वो ईश्वरीय सहायता – लतिका श्रीवास्तव 

स बार नवरात्रि पर वैष्णो देवी जाना ही है मां…..मां मैं आपसे ही कह रहा हूं  …….मैंने वैष्णो देवी के टिकट बुक कर दिए हैं …..आप और मेधा मिल के सारी तैयारी कर लीजिए अपनी दवाई कपड़े सब अभी से तैयार रखिए इस बार आपका कोई भी बहाना नहीं चलेगा …वैष्णो देवी जाना है मतलब जाना ही है……रोहन अपनी मां शारदा से कह तो रहा था पर शारदा तो वैष्णो माता के नाम से ही जैसे कहीं और पहुंच गई थी……

वैष्णो देवी के नाम से ही एक रोमांचक अनुभूति होने लगती है…….नवरात्रि पर शारदा का मन हमेशा अपनी जिंदगी के उन यादगार अभूतपूर्व लम्हों में बरबस ही पहुंच जाता है जिन्हे वो माता का चमत्कार और अपने ऊपर माता की अनोखी कृपा मानकर कृतकृत्य हो जाती है…..

पूरे परिवार के साथ बरसो पहले वष्णो देवी जाने का प्रतीक्षित कार्यक्रम बन पाया था…शारदा का बेटा रोहन उस वक्त करीब तीन वर्ष का रहा होगा ….सास ससुर भी थे शारदा अतिरिक्त उत्साह और रोमांच महसूस कर रही थी …कई किलोमीटर लंबी पैदल चढ़ाई करने की सोच कर ही अनोखे रोमांच की सिहरन होने लगती थी….वहां मैहर जैसी सीढियां नहीं हैं उसे ये भी मालूम था……

दिल्ली से होते हुए कटरा आने पर बुक्ड होटल में सभी ने आराम किया…..शारदा के मन मस्तिष्क में आज भी वो दिन जीवंत हो उठता है…..

….तय हुआ कि गर्मी का समय है तो शाम को खाना खाकर रात भर चढ़ाई करेंगे और सुबह पहुंच कर दर्शन लाभ ले लेंगे…. सासजी और मेरे पुत्र रोहन दोनो के लिए चढ़ाई करवाने के लिए कुर्सी बुक कर दी गई….बढ़िया खाना वाना खा के पानी की बॉटल रख के हम लोग बाकी सभी दर्शनार्थियों के साथ जयकारा लगाते हुए यात्रा आरंभ कर दिए …..धीरे धीरे काफी भीड़ बढ़ने लगी…..उस समय मोबाइल का चलन नहीं था ….हम सभी एक दूसरे के साथ एक दूसरे पर नजर रखते हुए आगे बढ़ रहे थे….!

 

सबके साथ जयकारा लगाते लगाते अचानक मुझे ये एहसास हुआ कि घर का कोई भी व्यक्ति मेरे आस पास नहीं है..!!मैंने उसी जगह खड़े होके इंतजार किया कि शायद मैं भीड़ के साथ काफी आगे आ गई हूं …..लेकिन काफी देर होने के बाद भी कोई नहीं दिखा…..अब मुझे लगा कि हो सकता है मैं पीछे रह गईं हूं और बाकी सब आगे कहीं मेरा इंतजार कर रहे होंगे…!मैने फिर से आगे बढ़ना शुरू कर दिया..पर अब थोड़ी चिंता मुझ पर सवार हो चुकी थी….घर के लोगों से बिछड़ कर भीड़ में गुम हो जाने का डर मुझे महसूस होने लगा था…लेकिन हर कदम इसी आशा और विश्वास से उठ रहे थे कि जल्दी ही सबसे मुलाकात हो जायेगी…!रात का समय था जगह जगह लाइट लगी हुई थी फिर भी दिन के उजाले का मुकाबला तो नहीं हो सकता था कहीं कहीं रोशनी काफी धुंधली भी थी…अभी तक कोई नहीं दिखा था मेरे कदम ना चाहते भी मुझे आगे की ओर धकेल सा रहे थे…क्योंकि…..



