“क्या ब्यूटी है यार। नज़रें ही नहीं हटती। पटाखा है पटाखा। कितने समय बाद कॉलेज में कोई रौनक आई है। लगता है भगवान ने इसे बड़ी फुरसत में बनाया है। सच कहते हैं, असली सुंदरता तो गाँव में ही बसती है। चाहे कुदरत हो या लड़की।”
रोहित ने आहें भरते हुए मोहित से कहा।
“तू नहीं सुधरेगा। किसी लड़की के बारे में बिलकुल सड़क-छाप मजनूँ की तरह बात करना क्या तुझे शोभा देता है! तेरी लड़कियों के आगे-पीछे डोलने की यही आदत तेरे सारे गुणों को छिपा देती है।”
“अब वो है ही इतनी खूबसूरत तो जबान तो फिसलेगी ही।”
“तो इसे सँभाल कर रख। अब बता कौन है वो लड़की। कहीं गाँव से आई सौम्या तो नहीं, जिसने महीने भर पहले ही इस कॉलेज में दाखिला लिया है।”
“बिलकुल सही पहचाना यार। पर वो तो हमेशा पढ़ाई में ही व्यस्त रहती है। पता नहीं क्यों लड़कों से हमेशा दूर-दूर रहती है। दोस्ती को एक बार हाथ बढ़ाया पर•••”
“तो इसमें गलत क्या है यार। वो जिस बैकग्राउंड से आई है, उसमें लड़कों से दोस्ती करना आम बात नहीं है। वैसे भी किसी को अच्छी तरह से जानने के लिए समय चाहिए। छोड़ उसे और पढ़ाई पर दिमाग लगा। हमारे मम्मी-पापा ने भी हमें पढ़ने के लिए भेजा है न कि लड़कियों के आगे-पीछे घूमने के लिए।”
“बस तेरे लेक्चर की ही कमी थी, दिल पर किसका ज़ोर चला है यार। मेनका के आगे जब विश्वामित्र की नहीं चली तो हम इंसान क्या चीज़ हैं।”
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“आज घर चलना है या विश्वामित्र बन यहीं रहने का इरादा है।”
“चलते हैं भई, कहकर रोहित जैसे ही उठने लगा कि अचानक उसे गेट की तरफ जाती सौम्या नज़र आई। उसे देख वह बोला, वाह! कितना अच्छा अवसर मिला है, उससे बात करने का। मैं चला। शाम को मुझसे घर पर मिलना। ढेर जैसी बातें करनी है।”
“ठीक है भई। मानेगा थोड़े न।”
शाम को•••
“क्या हुआ यार? ऐसे उदासी से क्यों बैठा हुआ है। तबियत तो ठीक है न। दोपहर को तो ठीक था।” रोहित के कमरे में घुसते हुए मोहित ने कहा।
“कुछ नहीं। बस वैसे ही।”
“आज की मीटिंग कैसी रही? कुछ सकारात्मक रहा या नहीं!”
“नाम मत ले उसका। बड़ी घमंडी है यार। छोड़ूँगा नहीं उसे। आखिर मेरे पिता कॉलेज के ट्रस्टी हैं। मैंने उसको दिल की बात बताई तो कहा, मुझे तुम जैसे शहर के लड़कों के सब पैंतरे पता हैं। गाँव की भले हूँ पर मूर्ख नहीं। उसका जीना मुश्किल न किया तो रोहित नाम नहीं।”
“ठंड रख यार। ले पानी पी। इतना गुस्सा सेहत के लिए अच्छा नहीं। जग से पानी भरकर मोहित ने रोहित को दिया।
“गुस्सा थूक दे यार। तेरा एक गलत कदम पूरे घर की इज्जत को मिट्टी में मिला सकता है। अपनी बहन के बारे में तो सोच, उसे कैसा लगेगा। सब जगह तुम्हारे परिवार की कितनी बदनामी होगी, सोचा है क्या? किसी के सामने वे नज़रें नहीं उठा पाएँगे।”
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रोहित चुप रहा। उसे चुप देख मोहित ने आगे कहा, “बदले की भावना के कारण न तो किसी का भला हुआ है और न ही होगा। ऐसी सोच के कारण ही आजादी के पचहत्तर साल बाद लड़कियाँ सुरक्षित नहीं है। उनके रेप, मर्डर, अपहरण से अखबार भरे रहते हैं। तो कभी तेजाब से किसी का चेहरा जला दिया जाता है। सौम्या भी तो अपने माता-पिता का अभिमान है। घर की इज्जत है।”
“मोहित भैया सही कह रहे हैं। मैंने सब सुन लिया है। सोचो, कल को कोई मेरे साथ ऐसा करे तो क्या आप खुश रह पाएँगे। मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी।” दरवाज़े पर खड़ी दिशा ने कहा।
“दिशा तू!आज डांस क्लास नहीं गई।” रोहित ने पूछा।
“आज टीचर ने कहीं जाना था तो छुट्टी दे दी।”
“मुझे माफ़ कर दे दोस्त। दिशा तू भी माफ़ कर दे। क्षणिक गुस्से में मैं बहक गया था।आगे से ऐसा नहीं होगा। तुम दोनों ने मेरी आँखें खोल दी।”
“ठीक है भैया । सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। अब मैं चलती हूँ। आप बातें कीजिए। मैं ज़रा नीचे शुभा के घर जा रही हूँ।”
“वो क्यों”? रोहित ने पूछा।
“कॉलेज के प्रोजेक्ट के सिलसिले में। कुछ देर में आ जाऊँगी।”
“ठीक है बहना।”
“मोहित एक बार फिर से धन्यवाद, मुझे आईना दिखाने के लिए। तेरे जैसा दोस्त हो तो कोई भी राह से भटक नहीं सकता। मैं तुमसे यह भी वादा करता हूँ, आगे से किसी भी लड़की की ओर गलत नज़र उठाकर नहीं देखूँगा। उसे परेशान नहीं करूँगा। उनका सम्मान करूँगा।”
“दोस्ती में माफ़ी और धन्यवाद का क्या काम। चल अब अपना मूड ठीक कर और अपने हाथों की फिल्टर कॉफी पिला। बहुत दिन हो गए पिए हुए।” हँसते हुए मोहित ने रोहित की पीठ पर हलकी सी चपत लगाते हुए कहा।
अर्चना कोहली ‘अर्चि’ (नोएडा)
#घर की इज्जत