‘ वक्त बदलता अवश्य है ‘ – विभा गुप्ता

 ” वो देखो, शराबी की बीवी जा रही है।” चौराहे पर बैठे लोगों में से एक ने कहा तो रुक्मणी धीरे- से बुदबुदाई, फिर से वही शब्द…..ओफ़्फ! और हमेशा की तरह अपने कानों पर हाथ रखते हुए वह वहाँ से निकल गई। 

        ‘ शराबी की पत्नी ‘ हमेशा से रुक्मणी की पहचान नहीं थी।दस बरस पहले जब रामलाल से उसका विवाह हुआ था,तब रामलाल एक फैक्ट्री में फोरमैन था।स्वभाव का सरल और उदार हृदय का मालिक था उसका पति।परिवार में सास थीं, ससुर तो उसके विवाह के एक बरस बाद ही स्वर्ग सिधार गए थें, एक ननद थीं जो अपने ससुराल में खुश थी और एक जेठ-जेठानी।जेठानी के दो बेटे थें और उसकी दो बेटियाँ।उसके परिवार ने अच्छे-बुरे दिन साथ में मिलकर बिताये थें, इसीलिए वह खुद को बहुत भाग्यशाली मानती थी।

         अपनी सीमित आय में भी रामलाल अपनी पत्नी और बेटियों को सारी खुशियाँ देता था।उसकी इच्छा थी कि दोनों बेटियाँ खूब पढ़े, आगे बढ़े।इसीलिए उसने ओवरटाइम करना शुरु कर दिया जिससे उसकी एकस्ट्रा इनकम होने लगी।वह उन रुपयों को बेटियों के उज्जवल भविष्य के लिए बचाने लगा।

          एक दिन की बात है, उसके एक सहकर्मी ने बेटा पैदा होने की खुशी में अपने घर में एक पार्टी रखी थी।रामलाल ने सोचा,पार्टी खत्म होते ही घर चला जायेगा।पार्टी में सभी दारु भी पी रहें थें लेकिन रामलाल ने हाथ तक नहीं लगाया।फिर किसी एक ने कोका-कोला की बोतल में शराब मिलाकर उसे धोखे से मिला दी।पहले तो उसे अच्छा नहीं लगा लेकिन फिर ऐसा नशा चढ़ा कि सुबह तक उसे घर जाने का होश भी न रहा।

         घर आकर उसने रुक्मणी से माफ़ी माँगते हुए कहा कि तुम्हारी कसम रुक्मा,अब शराब को हाथ न लगाऊँगा।लेकिन कहते हैं ना,नशे की लत एक बार लग जाए तो फिर छूटती नहीं है।फैक्ट्री की ड्यूटी खत्म होते ही रामलाल के पैर भी खुद ब खुद शराब के अड्डे की ओर मुड़ने लगे और उसी दिन से बुरे वक्त ने उसका दामन थाम लिया।रामलाल देर से घर आने लगा,कभी पत्नी पर तो कभी बच्चों पर बेवजह चिल्लाने लगता,पैसों के लिये रोज रुक्मणी से झिकझिक करता और न देने पर एक दिन तो उसने पत्नी पर हाथ भी उठा दिया था।बेटियों के उज्जवल भविष्य के लिये जमा की हुई पूँजी धीरे-धीरे रामलाल की शराब पर भेंट चढ़ती चली गई।सास ने एकाध बार बेटे को समझाना चाहा,फिर उन्होंने भी चुप्पी साध ली और जेठ-जेठानी…।कहते हैं ना कि जब वक्त बुरा होता है तो अपने भी मुँह फेर लेते हैं तो भला जेठानी कैसे चूक जाती।वे कभी रामलाल को शराबी-निकम्मा कहतीं तो कभी रुक्मणी को बेटियाँ पैदा करने के लिए कोसती।एक दिन तो उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि शराबी की बेटियों को कौन ब्याहेगा।रुक्मणी सोचती,क्या यही मेरी बेटियों की नियति है?या कभी वक्त बदलेगा।




