वक्त की लकीरें – भगवती सक्सेना

रिटायर्ड अफ़सर वर्माजी बहत्तर वर्ष की अवस्था मे बिस्तर पकड़ चुके थे, घुटने के कारण चलने से असमर्थ थे, फिर भी एक छड़ी के सहारे अपने सब काम कर लेते थे।

आज बहू कामायनी सुबह से व्यस्त दिख रही थी, होटल मैनेजर घर आकर क्रिसमस पार्टी की डिनर की लिस्ट नोट कर के ले गए थे। फौजी अफसर बेटा तो बॉर्डर पर डयूटी में था, असली ऐश बहू करती थी। सब कॉलोनी की लेडीज की आज रात किटी पार्टी थी, उसके बाद क्रिसमस पार्टी थी।

वर्मा जी भी सब डिशेस के नाम सुनकर ही बहुत खुश हो रहे थे। रोज कुक के हाथ का खाना खाकर बोर हो चुके थे।

शाम हुई तो माली का लड़का रामू आकर उन्हें सहारा देकर मकान के पिछले हिस्से के एक कमरे में ले गया, जो कभी कभार ही खुलता था। वो कबाड़ खाना था, पूरे घर का रद्दी सामान वहां बेतरतीब पड़ा था। किसी तरह एक खटिया में स्थान बनाकर रामू उन्हें लिटा गया। थोड़ी देर में वही रात का खाना लाया, ध्यान से वर्मा जी देखने लगे, रामू बोला, आपके लिए मैम ने सुबह की दो रोटी और सब्जी भेजी है। होटल का अधिक तेल वाला खाना नही खा पाएंगे , ऐसा उनका विचार है। और अब मैं दरवाजा बाहर से बंद करूंगा, पार्टी है, आप खाकर आराम से सो जाइये।

खाना खाकर वर्माजी लेट गए, पर नींद कहाँ इतनी आसानी से आती। जिंदगी से परेशान हो चुके थे, सब तरफ नजरें घुमाने लगे। एक पुराना सा पत्नी के मायके से मिला ड्रेसिंग टेबल कहीं कहीं से टूटा वहीं रखा था। उसमे पत्नी सरिता के माथे की कई बिंदी चिपकी हुई थी। फिर बैठकर धीरे से ड्रेसिंग टेबल के दराज खोलने लगे, तभी एक पायल का टूटा टुकड़ा उसमे दिखा और वो अतीत में उड़ चले।

वो भी अपनी उम्र में रंगीन मिजाज के थे, जब भी छुट्टियों में घर आते, अडोस पड़ोस की भाभियों से घिरे रहते, दिनभर मज़ाक चलता, बाइक से भाभीजी को घुमाने में मज़ा आता। जाहिर है जब पत्नी विरोध करती तो यही वर्माजी पत्नी को खूब खरी खोटी सुनाकर, कभी कभी हाथ भी चलाकर सजा देते, आज तुम रात भर इसी कोठरी में रहोगी, एक बार इसी लड़ाई में दरवाजे में पायल फस कर टूट गयी थी। 

आज वर्मा जी अपनी पत्नी की यादों में खोए थे, वो पायल का टुकड़ा और कई बिंदी हाथ मे लेकर बिलख पड़े, सुनो, तुम इतनी जल्दी क्यों चली गयी, मैं माफी भी नही मांग पाया। वक्त अपने आप को दोहराने मेरे ही पास आकर खड़ा हो गया है, माफ कर दो न।

#वक्त 

स्वरचित

भगवती सक्सेना

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