वो लडकी – श्रीप्रकाश श्रीवास्तव

कंपनी के आफिस के नीचे एक बडा सा हाल था। लंच में ज्यादातर महिला पुरूष स्टाफ टिफिन करके यही चहलकदमी करते। एक  घंटा कम नहंी होता खुद को दुरूस्त रखने के लिए। कुछ अकेले तो कुछ अपने पुरूष सहकर्मी के साथ टहलती। कुछ झुंड में हंसते मुस्कुराते वक्त काटती। उन सबसे अलग वो लडकी थी। उम्र यही कोई तीस के आसपास होगी। कुंवारी थी। यह उसकी मांग देखकर जाना जा सकता था। दरम्याना कद,खिलता रंग,सामान्य नाकनक्श,किचिंत स्थूल शरीर। औरो से अलग बेहद शांत,सौम्य। मैनें उसे कभी मुस्कुराते नहीं देखा। रोजाना कान पर मोबाइल सटाये चहलकदमी करती। सबकी अपनी अपनी दुनिया है। कौन किसके बारें में सोचे। मगर नहीं मेरे साथ का जो स्टाफ था नरेश उसे  जमाने की बेहद फ्रिक रहती। कौन क्या कर रहा है? किसका किससे अफेयर चल रहा है। उसे इसकी सटीक जानकारी रहती। यह उसका प्रिय शगल था। आज नरेश उसी लडकी पर नुक्ताचीनी कर बैठा। जो मुझे नागवार लगा।

‘‘क्या जरूरत है उसका पोस्टमार्टम करने की?चुपचाप अपने में खेाई है। तुमसे यह भी देखा नहीं जाता?’’

‘‘वह मेरी सजातीय है। अभी तक शादी नहंी हुयी? जरूर परिवार में खोट है।’’नरेश बोला। 

‘‘तुमने क्या अपनी बिरादरी का ठेका ले रखा है,’’मेरा लहजा तल्ख था। मेरी तल्खी से बेखबर नरेश ने कहना जारी रखा। 

‘‘उसके पिता एक रिटायर सरकारी अधिकारी है। दो बेटियां है। बडा सा मकान है।‘‘ नरेश चुप होने का नाम नहीं ले  रहा था। 

‘‘तुम्हारे पास क्या कम समस्या है जो दूसरों के लिए चिंतित हो?’’मेरे कथन पर नरेश ने अपनी बतीसी दिखा दी। 

‘‘उस लडकी की शादी नहीं हो रही इसका यह मतलब नहीं कि उसके परिवार में कोई खोट होगा। और भी वजह हो सकती है? अक्सर नौकरीशुदा लडकियां शादी से कतराती है। वे घरगृहस्थी से दूर भागती है।’’ लंच टाइम ओवर हो रहा था। अपनी बात कहकर मैं और नरेश लिफ्ट की तरफ बढने लगे।


दस दिन बीते हेागे जब उस लडकी की खुदकुशी की खबर आयी। सुनकर मैं सन्न रह गया। सारे आफिस में स्यापा पसर गया। लोग तरह तरह की बातें करने लगे। होगी कोई मानसिक उलझन। नरेश छिद्रान्वेषी था। कहानी का क्लाइमेक्स ढूंढ ही लिया। 

15 साल की रही होगी। जब उसके साथ कभी न भूलने वाला हादसा हुआ। एक ऐसा हादसा जिसने उसके मनमतिष्क पर गहरा प्रभाव डाला। पिता आफिस में थे और मां बाजार  सामान लेने गयी थी। वह सरकारी क्वार्टर में अकेली थी। एक 32 वर्षीय उसके पिता का मातहत किसी काम से उसके घर आया। फिर जो हुआ वह उसकी जिंदगी का काला अध्याय था। मातहत बडी आसानी से निकल गया। मानेा एक सामान्य घटना हेा। मां घर आयी। बेटी के अस्तव्यस्त कपडे देखे। बाल भी बिखरे हुए थे। उसे शंका हुयी। वह बुरी तरह रेाये जा रही थी। 

‘‘कौन था?’’मां चीखी। उसने उसका नाम बता दिया। 

‘‘उस कमीने ने  इतना बडा धोखा दिया। ’’मां रूंआसी हो गयी।  सामान जमीन में फेंककर बेटी के पास बैठकर सुबकने लगी। शाम पति आयेंगे तो क्या जवाब दूंगी। कहेंगे बेटी को अकेला छोडकर बाहर जाने की क्या जरूरत थी? वह अपना माथा पिटने लगी। बाल नोंचनेकर अपनी खीझ निकालने लगी। घटना ऐसी थी कि किसी से चर्चा करना भी उचित नहीं था। इसलिए चुप रहकर मां बेटी सिसकती रही। शाम ढलकर अंधेरा का रूप अख्तियार कर चुका था। तभी किसी के आने की आहट लगी। बेटी के पिता थे। घर में अंधेरा पसरा हुआ था। न बाहर की लाइट जली थी न ही घर की। 

‘‘कहां हेा तुम लेाग?कमरे में अंधेरा क्येां है?’’पिता को अजीब लगा। वे खुद चलकर कमरे का स्विच आन किया। मां बेटी बेसुध कमरे में पडी हुयी थी। 

‘‘ऐसे क्यों बैठी हो। सब ठीक तो है?’’ पिता के इस सवाल पर मां बेटी फफक कर रेाने लगी। 

