ये प्रेम भरे उपहार ही हैॅ..मेरे सच्चे श्रृंगार – मनीषा मारु….
- Betiyan Team
- 0
- on Feb 11, 2023
“अरे मीना मेरी साड़ी ड्राई क्लीन से आ गई क्या?” सीमा जी ने आवाज लगाते हुए अपनी बहू मीना को पूछा|
मीना- “नहीं मम्मी जी,….”अभी नहीं आई।
सीमा जी.…. मीना आके देख जरा, मंजू की बहू की मुंह दिखाई है, कैसी सारी ठीक लगेगी।
“मम्मी जी ऐसा कीजिए यह पिंक वाली साड़ी अच्छी लगेगी यह पहन लीजिए”।
नहीं बहू यह तो हल्की लगेगी, दूसरी बता।
वैसे मम्मी जी यह ग्रीन वाली पहन लीजिए ये भी अच्छी लगेगी।
हां यह सही लगेगी, ना हल्की ना भारी।
ठीक है मम्मी जी ,आप तैयार होइए मैं जरा दूध चढ़ा कर आई थी ,किचन में उसको संभालती हूं।
हां ..हां ठीक है, तुम किचन में जाओ।
थोड़ी देर बाद सीमा जी तैयार होकर आती है, देखो तो बहू सब ठीक है ना।
हां मम्मी जी, बिल्कुल सब अच्छा लग रहा है लेकिन आपकी सेट मैच नहीं कर रही।
“कोई बात नहीं बहू, ठीक ही लग रही है, सब मुझे ही थोड़े देखेगे।”
“इतना सुन मीना बोल उठती है ,आपको तो नहीं देखेंगे, लेकिन मीना की सांस को सब जरूर निहारेगे।”
जरा रुकिए में अपनी सेट लाती हूं….
मीना अपनी सेट लाके मम्मी जी को देते हुए कहती है ये दीजिए मम्मी जी….. अब यह मेरे किस काम की… और आंखों से आंसू धारा बह जाती हैं।
मीना ,,,,,मत भूलो कि तुम एक शहीद की,,, एक वीर,,,,, की पत्नी हो और मैं उसकी मां।।
सीमा जी ने अपना ही दिल कठोर करते हुए, अपनी बहू को हमेशा की तरह हौसला दिया।
जी मम्मी जी ,एक पल के लिए मैं भाव विभोर हो गई थी।
आगे से ऐसा एहसास नहीं कराऊंगी आपको।
मीना बेटी ,एहसास तो मुझे भी है,, जो तुम्हारे साथ गुजर रहा है, हर एक लम्हा।
” लेकिन वीर और शहीद की पत्नी की तरह तुम्हें लड़कर , हर लम्हों का मुकाबला करना है”
अच्छा मीना ,अब मैं पड़ोस में मंजू के यहां हो कर आती हूं।जी मम्मी जी।
मीना को सालभर भी नहीं हुआ था, कि उनके पति “श्री वीरेंद्र सिंह प्रताप” देश के लिए लड़ते समय शहीद हो गए थे।
कुछ दिनों बाद मीना का पहला जन्मदिन आया।
“सीमा जी सोच रही थी, अब कैसे इसकी उदासी को, मैं आज के दिन दूर करूं ?”
“बातें करने से तो, सिर्फ अश्रु धारा ही बहेगी।”
“कुछ उपाय सोचती हूं, मेरी बच्ची को खुश करने के लिए, ऐसा अपने आप से कहा।”
ऐसा सोच ,उन्होंने अपनी समधन( मीना की मम्मी) से बात की और उनसे मीना की पुरानी सारी तस्वीरें बचपन की मंगवाई।
इधर सीमा जी के पास भी अपने शहीद पुत्र के जो लम्हे तस्वीरों में कैद थे, उनको बक्से में से निकाल और फूट-फूट कर रोने लगी।
फिर दूसरे ही क्षण जल्दी से अपने आप को संभाला।
कुछ एक खास जनों को बुलाया ,मीना के जन्मदिन वाली शाम को … हालांकि मीना को इस बात का आभास भी ना था।
सब को देख कर मीना आश्चर्य करने लगी ,उसमें कुछ सदस्य उसके मायके से भी थे।
फिर अपनी सासू मां की ओर देखकर, सब समझ गई, कि यह सब उनकी मम्मी जी ने ही किया है।
मीना, जैसे ही सीमा जी के पास आने लगी ,की सीमा जी ने स्वयं से दूर रखने के कारण ,दूर से ही मीना को कहा जा बेटा किचन में सब खाने का सामान रखा हुआ है,उसको बाहर डाइनिंग पर रख दे।
आए हुए सभी मेहमानों ने मीना को बधाई दी और कुछ ने उपहार भी दिया। थोड़ी देर बाद सब ने बातचीत के उपरांत खाना खाया और फिर पुनः बधाई देते हुए विदाई ली।
सब के जाने के बाद मीना ने सीमा जी को झुककर प्रणाम किया और कहां मां, क्या जरूरत थी इतना सब कुछ करने की। जन्मदिन ही तो था मेरा!
“सीमा जी ने कहा, अब लोग तुम्हारे जन्मदिन से नहीं सीमा की बहू के नाम से जानते हैं तुम्हें।”
अभी अभी तुमने, मम्मी जी से मां कहां है मुझे… इतना कहकर,,,,, सीमा जी मीना को गले से लगा लेती है एक बच्ची की तरह।
दोनों के हृदय प्रेम से ओतप्रोत और आंखों से आंसुओं की बरसात होने लगती है।
फिर सीमा जी अपनी बहू मीना को अपने रूम में ले जाती है ।
“धीरे से अपना बक्सा खोल, अपने शहीद पुत्र की जितनी भी निशानियां थी, उनके पास और जितनी भी लम्हे कैद थे पुरानी तस्वीरों में वह सब मीना को सौंप देती है ।”
“साथ ही उसके बचपन की वह सारी तस्वीरें भी ,जो उन्होंने अपनी समधन से मंगाई थी।”
“और कहती है ,बेटा यह निशानियां यह हर एक लम्हा ही अब हमारे जीने का सहारा हैं।”
“जीवन का सबसे बड़ा दर्द भी देती है ये निशानिया और आगे बढ़ने का हौसला भी हमें इन्हीं से आता है ।”
निशानियां और तस्वीरों को हाथ में लेकर एकटक देखती है,,,,,, निहारती है,,,, और कहती है कि “मां “अब ये प्रेम भरे उपहार ही है, मेरे सच्चे श्रृंगार।
जो मुझे हर वक्त यह प्रेरणा देंगे ,कि मैं एक शहीद की पत्नी हूं, और मुझे लड़ कर , हार कर भी, हर कदम पर हर लम्हा को जीतकर आगे बढ़ना है।
तो दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी ये कहानी ,,,
अपने विचार जरूर दीजिएगा।
आपकी दोस्त
मनीषा मारु….