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वक्त रहते संभल जाती तो इतना सुनना नहीं पड़ता. –  निधि शर्मा 

“सुनो मम्मी जी क्या इस बार गर्मियों में गांव जाएंगी..! स्कूल में छुट्टियां पड़ रही है तो भाभी (जेठानी) भी अपने मायके जा रही है, और मेरी मां यहां आ रही है..! पूरे घर का काम मुझे खुद करना पड़ेगा फिर मां को अकेले मन कैसे लगेगा। भाभी तो रुकेंगी नहीं तुम कुछ ऐसा करो कि मम्मी जी एन वक्त पर यहीं रुक जाए।” प्रिया अपने पति की रौनक से कहती है। रौनक बोला “अब मैं मां से क्या कहूं कि आप गांव मत जाओ..! फिर भी तुम कह रही हो तो मैं एक बार मां से कह कर देखूंगा और भाभी अपने मायके जा रही है तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं..। तुम्हारी मां आ रही है तुम्हें खुश होना चाहिए, कौन से हमारे घर में कमरों की कमी है, आने दो मिलजुल कर रहेंगी।” और रौनक वहां से चला गया। शाम में प्रिया रौनक से बोली “सोच लो कल को अगर कुछ हुआ तो फिर मुझे ये मत कहना कि मैंने आपको चेताया नहीं था। और हां अपनी मां को भी समझा देना, मानती हूं उनके बेटे का घर है परंतु इस घर में मैं भी रहती हूं मेरा भी तो कुछ अधिकार हुआ।” रौनक बोला “घर का एक काम तुमसे वक्त पर नहीं होता बस लड़ाई झगड़े करना जानती हो।

भाभी सब खुद संभालती हैं,कभी सोचा है जब भी वो मायके जाती है तुम्हारी पसीने क्यों छूट जाते हैं..? शादी को कितने साल हो गए घर संभालना कब सीखोगी। मैं कह रहा हूं वक्त रहते संभल जाओ वरना बहुत पछताना पड़ेगा” इतना कहकर रौनक चला गया। दूसरे दिन रौनक अपनी मां सुमित्रा जी को बोला “मां प्रिया की मां यहां आएगी और आप चली जाएंगी तो वो अकेली हो जाएगी क्यों न कुछ दिन के लिए आप रुक जाओ वो दूसरे कमरे में ठहर जाएगी। आपको कोई दिक्कत तो नहीं होगी और हम सब तो हैं ही, कोई दिक्कत हुई तो मैं देख लूंगा।” सुमित्रा जी बोलीं “बेटा तुम मुझे पूछने आए हो या बताने आए हो..!

ये तुम्हारी सास हर साल यहां आ तो जाती है पर तुम्हारी पत्नी से खुद तो कुछ होता नहीं है, बता देना मुझसे उम्मीद न रखे कि मैं रसोई में उसकी मदद करूंगी अरे कम से कम अपनी मां के लिए हाथ चला लिया करें।” प्रिया से घर का एक काम पर नहीं होता था पर जब उसने ये बातें सुनी तो पति और सास दोनों से बहस हुई और घर में बहुत हंगामा हुआ। सुमित्रा जी ने उस दिन ठान लिया कि अब बहू को सही रास्ते पर लाना ही होगा। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने बेटे से बात और उसे समझाया। बेटा बोला “आप तो सब कुछ जानती है फिर भी ऐसा कह रही हैं आखिर मैं करूं तो क्या करूं..? मैं कोई जोरू का गुलाम नहीं हूं वो तो प्रिया की भाभी अपने मायके जाती है, सासु मां वहां अकेली हो जाती हैं तो प्रिया उन्हें यहां बुला लेती है। और मां आप अकेली कहां हो मैं भी तो हूं कितनी बार आपसे कहा कि प्रिया को घर और रसोई के काम सिखाया करो पर देखो कितने साल हो गए आप सास तो बन गई पर बहू को गृहिणी नहीं बना पाईं।” सुमित्रा जी बोलीं “हां बेटा बोलोगे ही जब खुद की पत्नी चाबी देती है तो उसके लिए खड़े हो जाते हो.! खुद की पत्नी एक काम नहीं करती तो उसका जिम्मेदार भी अपनी मां को ठहराते हो। मैं कह रही हूं तुम खुद भी कड़क बनो वरना बाद में तुम्हें भी पछताना होगा।” रौनक बोला “मां आप कह तो सही रही है परंतु अब प्रिया को रास्ते पर कैसे लाया जाए! मैं भी थक गया हूं उसकी आलसी आदत से, रोज किसी न किसी बात पर लड़की है इसका कोई तो उपाय होगा..?” सुमित्रा जी बोलीं “बेटा बहू को वक्त का महत्व मुझे सिखाना पड़ेगा ये मैंने सोचा नहीं था। उसकी मां ने तो उसे सिखाया नहीं अब ये सास सिखाएगी तुम चिंता मत करो, आने दो उसकी मां को देखना वो कैसे रास्ते पर आएगी।”




