वो ट्रेन वाला हादसा…. निधि जैन

उस दिन मुझे बहुत जल्दी में पहुंचना था, पर सड़क पर ट्रैफिक इतना था कि बस भी जल्दी ना पहुंचा पाई,

मै जैसे ही स्टेशन पहुंचीं, ट्रेन का हॉर्न हो चुका था, ट्रेन चलने को तैयार थी, मै प्लेटफार्म की तरफ भागी, ट्रेन चल पड़ी, मै चढ़ नहीं पाई, अतत: मै प्लेटफार्म पर खड़ी रह गई और ट्रेन मेरे सामने से निकल रही थी। मैं लेट तो हो ही गई थी, मैंने सोचा अब दूसरी ट्रेन से जाऊंगी। मैंने हाथ में लिया बैग प्लेटफार्म  की कुर्सी पर रख दिया। कुछ हाफ रही थी भागने के कारण, फिर पानी पिया और मै दूसरे प्लेटफार्म पर चल दी, दूसरी ट्रेन के लिए।

मै दूसरी ट्रेन का इंतजार कर रही थी, तभी एक दूसरी ट्रेन जो भोपाल से जयपुर की ओर जाने वाली थी वो लगी हुई थी, लोकल पैसेंजर ट्रेन होने के कारण उसमें आस पास की जगह वाले भी चढ़ रहे थे।

पहले ये ट्रेन स्टेशन के प्लेटफार्म क्रमांक 6 पर खड़ी होती थी, पर रेलवे के कुछ बदलाव के कारण ट्रेन को प्लेटफार्म क्रमांक 5 पर खड़ा किया गया। ट्रेन भोपाल से ही बनती थी इस कारण 1घंटे पहले प्लेटफार्म पर लगाया जाता है ताकि किसी भी यात्री को कोई परेशानी ना हो।

मैं प्लेटफार्म पर आकर बैठ चुकी थी, और इंतज़ार कर रही थी कि ट्रैन जल्दी लग जाये ताकि मैं घर पहुंच जाऊ। अभी ट्रैन लगने में १ घंटे का वक़्त था, और यात्रियों की भीड़ बढ़ती जा रही थी, तभी एक लड़की ( लगभग उसकी उम्र २० साल होगी) मेरे पास आकर बैठ गयी, और कहने लगी “आज तो ट्रैन अभी तक नहीं लगी ” मेने उसका प्रश्न सुनकर उससे पूछा किस ट्रैन की बात कर रही हो आप?

जो जयपुर जाती है ना इसी प्लेटफार्म पर लगती है पर आज अभी तक नहीं लगी, लड़की ने कहा।

अच्छा भोपाल से जयपुर की ओर जाने वाली ट्रैन प्लेटफार्म ५ पर लगी है आप वो सीढ़ी से उस तरफ चले जाओ, मैंने सीढ़ी की ओर हाथ करके बताया। लड़की थोड़ी खुश हुई और कहा धन्यवाद दीदी मैं यही से पटरी पार करके चली जाती हूँ ज़्यादा नहीं चलना पड़ेगा, यहाँ से जाने में सीधा कम्पार्टमेंट के अंदर ही पहुंच जाउंगी। ये सब कहते हुए वो सामान उठा कर निकल गयी और पटरी पर कूदकर ट्रैन में चढ़ गयी, उसे देखकर कुछ और लोगों ने भी वही से चढ़ना शुरू कर दिया


थोड़ी देर में बहुत सारी भीड़ वही से चढ़ने लगी, कोई भी व्यक्ति सीढ़ी से नहीं जा रहा था, सभी को वो रास्ता आसान लग रहा था। इतने में ही एक ट्रैन आकर लग ही रही थी कि सभी लोग इधर उधर हो गए पर एक बुजुर्ग जो नीचे पटरी पर खड़े हुए थे वो ना तो ऊपर प्लेटफार्म चढ़ पाए ना ट्रैन के अंदर चढ़ पाए और देखते ही देखते वो ट्रैन उनको एक झटका देते हुए आगे बढ़ गयी, और वो बुजुर्ग अपनी जान गवां चुके थे, उनका परिवार ये सब देखकर दंग रह गए, उन्ही के परिवार की एक बहु कह रही थी कि ” अच्छा है बुढऊ निपट गया अब शांति है साला दिन-रात खाँस-खाँस कर परेशान करता था कानो में अब शांति है” ये सब देखकर मेरा मन दुखी हो गया था, कैसे वो औरत ऐसे किसी बूढ़े व्यक्ति के बारे मे बोल सकती है, क्या उसके अंदर जरा भी दयाभाव नहीं था, या वहां खड़े इतने सारे लोग जो ये सब नजारा देख रहे थे, उनमे से किसी का दिल दुखी नहीं हुआ, कोई भी व्यक्ति उन बुजुर्ग के शरीर के टुकड़े उठाने आगे नहीं आया। अततः परिवार के लोग ही उठाने के लिए आगे बढे, फिर पुलिस आयी सब जाँच हुई,

मेरी ट्रैन आ चुकी थी पर अब घर जाने का मन तो था पर वो मन दुखी भी था और अंदर से डरा हुआ भी था। घर पहुंचकर अंकित को पूरी बात बताई, दिल छोटा मत करो दिवी कुछ लोग ऐसे ही जीवन जीते है, ये उनका रोज का होता है, हर रोज कोई न कोई ट्रैन से कट जाता है, या अफाहिज़ हो जाता है, रोज लोग भागकर ट्रैन पकड़ते है,या जब ट्रैन चल जाती है तो चढ़ने की कोशिश करते है। एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म की तरफ जाने के लिए रेल्वे ने सीढ़ी बनायीं पर बहुत कम लोग अपना समय बचाने के लिए पटरी का उपयोग करते है, जब कभी नहीं संभल पाते तो जान से हाथ धो बैठते है।

इस देश की जनता के लिए जो अच्छा है वो सब हो रहा है तब भी जनता दोष देती है क्योकि उनको तो शॉर्टकट चाहिए होते है।

तुम इतना मत सोचो क्योकि यहाँ जनता मदद सिर्फ सोशल साइट्स पर करती है, असल जिंदगी में तो वो खुद ये कहते है कि छोडो हमें क्या करना, अगर दोष देना होता है तो भी इन्ही साइट्स पर देते है, सोशल साइट्स ही उनकी असल दुनिया है, बाहर की दुनिया से उनका कोई लेना देना नहीं होता।

अंकित ने दिवी से कहा।

दिवी ने हां में सर हिला दिया पर वो ये सोच रही थी अगर सभी सीढ़ियों का यूज़ करते तो आज ये हादसा ना होता।

स्वरचित

 लेखिका – निधि जैन

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