगी अपने साथ-साथ चूल्हे चौके मे मत लगा लियो।

और जो साड़ियां तेरी मम्मी ने कुसुम  को दी थीं वे थोड़ी हल्की थीं उनके बदले में  तू ऐसा करियो उसे अपनी साड़ियों में से छंटवा दीजो।

एक बात का और ध्यान रखियो अगर उसे तेरी कोई चीज पसंद आ जावे तो मुँह मत बनईयो दे दीजो! ननद का तो पूरा हक होवै भाई-भौजाई के घर और सामान पै।

वैसे तो उसे अपने घर में किसी चीज की कमी ना है पर मैके के समान की दूसरी ही बात हुआ करै। “हमारे दामाद और कुसुम  के सास ससुर तो उसे इतना चाहवैं कि क्या बताऊं?

मीरा सोचने लगी कुसुम  जीजी से शादी में मुलाकात हुई थी वो तो बड़ी सुलझी हुई लगीं पर अम्मा जी की बातें सुनकर मीरा डर गई उसे लगा कुसुम  पता नहीं कैसे मिजाज की है भला अम्मा जी अपनी बेटी के बारे में झूठ थोड़े ही बोलेंगी।

कुसुम  आई मीरा ने देखा वो उसके लिए बहुत अच्छा सामान लाई थी। भाभी भाभी कहते उसका मुंह नहीं थक रहा था। मीरा द्वारा सजाऐ घर की, खाने की उसने तहेदिल से तारीफ की। अम्मा जी बार बार कुसुम  को अपने कमरे में चलने को कह रहीं थी पर कुसुम  मीरा के साथ साथ किचन में लगी रही मीरा अम्मा जी के डर के मारे बार बार उसे कमरे में जाने को कह रही थी।

सबने खूब मजे से खाना खाया।

रात को अम्मा जी कुसुम  को लेकर अपने कमरे में लेटीं तो कहने लगीं”ज्यादा सिर चढ़ाने की जरूरत नहीं है अभी कल की ब्याही आई है! बहुत तारीफ करोगी तो कल को तुम्हें ही कुछ ना समझेगी


दो दिन को आई है भाभी से सेवा करा”

अगले दिन मीरा ने अपनी अलमारी कुसुम  के आगे खोल दी कि जो उसे पसंद हो ले ले! उसने बता दिया कि शायद कुसुम  को शादी में मिली साड़ियां पसंद नहीं आई थी। कुसुम  ने पूछा “ये किसने कह दिया,मुझे तो सब साड़ियां और सामान बहुत पसंद आया था ,देखो मैं वही साड़ियां यहाँ पहनने को लाई हूं यह सोचकर कि तुम्हें अच्छा लगेगा। कुसुम  समझ गई कि यह लगाई-बुझाई अम्मा के लालची दिमाग की उपज है।

कुसुम  ने जब मीरा के और सामान की तारीफ कि तो मीरा ने फौरन कहा कि वो जो भी पसंद हो ले ले।

पर कुसुम  ने कहा कि तुम और तुम्हारा सब अच्छा है उसका यह मतलब नहीं कि वह सब ले लेगी,सबसे अच्छी तो तुम मिली जो रिश्तों के मायने जानती है उन्हें निभाना जानती है”।

कुसुम  ने मीरा को समझाया कि अम्मा दिल की बुरी नहीं हैं उन्होंने कमी में दिन गुजारें हैं इसलिए थोड़ी सैल्फिश हो जाती हैं।

 

“अम्मा के कहने से हमारे-तुम्हारे रिश्ते में दरार नहीं आनी चाहिए। मायका मां से होता है और मां-बाप के बाद भाई-भाभी से। तुम चिन्ता मत करो मैं अम्मा को समझा दूंगी।कोई भी बात हो मन में मत रखना तुम मेरी भाभी ही नहीं मेरी बहन जैसी हो ,मुझसे कभी भी कुछ भी कह सकती हो। छोटी छोटी बातों को दिल पर मत लेना।

मीरा समझ गई कि कुसुम  को रिश्तों को संभाल कर रखना आता है इसीलिए उसका अपने मायके और ससुराल में इतना मान है।

रिश्ते नाजुक हैं कांच से टूट कर ना बिखर जाऐं कहीं

कोई रिश्ता बेवजह रूठ ना जाए कहीं

रिश्तों की डोर इतनी भी ना खींचो कि दरक जाऐ!

और उसमें पड़ी गिरह का दर्द उम्र भर सताऐ

 

दोस्तों

रिश्ते बन तो जाते हैं पर उन्हें अच्छी तरह निभाना और संभाल कर रखना हर किसी को नहीं आता।जरूरत है सब्र,बर्दाश्त और समझदारी की।

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कुमुद मोहन

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