फिर सुमित्रा जी अपने कमरे में चली गईं। एक हफ्ते बाद प्रिया रौनक से बोली “मां को वक्त पर लेने चले जाना।” वो बोला “मुझे आज ऑफिस जाना है तुम चली जाओ।” प्रिया बोली “आप इतना भी मेरे लिए नहीं कर सकते..!” रौनक बोला तुमसे घर के काम नहीं होते, तुम अपनी मां को भी नहीं ला सकती आखिर तुमसे होगा क्या..?अच्छा ठीक है समय निकालकर चला जाऊंगा अब मैं दफ्तर जाऊं..?” और रौनक फटाफट चला गया । वो रास्ते भर यही सोचता रहा कि बीवी और मां के बीच में क्या कम पिसता था! कि अब तीन औरतों के बीच में लटटू की तरह नाचता रहूंगा। शाम में रौनक वक्त पर अपनी सास विमला जी के साथ घर में प्रवेश किया तो पत्नी तो बहुत खुश हुई। रौनक की मां बोली “बेटा तुम थक गए होगे दफ्तर से स्टेशन जो चले गए.!

थोड़ा आराम कर लो, दूसरे को भले हो न हो पर मुझे तुम्हारी चिंता है।” विमला जी समधन की भूमिका कैसे भूल सकती थीं तो उन्होंने कहा “अरे समधन जी आपका बेटा इतना भी नाजुक नहीं कि दफ्तर से रेलवे स्टेशन चला गया तो थक जाएगा! तब तो आप मेरी बेटी को शाबाशी दीजिए कि वो पूरा घर संभालती है।” सुमित्रा जी अपने चेहरे पर झूठी हंसी दिखाते हुए बोलीं “सही कहा समधन जी अब आप आ गई हैं तो रोज बहू के हाथ से गरमा गरम पराठे हमें भी वक्त पर मिलेंगे खाने को, अब तो मैं आपके साथ आराम से बैठूंगी और मजे से हम दोनों सास बहू की सीरियल देखेंगे” प्रिया हैरानी से सास को देखने लगी। रौनक समझ गया अब तो रोज घर में ऐसी घटनाएं होती लेती थी। सुमित्रा जी धीरे से रौनक से बोलीं “बेटा यही मौका है प्रिया को अपनी मां से रसोई के गुण सीखने दो।

सही वक्त पर बहू का आलस नहीं हटाया गया तो कल को बच्चे भी ऐसे ही हरकत करेंगे, मैं ये नहीं कहती कि बहू को आराम नहीं करना चाहिए परंतु इतना आलस शरीर के लिए अच्छा नहीं है वक्त रहते नहीं समझी तो बाद में पछताना पड़ेगा।” रोनक भी मां के साथ हो गया। एक रात प्रिया रौनक से बोली “अभी एक-दो हफ्ते हुए हैं और तुम्हारी मां घर में रोज नए बवाल खड़ी करती हैं। मेरी मां आई है इसका मतलब ये नहीं कि वो मुझसे काम करवाती रहेंगी, उन्होंने तो मेरा जीना हराम कर के रखा है। क्या कोई सास खुद की बहू को समझाने के लिए ऐसा तरीका अपनाती है, समझा लो अपनी मां को..।” रौनक बोला “एक बात बताओ क्या मैंने या मेरी मां ने तुम्हारे साथ कोई गलत व्यवहार किया. ? तुम क्या चाहती हो तुम्हारी मां के लिए भी मेरी मां खाना बनाए और मैं अगर रसोई में गया तो तुम्हारे मायके के लोग कहेंगे की प्रिया का पति रसोई में रहता है। सोच लो तुम्हारे ही मायके की बदनामी होगी और हर बात के लिए मुझे या मेरी मां को दोषी मत ठहराओ, अगर दिक्कत है तो अपनी मां को वापस भेज दो मुझे क्या थाली का बैगन समझ के रखी हो..!”उस रोज तो प्रिया भी रौनक के उस रूप को देखकर डर गई। एक रोज जब प्रिया की मां ने सुमित्रा जी की शिकायत की तो प्रिया बोली “मां हर घर में छोटी मोटी बातें होती रहती है। आप बात बात पर शिकायत करती है,पर मेरी सास को देखो न तो मेरे पास न अपने बेटे के पास आपकी शिकायत कभी नहीं करती हैं! मिल जुल कर रहना सीखिए।” प्रिया की मां बोली “तुम्हारी सास तुम्हें इतना सुनाती है और फिर भी तुम उनका ही पक्ष लेती हो..!”




