उस दिन बहुत बारिश पड़ रही थी इसलिए गली में बहुत सा कीचड़ हो गया था राशि यानी मैं जैसे ही दूध लेने गई तो स्कूटी अंदर ले जाने में मिट्टी में फस रही थी इसलिए मैं अपनी स्कूटी को बाहर ही खड़ी कर कर पैदल अंदर दूध लेने चली गई जहां पर दूध रखा जाता था दूध लिया और उससे कहा यह दूध का डिब्बा लेकर मेरे साथ चलो
,,,,, स्कूटी तक ,,,,,,,,,,,,,मुझे पकड़ा देना ,,,वह मेरे साथ मेरे पीछे-पीछे चलने लगी,,, मैंने उससे दूध का डिब्बा लिया और स्कूटी पर आगे रख लिया,,,, फिर यकायक मेरी नजर उसके चेहरे की तरफ गई उसके चेहरे और गले के आसपास नीले और काले निशान बने हुए थे ,,,,,मैंने उससे पूछा यह कैसे जल गई,,,,,,शायद मैंने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था ,,,क्योंकि अब उसके घर का कोई आसपास नहीं था
,,,,तो उसने बताया ,,,दीदी यो सानू मुझे बहुत मारै है।,,,, मैंने पूछा क्यों,,,,, मां और बहनों के कहे में चले हैं।,,,, मैंने कहा तुम्हारी सारी नंनदोकी तो शादी हो गई है । केवल एक की नहीं हुई है। जब भी मैं दूध लेने आती हूं मैं तो सभी को यहीं पर देखती हूं।
जाती है अपनी ससुराल को लेकिन रूके ना है। उसने कहा,,,,,, सास और ननद यह मने घणो परेशान करें हैं।,,,,
जब मैं ना थी तो सारा काम भैंसों का करती थी,,, जब से मैं आ गई हूं तो कतै काम ना करें यो छोरियां,,,,
पतली दुबली बड़ी सुंदर सी कम उम्र की युवती थी वह और उसके कई बच्चे थे,,, छोटी-छोटी उसकी बेटियां मैंने सलवार कमीज पहने हुए घूमती रहती थी,,,,
कई बेटे भी थे कोई कपड़ा पहने होता कोई ना भी पहने होता ऐसे ही गंदे गंदे घूमते रहते थे,,,,
फिर मैंने कहा शायद इसी काम की वजह से बच्चों की देखरेख नहीं कर पाती होगी बिचारी,,,,,,
मैंने कहा जब तेरा पति तुझे इतना मारता है तो तूने अपने मायके में ना कहा,,,,,, बोली दीदी मेरा बाप बड़ा गुस्से वाला है कह दूं तो सब कोएक बार में ही सही कर दे,,,
पिछली दफा कहा था तो बहुत सुनाया था इन सब को और मुझे अपने साथ ले रहा था,,,,,, आठे मैं डेढ़ साल में आई हूं।,,,,, अब कहना नहीं चाहती हूं क्योंकि उनका भी परिवार है भाई भाभी वाला घर है अच्छा ना लगे हैं।,,,,,,
यह सानू मुझे डेढ़ साल में लेकर आया है लेकिन फिर वही गत कर दी उसने,,,,,
मैं इस परिवार का एक छोटा सा कपड़ा भी ना जानू हूं ना कभी बालकान को कपड़े दिलावे,,,,,
मैंने कहा फिर कैसे करती हो,,,, दीदी आपने मेरे पैर में पड़े हुए मोटे मोटे चांदी के आभूषण देखे थे हां मैंने कहा हां देखे तो थे वह तो बहुत भारी थे मैंने उनको बेचकर कुछ पैसे अपने बाप से लेकर यू भैंस खरीदी है। इसी से अपना चाल चलन चलावे है।,,,,
दीदी बहुत काम है जावे,,,,, वाशिंग मशीन भी थी सो इन छोरियों ने बेच दी,,,, जाकर मारे मैं बातें कपड़े धो लेती थी,,,,,