          फ़ीस जमा न होने के कारण जब बेटियों का नाम स्कूल से कटने की नौबत आ गई तब रुकमणी ने सोचा,वो दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे।इसी विश्वास के साथ उसने बच्चों की पढ़ाई को नियमित रखने का फ़ैसला किया और दो घरों में झाड़ू-बरतन का काम करने लगी।बातों-बातों में जब उसने अपनी मालकिन को बताया कि वह दसवीं पास है तो मालकिन उसे आँगनबाड़ी केन्द्र ले गई और फिर वह वहीं एक सहायिका के रूप में काम करने लगी।जितनी तनख्वाह उसे मिलती थी,उसमें वह बच्चों के पालन-पोषण करने के साथ-साथ कुछ बचा भी लेती थी।रामलाल तो अपनी कमाई शराब में ही उड़ा रहा था।आँगनबाड़ी से ही घर वापस आ रही थी तो…। ‘ शराबी की पत्नी ‘शब्द उसके कानों में पिघले शीशे के समान लग रहें थें।उसने तय किया कि वह रामलाल की शराब पीने की लत छुड़वायेगी,लेकिन कैसे? यह सवाल उसके मन को व्यथित कर रहा था।

            आँगनबाड़ी के सुपरवाइज़र ने जब रुकमणी को चिंतित देखा तो कारण पूछा।पहले तो वह हिचकचाई लेकिन फिर उसने उन्हें अपनी समस्या बता दी।

         अगले ही दिन सुपरवाइज़र साहब रुकमणी को ‘नशा मुक्ति केंद्र ‘ पर ले गये।वहाँ के संचालक से बात करने पर उसे थोड़ी आशा बँधी लेकिन इतने पैसे वह कहाँ से लगाएगी, सोचकर वह जाने लगी तो दीवार पर ‘निःशुल्क’ पढ़कर उसके चेहरे पर चमक आ गई।उसने रामलाल का रजिस्ट्रेशन करा दिया और अगले दिन से ही वह रामलाल को नशा मुक्ति केंद्र पर लाने लगी।हालांकि रामलाल को यहाँ तक लाना उसके लिए आसान न था,लेकिन इरादे बुलंद हो तो असंभव कार्य भी संभव हो जाता है।




        एक-दो विज़िट के बाद तो रामलाल ने भी मदिरा पान से तौबा करने की ठान ली।अब वह फैक्ट्री का काम पूरा करके नियमवत मुक्ति केन्द्र आने लगा।देर-सबेर ही सही,पर वक्त बदलता ज़रूर है।रुक्मणी के जीवन से अब बुरे वक्त की विदाई और अच्छे वक्त का आगमन होना शुरु हो गया।उसकी खुशियाँ फिर से लौटने लगी।उसने बेटियों का दाखिला भी प्राइवेट स्कूल में करा दिया था।

         जल्दी ही रामलाल की शराब की लत भी छूट गई, पहले की तरह ही अब वह समय पर घर आने लगा और पत्नी तथा अपने बच्चों के साथ समय बिताने लगा।जो लोग रुकमणी को शराबी की पत्नी कहकर हिकारत की दृष्टि से देखते थें,अब वही लोग उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते।रुक्मणी ने कभी हार नहीं मानी,विपरीत परिस्थितियों का भी डटकर सामना किया क्योंकि उसे विश्वास था कि एक दिन वक्त अवश्य बदलेगा और आज वह समाज के लिए एक मिसाल बन गई।

                        — विभा गुप्ता

          #वक्त 

              बुरा वक्त सभी के जीवन में आता है,उससे घबराना नहीं चाहिये।धैर्य के साथ अपना कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि वक्त बदलता अवश्य है।जैसा कि रुक्मणी ने अपने बुरे वक्त में भी हिम्मत नहीं हारी और अपनी सूझ-बूझ व मेहनत से अपने पति को नशा-मुक्त करके अपने परिवार की खुशियाँ वापस ले आई।

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