कभी कहीं पर ज्यादा देर तक रुक जाने पर या चारो तरफ चिंता या घबराहट से देखने पर आस पास के सैकड़ों लोग सवालिया नजरो से देखने लगते थे …

 

थोड़ी ही देर में चमकती हुई बिजली के समान ये कटु सत्य मेरे समक्ष स्पष्ट हो चुका था कि मैं इस अथाह भीड़ में गुम हो चुकी हूं…मेरे घर के लोग पता नहीं कहां हैं..!मैं उनके पास कैसे जाऊं..!कैसे जल्दी जल्दी से सबको ढूंढ निकालू आंसू भरी आंखों से माता रानी से यही प्रार्थना कर रही थी…!किसी को भीड़ में मेरे परिवार से खो जाने या अकेले हो जाने की बात पता ना चल जाए ये खौफ मुझे किसी से कोई सहयता या सुझाव मांगने से बार बार रोक देता था..!

….रास्ते में एक जगह लाउडस्पीकर से गुम शुदा व्यक्तियों के बारे में एनाउंस हो रहा था….मैं जल्दी से वहां पहुंच कर  अपना नाम या अपने घरवालों की तरफ से कोई घोषणा सुनने का इंतजार करने लगी ….परंतु निराशा सघनत्तर ही गई….अब तो मेरी सारी हिम्मत समाप्ति की ओर थी ……

 

……तभी अचानक एक सज्जन जो शायद काफी देर से मुझे परख रहे थे मेरे पास आए और बोले क्या बात है आप काफी चिंतित और परेशान है!!!कोई सहायता चाहिए तो बताइए..!मैं पहले तो घबरा गई तब तक उनकी पत्नी और परिवार वाले भी आ गए तो मैंने हिम्मत कर के दुखी होकर अपनी आप बीती उन्हें सुना दी…..वो सब हतप्रभ रह गए  मेरी बात सुनकर कहने लगे अरे आपको वहीं रुक रहना था आप इतने आगे क्यों बढ़ती चली आईं…..!!सच में मुझे भी लगा था पर आगे सबसे मुलाकात हो जायेगी यही कल्पना मुझे यहां तक ले आई थी।

उन लोगों ने वहां काउंटर पर जाकर मेरी गुमशुदगी की सूचना मेरा नाम मेरे पति का नाम लिखवाया भी और इस बारे में पूछा भी …पर कोई भी जानकारी नहीं मिली बल्कि इस सबमें काफी समय उन लोगों का बर्बाद हो गया ..!अब मैं क्या करूं!गहराती हुई रात…अनजानी जगह…बेहद भीड़…मैं अकेली …डर और दुख के मारे मेरे आंसू बांध तोड़ कर बह निकले…! उस समय आज के समान मोबाइल भी नहीं था..(काश होता..!)अब मैं पीछे लौट के जा नहीं सकती थी ..!रास्ते अनजाने थे लोग अनजाने थे!!अंदर से ऐसा लग रहा था एक कदम भी नही उठा सकती बस यहीं बैठ जाऊं और खूब रोऊं..!

उस परिवार से मेरी ये हालत देखी नहीं गई..! उन सज्जन ने मुझे समझाया कि देखिए आप इतनी दुखी मत होइए …अब आप हम लोगों के साथ ऊपर चलिए हो सकता है वहीं सबसे मुलाकात हो जाए और ना भी हो तो आप माता रानी के दर्शन कर के वापिस आ जायेगा तब तक दिन भी निकल आएगा…यहां अकेले बैठने या रुकने से तो यही ठीक रहेगा..!मुझको तो उस कठिनतम वक्त में वो लोग माता रानी द्वारा भेजे गए देवदूत से कम नहीं लग रहे थे मैंने माता की ऐसी ही आज्ञा है मान कर उन लोगों के साथ जाना ही उचित समझा…..



वो लोग भी जल्दी में थे मंदिर पहुचने का उत्साह था वैसे ही मेरे कारण उनका काफी समय बर्बाद हो चुका था..मेरे पास ज्यादा सोचने का समय भी नही था और बुद्धि भी नहीं थी..! सो मैं उन्हीं लोगों के साथ साथ चल पड़ी…!