‘‘बताओगी भी या इसी तरह पहेलियां बुझाती रहोगी।’’ नाक सुघडते हुए पत्नी ने एक सांस में सारा वाकया बयां कर दी।  एकाएक उन्हें ऐसा लगा मानेा किसी ने उनके शरीर में 440 वाट का करंट प्रवाहित कर दिया हो। वे माथा पकड कर सोफे पर बैठ गये। उनसे न रेाते बन रहा था न हंसते। कभी पत्नी पर उबलते तो कभी उस मातहत पर। उस रोज किसी ने खाना नहीं खाया। पिता प्रतिशोध की ज्वाला में धधक रहा था। कभी जी करता बेटी का  गला घोंट कर छुट्टी पाये तो कभी उस पापी को दण्ड देने का ख्याल आता। कुछ तो करना था वर्ना उनके दिल का सुकून नहीं मिलना था।

‘‘आप यहां से तबादला करवा ले,‘‘मां बोली। 

‘‘करवाउंगा। मगर  अभी नहीं। मैं उस धोखेबाज को दण्ड देकर ही जाउंगा,’’पिता ने दांत पीसे।

‘‘क्या करेगे?’’मां डरी हुयी थी। 

‘‘उसे गोली मार दूंगा,’’पिता बोला।

‘‘ऐसे कभी मत करिएगा। सब तबाह हो जाएगा। आपकी नौकरी जाएगी साथ में जेल। बदनामी होगी सेा अलग। क्या हासिल होगा?’’पत्नी के कथन में तर्कसंगत था। 


‘‘सब तुम्हारी वजह से हुआ है। एक बेटी तक नहीं संभाल सकती?’’पिता खीझा।

‘‘ऐसा है तो मैं ही अपनी जान दे देती हूं। न रहूंगी न अपराधबोध होगा?’पत्नी कमरे में रस्सी खेाजने लगी। बेटी ने रेाका। 

‘‘मम्मी, मरना मुझे चाहिए। कंलक मेरे सिर पर लगा है। मेरी वजह से समाज में आपलेागो को शर्मसार होना पडेगा,’’बेटी भरे कंठ से बोली। पिता से बर्दाश्त नहीं हुआ तो चीखे,’तुम लोग ऐसा कुछ नहीं करेागे। जो करना होगा मैं करूंगा।’’

‘‘आप ऐसा वैसा मत करिएगा,’’आफिस जाते हुए पत्नी ने हिदायत दी। 

ऊपर से शांत मगर अंदर मचते तूफान को उन्होने किसी पर जाहिर  होने नहीं दिया। चपरासी से उस आरेापी मातहत को अपने केबिन में बुलाया। जैसे ही अंदर आया पिता ने सिटकनी लगा दी। 

‘‘सर,आप ऐसा क्यों कर रहे है,‘‘वह संशकित मुद्रा में बोला। पिता वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गया। मातहत खडा रहा। 

‘‘शादीशुदा हो,’’पिता के सवाल पर वह सकपका गया।

‘‘हां,’’उसकी जुबान लडखडाई।

‘‘फिर भी मेरी बेटी की जिंदगी तबाह करते हुए तुम्हारा मन एक बार नहीं कांपा?’’

‘‘सर, मैं अपनेआप पर कंट्रोल  नहीं कर पाया,’’वह रिरियाया।

‘‘हर गुनाह की सजा होती है। बोलो तुम्हें कैसी सजा चाहिए?’’कहकर पिता ने दराज से रिवाल्वर निकाला। रिवाल्वर देखकर वह बुरी तरह सहम गया।

मुझे माफ कर दीजिए। मैं मर गया तो मेरा परिवार बर्बाद हो जाएगा।’’


‘‘मेरी बेटी का कलंकित करते हुए क्येां नहीं यह ख्याल आया?’’पिता की आंखे भींगने को हुयी। मगर उन्होने उसे बडी सफाई से छुपा लिया। 

‘‘तुमने हमंे जीते जी मार डाला। बोलेा मेरा परिवार कैसे जीएगा,’’पिता ने आगे कहा। क्षणांश चुप्पी के बाद बोले,‘‘तुम रिजाइन देकर यहां से कहंी दूर चले जाओ। मैं तुम्हारी शक्ल तक नहीं देखना चाहता।’’

‘‘सर, मैं भूखों मर जाउगा,’’मातहत गिडगिडाया। 

‘‘नहीं तो मरने के लिए तैयार हो जाओ।’’पिता ने उसकी तरफ रिवाल्वर तान दिया। वह भय से कांपने लगा। मातहत समझ चुका था कि देानेा तरफ खाई है। या तो पिता की गोलियों से मरो या फिर पुलिस की मार से। लडकी नाबालिग थीं। बलात्कार सिद्व होने से कोई रोक नहीं सकता। जिंदगी बच गयी तो बहुत काम मिलेगा। उसने उसी वक्त रिजाइन लिख दिया। आफिस में  मातहत के रिजाइन की चर्चा होती रही मगर किसी को कानेाकान खबर नहीं लगी कि आखिर मातहत ने एकाएक क्यों रिजाइन दिया। साहब से देर तक केबिन में  किस बात पर चर्चा हो रही थी।

15 साल गुजर गये। उस लडकी ने हर संभव खुद को संभाला। मगर जब शादी की बात आती तो चिढ जाती। उसे पुरूष जाति से नफरत सी हो गयी थी। उसे हर पुरूष में वही वहशी मातहत नजर आता। 

उस लडकी के शादी न करने की यही वजह थी। पर निष्ठुर जमाने का क्यावह तो दूसरेां की फटी चादर में टांग घूसेडने में ही मजा तलाशता हैे। सदियों से समाज की बनाई परिपाटी का एक किरदार था नरेश। सुनने में आया है कि उसी मातहत ने कंपनी ज्वायन कर ली थी। उसके बाद नरेश ने किसी महिला के ऊपर टीकाटिप्पणी करना छोड दिया।  

श्रीप्रकाश श्रीवास्तव 

वाराणसी-

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