ये है ज़िन्दगी  – मीनाक्षी सिंह

एक बार मैं अपने पतिदेव और दो बच्चों (5साल का बेटा अनय और 2 साल की बेटी अनिका ) के साथ ट्रैन की य़ात्रा कर रही थी ! कुछ ऐसी ईमरजेंसी थी कि उस दिन हमें स्लीपर से जाना पड़ा ! वैसे ज्यादातर एसी का ही सफर करते हैँ ! ये मैं इसलिये बता रही और क्यूंकी जिस वाकया का ज़िक्र मैं करने जा रही हूँ वो अमूनन एसी कोच में देखने को नहीं मिलता ! खैर मै,पतिदेव बच्चें आकर अपनी सीट पर बैठ गए !

सभी इस बात से वाकिफ हैँ कहने को स्लीपर होता हैँ पर हाल जनरल बोगी जैसा ही होता हैँ ! कोई भी आकर जगह देखकर बैठ जाता हैँ ! तभी एक औरत अपने पति ,चार बच्चों के साथ,बच्चों की उम्र लगभग  8 साल ,6 साल ,4 साल ,2 साल की लग रही होगी ,हमारे सामने वाली सीट पर आकर बैठ गयी ! वो सीट खाली थी इसलिये उन्होने बैठने में एक मिनट की भी देरी नहीं की क्यूंकी अगले स्टेशन से भीड़ बढ़ने वाली थी ! देखने में कोई मजदूर परिवार लग रहा था !

मैने खाना निकाला ! बेटे ने कहा मम्मा पूड़ी ठंडी हो गयी हैँ ,मैं नहीं खा रहा ! मैं पूड़ी ,आलू मटर की सब्जी ,अचार,स्नेक्स  सब कुछ तरीने से रखकर ले गयी थी ! बेटे के मना करने के बाद भी मैने उसे बहलाकर एक पूड़ी खिला दी ! बेटी को भी थोड़ी सी !




तभी मेरा ध्यान उस मजदूर औरत पर गया ! उसका बच्चा खाना खिलाने की ज़िद कर रहा था ! तभी उसके सभी बच्चें खाना खिलाने की ज़िद करने लगे ! उसने एक गंदी सी पन्नी निकाली ज़िसमे कागज में पूड़ी लपेटी थी ,साथ में शायद कोई सब्जी थी ! सब बच्चों को बारी बारी से मैले हाथों से खिलाने लगी ! मैले इसलिये क्यूंकी उस से कुछ समय पहले ही उसके बच्चें ने टोयलेट कर ली थी ! उसने उसकी नेकर उतारी और बिना  हाथ धुले बैठी रही ! सब बच्चें बड़े मन से खाना खा रहे थे ! पता नहीं कितनी पूड़ी खां गए होंगे ,गिनती करना मुश्किल था !

तभी उसकी बड़ी बेटी बोली -मईयो ,साग तो खराब होगो हैँ ! बदबू आ रही ! वो मजदूरीन ने सूँघा ,उसे भी शायद लगा कि खराब हैँ ! पर बच्चों की ज़िद के कारण उसने खराब सब्जी से ही दो चार पूड़ी और खिला दी उन्हे ! मैने अपने पतिदेव से कहा – हम हाईजीन का इतना ध्यान रखते हैँ ,अच्छे से अच्छा बनाते हैँ बच्चों के लिए फिर भी इनके इतने नखरे हैँ ! खाने के लिए इनके पीछे पीछे भागना पड़ता हैँ ! फिर भी ये हर महीने बिमार पड़ ज़ाते हैँ !

दूसरी तरफ ये बच्चें हैँ जो ना  खाने में ज़िद करते हैँ ,खराब खाना भी खा लेते हैँ ! ऊपर वाले ने पता नहीं इन्हे किस मिट्टी का बनाया हैँ ,मस्त रहते हैँ ,बिमार भी नहीं होते ,जहां भी जगह मिलती हैँ ,गहरी नींद में सो ज़ाते हैँ ! मच्छर कीड़े का भी कोई असर नहीं होता जल्दी !

पतिदेव मुस्कुराये ,बोले – ये ईश्वर द्वारा बनाये गए अनोखे ,अद्भूत प्राणी हैँ ! ईश्वर ज़िसको जैसा बनाता हैँ ,उसे उसी के अनुरूप ढ़ाल  देता हैँ ! अगर इन्हे ऐसा ना बनाये तो  क्या ये दुनिया में जी पाये ,क्या इनके पास इतना पैसा हैँ कि इनके बच्चें अगर आये दिन बिमार हो और हमारी तरह हर बार प्राईवेट डॉक्टर को दिखा ले ! नहीं ना ,तो वो वैसी ही परिस्थिती में ढल चुके हैँ ! सबकी ज़िन्दगी ईश्वर ने उसके हिसाब से बनायी हैँ ! नहीं तो ज़िन्दगी जीना आसान नहीं हो !यहीं हैँ ज़िन्दगी !

मैं भी पतिदेव की बातों से सहमत थी ! हमारा स्टेशन आ गया ! मैं उन बच्चों को निहारती हुई ईश्वर की अनोखी रचना को देखती उनकी तरफ मुस्कुरा के चली गयी ! वो भी मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा दिये !

मीनाक्षी सिंह की कलम से

मौलिक अप्रकाशित

आगरा

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