पूरा लंबा रास्ता वो सब आपस में हंस रहे थे मस्ती कर रहे थे ..देख देख कर मुझे अपने घर के सबकी जोरों से याद आ जाती थी…..अजीबोगरीब अकल्पनीय परिस्थितियां मुझे आगे बढ़ने को विवश करती रहीं और मेरे लिए डूबते को तिनके का सहारा बना वो सहृदय परिवार मेरा ख्याल रखता रहा मेरे बारे में मेरे घरवालों के बारे में मेरे बेटे के बारे में बातें करके मुझे हल्का महसूस करवाने की कोशिश करता रहा …मुझे उन लोगों के उत्साह पूर्ण पारिवारिक माहौल में अपनी भूमिका और स्थिति उनके रंग में भंग डालने जैसी ग्लानि दे रही थी……!

पता नहीं ये दैवीय चमत्कार ही था या क्या था कि मेरे पैरों की हिम्मत बनी रही जाने कौन सी अदम्य शक्ति ने मेरे पैरों को अथक कर दिया था ….!

 

सुबह का उजाला हो चुका था मंदिर के पास मैं पहुंच चुकी थी पर अकेले बिना घरवालों के दर्शन करना फुजूल लग रहा था…!पर किसी तरह लाइन में लग कर यंत्रवत मैने देवी मां के दर्शन भी किए पूजा भी की..घरवालों से मिला दो माता बस यही पुकार दिल से आ रही थी….सब यंत्रवत हो रहा था ….दिन का उजाला हो चुका था …अब मैंने तुरंत वापिस आने का विचार कर लिया था वो सज्जन और उनका परिवार मुझसे थोड़ा आराम करने कुछ खाने का आग्रह कर रहे थे..पर मुझे उस समय ना ही थकान महसूस हो रही थी ना ही भूख लग रही थी ..माता के दर्शन और दिन के उजाले ने मुझे वापिस लौटने की हिम्मत और रास्ता दोनो दिखाए और उस सहृदय परिवार को हृदय से धन्यवाद देते हुए मैने विदा ली…!वापिसी  में तेजी से बढ़ते हुए मेरे कदम अपने घर वालो से मिलने के लिए अधीर हो रहे थे….और मन में बारंबार आंधियां सी चल रही थीं कि ऐसा क्यों हुआ ??मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ??देवी मां की क्या इच्छा थी!!

अब समस्या थी होटल कैसे पहुचूंगी …..पर माता रानी के आशीर्वाद से एक भले से ऑटो वाले ने होटल का नाम सुनकर ही मुझे सकुशल उस होटल में भी पहुंचा दिया था जहां मेरे परिवार वालों का मेरी चिंता में बुरा हाल था बेटा रोहन रो रोकर निढाल था बाकी सभी  लोग मुझे ढूंढने की हर संभव कोशिश करने के बाद अब बस वैष्णो देवी पर ही सब कुछ छोड़कर  मेरे मिलने की आस लगाए रतजगा करे बैठे थे …ऑटो से मेरे उतर कर होटल के अंदर पहुंचते ही सभी की आंखों में मुझे सकुशल सुरक्षित देख कर और मंदिर में दर्शन हो जाने का सुनकर अनिवर्चनीय खुशी के आंसू और माता रानी पर अटूट विश्वास भर गया था…..!

 

..”मां ….मां आप क्या बुदबुदा रही हैं चलिए अपना सूटकेस देख लीजिए मैंने तैयार कर दिया है….”मेधा बहू की आवाज से शारदा हड़बड़ा सी गई और “हां बेटा इस बार तो माता रानी के पास  चलना ही है…” कहकर अपना सामान व्यवस्थित करने चल पड़ी।हृदय मातारानी के प्रति गहरी आस्था से गदगद हो गया था।

आज भी वो घटना याद कर  सिहरन हो जाती है उस अनजान सज्जन और उनके परिवार के प्रति दिल कृतज्ञता ज्ञापित करता है और दिमाग हमेशा यही प्रश्न पूछता है

ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ??माता रानी इसके माध्यम से क्या बताना चाहती थीं!!अगर वो परिवार नहीं मिलता तो मेरा क्या होता!!पर माता के दरबार में माता की नज़र सब पर रहती है …..सबका साथ छूट जाए माता रानी का साथ कभी नहीं छूटता…माता रानी जिंदगी की भुलभुलैया में भी भटके हुओं को इसी तरह मंजिल तक पहुंचाती हैं पहुंचाती रहेंगी..।

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