वक्त कब कौन से मोड़ पे लाके छोड़ दे … – मनीषा मारू

दिव्या की शादी को साल भर हुए थे।

घर परिवार सब अच्छा देख मां बाबा ने ब्याहा था।

लेकिन कहते हैं ना की…. किस्मत और वक्त कब कौन से मोड़ पे लाके छोड़ दे मालूम ही नहीं चलता।

साल भार में पति करण महाजन का आना जाना लगा रहा।

जाहिर हैं नई नई शादी कभी दिव्या का करण से मिलन के फूल खिलते तो कभी जुदाई से अंतर्मन में पतझड़ का सावन नैनो से बरसता।

आखिर बार मिलन होगा ये तो दिव्या को मालूम ना था लेकिन इसबार की जुदाई से दिव्या की तड़प करण को जाने से रोकना चाह रही थी।

फिर करण ने आराम से समझाया बस छुट्टी होते ही आ जाऊंगा एक फौजी की पत्नी यू रोती नहीं हंसते–हंसते विदा करती हैं।

चालों अब अपनेआप को संभालो तुम्हारे ऊपर ही तो घर परिवार की अब सारी जिम्मेदारी हैं दादाजी ,मां– बाबा …तुम मजबूत रहोगी तभी तो सबको संभाल पाओंगी।

इतने में सुमित्रा जी करण की मां और पिता जितेन महाजन बेटे को विदाई तिलक लगाने आ जाते हैं।

करण सबसे विदा लेकर अपने दादाजी के पास जाता हैं। कारण को देखते ही दादाजी गिरते अंसुवों को मुंह घुमा पोंछते हैं। और फिर पलट के कहते हैं आ मेरे जहाबाज शेर …

करण दादाजी के पांव धोख खाता हैं दादाजी आशीष देते हुए कहते हैं…



“वतन से प्यारा कोई महबूब नही।

तिरंगे से प्यारा कोई कफन नही।।”

जा मेरे देश के शेर मां तुझे बुला रही हैं।

परिवार के सभी करण को विदा कर देखते ही रहते हैं जब तक करण उनकी आंखों से ओझल नहीं हो जाता।

कुछ दिनों बाद करण देश के रक्षा की लड़ाई लड़ते हुए शहीद हो जाता हैं।

इधर दिव्या खुशखबरी सुनती हैं खुशी का माहोल हो जाता हैं। सब करण का बेसब्री से छुट्टी में आने का इंतजार कर रहें होते हैं।

लेकिन ये क्या…. सुमित्रा जी देखते ही समझ जाती हैं करण की जगह इस बार करण के फौजी दोस्त  ही केवल दिखाई दे रहें हैं…घर में खुशी की जगह मातम ले लेती  हैं।

वर्दी देख मां की अश्रुधार बहनें लगती हैं… पिता हिम्मत बांध दादाजी को संभालते हैं।

इतने में दिव्या को करण की कही बाते याद आ जाती हैं।

देश की रक्षा में शहीद हुआ हैं आपका पोता, पुत्र ,पति और इस नन्ही सी जान का पिता… एक फौजी के घरवालें कभी आंसू नहीं बहाते।

दिव्या अपनी अंतर पीड़ा और दर्द को छोड़ सबको संभालती हैं।

इधर दिव्या का पूरा समय रहता हैं जोरों का अंधी तूफान   बरसात होने लगती हैं दादाजी की तबियत उसी रात के अचानक खराब हो जाती हैं।



जितेन जहां फोन लगता नेटवर्क काम नहीं करता अब क्या करे?

दिव्या कहती हैं मां शादी से पहले अपने बाबा की जीप चलाती थी और शादी के बाद करण के साथ जब भी घूमने जाती में जरूर चलाती आप लोग दादाजी को करण की जीप में लेकर बैठे में जीप चला पास के हॉस्पिटल तक ले जाऊंगी।

सुमित्रा तुम्हारी हालत ऐसी हैं कभी भी हॉस्पिटल जाना पड़ जाएं ऐसे में बेटा तुम गाड़ी कैसे चला पाओंगी?

मां में अभी ठीक हु और दादाजी की हालत ऐसी हैं नही की कुछ सोचने का समय  हैं…. कही हमें देरी ना हो जाए ।

कड़कती बिजली और अंधी तूफान का अपने हौसलों और हिम्मत से सामना करती कर्तव्य, साहस और बलिदान का जुनून भारती सबको ले हॉस्पिटल पहुंची।

सारी फार्मल्टीज पूरी कर दादाजी का इलाज शुरू करवाया।

इधर दिव्या को दर्द शुरू हो गया अपने आप को भी जैसे तैसे  खुद से डॉक्टर से बात कर भर्ती हो जाती हैं और एक हस्ट –पुस्ट पुत्र को जन्म देती हैं सुमित्रा जी गोद में लेते ही ….बिल्कुल करण की छवि हैं।

मां ….दादाजी और पापा को कह दिजिए उत्सव मनाएं एक फौजी के घर फिर से फौजी ने जन्म लिया हैं।

हां बेटा तुम्हारे आत्मविश्वास पे हमें गर्व हैं जिस साहस के साथ तुम हमें हॉस्पिटल लाई और दादाजी की जान बचाने अपनी भी परवाह ना करी। करण  देश की रक्षा पर शहीद हुआ तो तुमने भी अपने फर्ज से मुंह ना मोड़ा।

सही मायने में तुम एक फौजी की पत्नी का धर्म निभाया।

 

तो दोस्तों दिव्या ने क्या सहीं किया ? अपनी प्रतिक्रिया जारूर दे।

#वक्त 

मनीषा मारू

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