इतना काम करे हू तब भी मेरी सांसूऔर यो छोरियां मने जीने ना दे,,,,,
सारा सामान एक है बस मैं रोटी अलग पोऊ हूं,,,, कबहु शानू मां के धोरे रोटी खा ले कबाहु मेरे धोरे खा ले,,,,,,
अल्लाह सब देख रहे है दीदी इन छोरियों के और मेरी सांसू के बड़े बुरे कर्म होगे,,,,,,
दीदी मैं तो घड़ी दुखी हूं। मैंने कहा जब प्यार मोहब्बत इज्जत सम्मान तुम्हें इस परिवार में नहीं है। तो तुम अपना दूसरा निकाह क्यों ना कर लो,,,, कर तो लूं मेरे धर्म में भी है लेकिन इन बालकों की जिंदगी बर्बाद हो जावेगी,,,,,,
अब धीरे-धीरे मुझे रोज सहते सहते आदत सी हो गई है ऐसे ही मेरी जिंदगी कट जाएगी मैंने इसको अपनी नियति मान लिया है अब मैं अपने बाप से भी ना कहूं
सानू के लिए तो मैं उसके पैर की जूती हूं। यह दाग तो आपने आज देखे हैं इससे भी ज्यादा दाग मेरे शरीर पर होते रहते हैं यह तो मेरे लिए आम बात हो गई है और मुझे आदत भी हो गई है। सब कुछ कर के देख लिया आना इसी घर में पड़ा अब तो मैंने अपना भाग्य समझ लिया है यही नियति है।
मैंने देखा उस घर में भैंस का और दूध का बड़ा काम था इसलिए कार अन्य प्रकार की सुविधाओं की कमी ना थी लेकिन विचारी बहू हिंसा की शिकार हो रही थी खूब काम करती भैंस का जिसे मैंने खुद करते हुए देखा था और उसकी ननद को भी कहते हुए सुना था इसे कते नखरे आ रहे हैं एक बार भैया से कहकर सारी ऐठ निकलवा दूंगी
तब मैं समझ ना पाई थी लेकिन आज कहानी मेरे सामने साफ थी
अगर कोई समस्या उस बहू से थी भी तो उसे बातचीत के द्वारा हल किया जा सकता है लेकिन मारपीट किसी भी समस्या का हल नहीं हो सकता,,,,,
उसकी सारी बातें सुनकर मेरा मन बड़ा दुखी हो गया उसने मेरे स्कूटी पर आगे दूध का डिब्बा रख दिया मैंने स्कूटी स्टार्ट की मैं अपने घर चली आई
लेकिन मेरे मस्तिष्क में उसके चेहरे और गर्दन के दाग घूम रहे थे और मेरे मानस पटल में लगातार चल रहा था मैं नहीं लेकिन कोई तो है जो इस तरह की हिंसा को अपनी नियति माने हैं और उसको भुगत रही है।
समाज में सारे लोग गंदे नहीं है लेकिन यह भी नहीं कह सकते कि सारे अच्छे हैं कुछ मुट्ठी भर लोग निहायत गंदे हैं जो इस तरह का कृत्य करते हैं। इन घरेलू हिंसा ओं को धीरे धीरे भुगतने वाली महिला अपनी नियति मान लेती हैं।
और अजीवन भुगती रहती है। लड़ते-लड़ते हथियार डाल देती है और मान लेती है यही मेरी नियति है।,,,,,
अगर आपके आसपास भी इस तरह के लोग हैं तो उनका मनोबल बढ़ाएं उनकी सहायता करें घरेलू हिंसा करने वालों का सामाजिक बहिष्कार तो हम कर ही सकते हैं। आपकी क्या राय है टिप्पणी जरूर करें,,,
#नियति
प्रतियोगिता हेतु
स्व लिखित मौलिक रचना
मंजू तिवारी ,गुड़गांव
मंजू तिवारी