वक्त वक्त की बात है – सुभद्रा प्रसाद

“धीरज बाबू,   साहब आपको अपने कक्ष में बुला रहे हैं |” कार्यालय का आदेशपाल धीरज बाबू से बोला |

          “नये साहब आ गए, क्या? ” धीरज ने पूछा |

           “हाँ, कल ही आये हैं |आप दो दिन से छुट्टी पर थे ना |कल ही सारे कर्मचारियों से उन्होंने मिल लिया | आप आज मिल लें |”

           “ठीक है, जाता हूँ |” धीरज साहब के कक्ष की ओर चल दिया |

           “कैसे होंगे नये साहब ” सोचते हुए धीरज ने कक्ष का दरवाजा खटखटाया “में आई कम इन सर “

            “आ जाइये ” साहब की आवाज सुनकर धीरज भीतर आया |साहब पर नजर पडते ही उसके मुंह से  निकला ” अरे रघु, तुम  “

          “हां, आपने सही पहचाना, मैं रघु हीं हूँ |आइये, बैठिये |” साहब ने कुर्सी की तरफ इशारा किया |

            धीरज धीरे से कुर्सी पर बैठ गया |उसे समझ ही नहीं आ रहा था, वह क्या बोले ? उसे उस समय की बातें याद आने लगी, जब रघु उसके घर काम करता था | वह एक ईमानदार और मेहनती लड़का था, पर जब तब उसके कमरे में आता रहता था और उसकी किताबों की अलमारी को  गौर से देखता रहता था | उसके पुस्तकों को उलटता, पलटता, सम्हालता रहता था|   उसके दो हजार रुपये खो गये थे | उसने उसका इल्जाम रघु पर लगाया  और उसे बहुत बेइज्जत किया |वह बार-बार कहता रहा कि पैसे उसने नहीं लिये हैं, पर उसने उसकी एक न सुनी |




          “यह चोर है और घर में रहेगा तो पता नहीं और क्या-क्या गायब करेगा?” कहते हुए उसने रघु को घर से निकाल दिया |हालांकि उसके मम्मी- पापा उससे बहुत खुश थे और उसे निकालना नहीं चाहते थे, पर धीरज निकालने की जिद पर अडा रहा |दरअसल वह रघु से चिढ़ता था, क्योंकि वह उसे समझाने की कोशिश करता रहता था और उसके  मम्मी- पापा जबतब उसकी प्रशंसा करते रहते थे |

           “आपके मम्मी- पापा कैसे हैं? “

साहब की आवाज से धीरज की विचारधारा भंग हुई |

          “ठीक हैं, पर तुम, मतलब आप यहाँ कैसे? ” धीरज ने पूछा |

           “बताता हूँ  | मेरा घर इसी शहर के पास ही एक छोटे से शहर में है |मैंने वहीं से अपनी ग्रेजुएशन तक की शिक्षा पूरी की |उसके बाद मैं आगे प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करना चाहता था, जिसके लिए मेरे शहर में पर्याप्त सुविधा न थी | मेरे घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी | मैं ने सोचा, इस शहर में आकर कोई छोटा, मोटा काम कर लूँगा और साथ ही अपनी परीक्षा की तैयारी भी कर लूंगा | मैं इस शहर में आकर कुछ करने की सोच ही रहा था कि अचानक आपके पापा से मुलाकात हो गई |वे मंदिर से  लौट रहे थे और मैं मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा  था | वे सीढ़ियों पर गिर  पडे और उन्हें चोट लग गई और वे चल नहीं पा रहे थे |मैंने उन्हें सहारा देकर घर तक पहुँचाया | जब मैं उन्हें घर लेकर आया और उन्होंने मुझे अपने यहाँ काम करने की बात कही तो मैं तुरंत मान गया, क्योंकि मुझे शहर में रहने को जगह, खाना, काम  और पैसा की तुरंत जरूरत तो थी ही |  आप लोग जो कहते मैं तुरंत कर देता  |आपके यहाँ काम करने का एक कारण और था |वह था आपके किताबों की आलमारी |आपके पास प्रतियोगिता परीक्षा के पुस्तकों की भरमार थी, पर आप उसपर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे |मैं आपसे दोस्ती करना चाहता था और पढाई के बारे में चर्चा करना चाहता था| मैंने कोशिश भी की, परआप मुझसे बात ही नहीं करना चाहते थे |मुझसे बेवजह ही नाराज रहते थे |