प्रिया बोली “मां काश कि आपने मुझे वक्त का उपयोग करना सिखाया होता तो आज मुझे इतना कुछ सुनना नहीं पड़ता। एक तो मुझे रसोई का कोई काम नहीं सिखाया और न ही मेरी मदद करती हो, अब मैं खुद अपने सारे काम कर रही हूं तो फिर से वही सब दोहरा रही हैं।” सांझ में विमला जी मुंह लटकाए बैठी थीं तो सुमित्रा जी बोलीं “समधन जी हमें तो बहु की ऐसी बातों की आदत सी हो गई है बेटी की बात का क्या बुरा मानना..। अच्छा होता अगर सही वक्त पर आपने बेटी को हर काम सिखाया होता तो इतनी आलसी नहीं होती पर देखिए वो धीरे-धीरे सब सीख रही है।” विमला जी को एहसास हुआ कि शायद वो छोटी-छोटी बातों पर जल्दी ही नाराज हो जाती हैं जिसे उन्हें सुधारना होगा। कुछ रोज बाद घर से फोन आया विमला जी प्रिया से बोलीं “मेरे जाने का टिकट करवा दो तुम्हारी चाची भी आने वाली है, घर खाली मिलेगा तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा।” सुमित्रा जी बोलीं “समधन जी कहीं आप हमसे नाराज होकर तो नहीं जा रही हैं।

आपके आने से मेरी बहू में कितनी फूर्ती आ गई है, आलस उसके आसपास नहीं दिखता अब तो घर के सारे काम वक्त पर करने लगी है। वो तो आपके लिए मैं रुक गई थी वरना मैं तो कब की गांव चली गई थी।” प्रिया ने रौनक की तरफ देखा रौनक बोला “सच में तुम में बहुत बदलाव आया है हां मांनता हूं थोड़ी मेहनत ज्यादा करनी पड़ी पर वक्त रहते तुम संभल गई वरना सोचो आगे और बच्चों को कितनी दिक्कत हो जाती।” प्रिया के चेहरे पर मुस्कुराहट आई और अपनी मां से अपने बातों के लिए उसने क्षमा मांगी और अपनी मां को प्रेम पूर्वक उसने विदा कर दिया। समय रहते ही मां बेटे ने दोनों मिलकर परिस्थिति को सुधारा।

प्रिया अपने सारे काम वक्त पर करती थी कभी किसी को शिकायत का मौका तक नहीं देती थी। उसकी इस आदत से पति और सास दोनों उसकी तारीफ करते थकते नहीं थे, प्रिया को वक्त का महत्व समझ में आया तो घर में शांति का वास हुआ अंत भला तो सब भला। मित्रों जैसे बेटी बिगड़ जाती है तो मां उसे प्यार से या डांट कर समझझती है। क्या एक बहू को सीधे रास्ते पर लाने के लिए सास अगर कड़क बन जाती है तो क्या गलत करती है..? आपको ये कहानी कैसी लगी अपने अनुभव और विचार कमेंट द्वारा मेरे साथ साझा करें। कहानी को मनोरंजन एवं सीट समझ कर पढ़ें और ज्यादा से ज्यादा शेयर करें

बहुत-बहुत आभार🙏

 निधि शर्मा 

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