मैं जब भी इसके बारे में आपसे बात करता,समझाता, आप मुझे झिड़क देते थे | मैं मौका देखकर आपकी किताबें और अखबार उठाकर

ले जाता और रात में अपने कमरे में बैठकर पढ़ता |पढ़ने के बाद उसे रख देता और दूसरी ले जाता |बस इसीलिए आपकी किताबों की अलमारी को गौर से देखता था| मैंने अपने बारे में सारी बातें इसलिए नहीं बताई थी, क्योंकि मैं  आपके घर में रहना चाहता था |रघु ने इतनी बातें कहने के बाद एक गहरी सांस ली |”मैं ये सब बातें आपको बताना चाहता था, पर आप तो मेरी बात सुनते ही नहीं थे, मुझे हरदम डांटते रहते थे |”रघु इतना कहकर चुप हो गया |धीरज भी चुप था|

       “आप का अंदाज़ा सही था |मैं चोर था | आपकी पुस्तकें  चोरी से पढता था,  पर मैंने आपके पैसे नहीं चुराये थे|”

  थोड़ी देर बाद रघु शांत भाव से बोला |

          “हां, मुझे पता है |तुम्हारे जाने के बाद वे पैसे मुझे आलमारी में मिल गये थे |पर तुम ने परीक्षा की तैयारी कैसे की और परीक्षा कब दिया ? ” धीरज ने पूछा | 

         “परीक्षा की तैयारी मैंने आपकी किताबों से और आनलाइन क्लासों से रात में अपने कमरे में बैठकर किया |मैं जो घर जाने की बात कहकर छुट्टी लेता था, वह मैं परीक्षा देने ही जाता था |’रघु ने धीरज की जिज्ञासा शांत की |” आपने मुझे जब घर से निकाला, उस समय मेरे पास कुछ पैसे जमा हो गये थे| उससे मैंने कुछ दिन शहर में काटे और जल्द ही मेरे परीक्षा का परिणाम आ गया |मुझे यह नौकरी मिल गई | मेरी पहली पोस्टिंग दूसरे शहर में हुई थी  |तीन साल बाद यहाँ आया हूँ |”

          “मुझे माफ कर दिजिए |मुझसे गलती हुई थी |दरअसल, मैं तुम्हारे बार-बार समझाने और मम्मी- पापा के तुम्हारे पक्ष में बोलने से चिढ़ता था | मैं तुम्हें अपने घर से भगाना चाहता था |दरअसल इकलौती संतान होने के कारण मेरे मम्मी- पापा मुझसे बहुत प्यार करते थे और मैं उनके प्यार का गलत फायदा उठाता था  |मै दोस्तों की बात पर ज्यादा ध्यान देता था और मम्मी- पापा की बात भी नहीं मानता था |इसी से तो तरक्की नहीं कर पाया |यह नौकरी भी मुझे मुश्किल से मिली है |” कहते कहते धीरज का गला रूंध गया |




          “कोई बात नहीं है |इस काम को ही ईमानदारी से करेंगे तो एकदिन तरक्की अवश्य मिलेगी |मैं तो आपको आफिस में आते ही देखकर पहचान गया था |मैं आपके मम्मी- पापा से मिलने आपके घर आऊंगा |मेरे मन में उनके लिए बहुत इज्जत है | उन्होंने मेरी बहुत मदद की थी  | मैं  भी आपको हर संभव उचित सहयोग करूँगा, परन्तु इस आफिस में आप एक कर्मचारी हैं और काम के मामले में कोई लापरवाही बर्दाश्त नहीं करूँगा |”रघु ने धीरज को समझाते हुए कहा |” अब आप जायें और अपना काम करें  |” धीरज उठकर जाने लगा |

        “काश, आपने उस वक्त मेरी बात समझी होती |एक समय था,जब मैं आपके यहाँ काम करता था और आज आप मेरे अधीन काम करेंगे |सब  वक्त वक्त की बात है |” रघु ने धीरे से कहा |

        धीरज ने सुना और चुपचाप सिर झुकाये हुए कक्ष से बाहर निकल गया |

        

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       स्वलिखित

       सुभद्रा प्रसाद

       पलामू, झारखंड |

 

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