वक्त  – प्रियंका सक्सेना

“मां, आज खाने में शाही पनीर‌ बनाना, प्लीज़।” सोहम ने लाड़ से कहा तो सुधा ने बोला ,” ठीक है बेटा। तुम जब तक अपना सारा होमवर्क और टेस्ट की तैयारी कर लो मैं शाही पनीर और मटर-पुलाव बना देती हूं। ” “मेरी प्यारी मां॑!” “बस-बस! मक्खनबाजी नहीं, पढ़ाई ‌करो।” धीरे से प्यार से गाल‌ छूते हुए सुधा किचन में चली गई। “मम्मा, मेरे लिए इडली बनाओ ना!” बेटी सिया ने किचन में आकर डिमांड रखी। “सिया, इडली बनाती हूॅं तुम पोयम याद करो झटपट।” सिया ने फटाफट सूजी का इंस्टेंट बैटर बना लिया, थोड़े दही के साथ चुटकी भर इनो डालकर दस मिनट में इडली तैयार हो गई। सिया इडली साॅस के साथ खाती है अभी छोटी है तो सांभर बनाने की जरूरत नहीं। शाही पनीर और साथ में लौकी की तरकन वाली सब्जी बना कर सोहम और सासु माॅ॑ को खाना लगा दिया। नवीन को भी बैठाकर गरमागरम खाना खिलाया। झटपट रोटी बनाकर सुधा ने भी साथ ही खाना खा लिया।

डाइनिंग टेबल पर मानो सारी खुशियां उमड़ आया करती हैं जब परिवार साथ में एक दूसरे का दुख सुख जाना करता है, ढेरों किस्से साझा किया करता है। आइए मिलते हैं सुधा के परिवार से जिसमें सुधा, उसके पति नवीन, सासू माॅ॑ रमा देवी और सुधा व नवीन का पुत्र सोहम और पुत्री सिया है। रमा देवी के पति और नवीन के पिताजी बद्रीनाथ जी का देहावसान नवीन की शादी के दो साल बाद हो गया था, वे प्राइवेट जाॅब में थे। रमा देवी घरेलू महिला हैं, सुधा स्कूल में अध्यापिका है और नवीन बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर है। सोहम आठ वर्ष का है तीसरी कक्षा में पढ़ता है। सिया तीन साल की है और जूनियर केजी में पढ़ने इसी सेशन से जाने लगी है। कुल मिलाकर घर‌ में सौहार्दपूर्ण वातावरण रहता है। सभी लोग रमा देवी को आदर, सम्मान और प्यार देते हैं। दादी की तो जान बसती है सोहम और सिया में। वक्त बीता…. सिया और सोहम थोड़े बड़े हुए , रमा देवी की भी उम्र बढ़ रही थी।सुधा उसी तरह प्रेम पूर्वक बच्चों और सासु माॅ॑ का ख्याल रखा करती। सोहम को उत्तर भारतीय मसालेदार व्यंजन पसंद हैं वहीं सिया को दक्षिण का डोसा।

रमा देवी को अब कम मिर्च मसाले वाला खाना अच्छा लगता है, सुधा सभी की मांग के मुताबिक भोजन की व्यवस्था करती। किसी दिन सोहम के लिए कुछ स्पेशल बनाती तो किसी दिन सिया स्पेशल भोजन बनता परंतु कभी भी सासु माॅ॑ को‌ तकलीफ़ नहीं देती। रमा देवी आशीषों से सुधा को‌ नहला देती। इसी भांति दिन हंसी-खुशी व्यतीत हो रहे थे कि जब सोहम पंद्रह साल का हुआ तब एक दिन मांजी को अचानक से हृदयाघात हुआ और सुधा ने बिना किसी के कहे अपनी नौकरी छोड़कर घर पर रहने का निर्णय लिया, मांजी को उसकी ज्यादा जरूरत है। बड़ों का साथ है तो कुछ कम में भी गुजारा कर‌ लेंगे,सुधा की ऐसी सोच को पति नवीन ने भी माना। बच्चों ने भी भरपूर साथ दिया , मन से पढ़ाई करते, फिजूलखर्ची नहीं करते। परिवार में आई इतनी बड़ी उलझन का हल सकारात्मक सोच से सुधा ने निकाल लिया। वक्त कब किसी का इंतज़ार ‌करता है,आज सुधा और नवीन की पच्चीसवीं सालगिरह है, सोहम ने एमबीए कर एक मल्टीनेशनल कंपनी ज्वाइन की है सिया इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष में पढ़ रही है। बच्चों और मांजी ने मिलकर इस आयोजन को भव्य रूप दिया, ननिहाल से भी नानी-नाना, मामा-मामी, मौसी-मौसाजी, उनके ममेरे-मौसेरे भाई-बहन बुलाया।




बहुत मना किया सुधा ने परंतु बच्चों ने मम्मी-पापा की माला एक्सचेंज सेरेमनी करवाई। बढ़िया से होटल में पार्टी रखी गई, डिनर के बाद सबने जमकर डीजे पर डांस किया। रात में रमा देवी ने दोनों को अपने कमरे में बुलाया, सिया और सोहम भी वहीं मौजूद हैं। रमा देवी ने नवीन और सुधा के हाथों में कुछ दिया, दोनों ने देखा तो वह रिटर्न एअर टिकट थे‌ मलेशिया के पूरे हफ्ते भर के। नवीन और सुधा ने एकसाथ पूछा,” मां, मांजी, ये क्या!” “बेटा ये हम तीनों की तरफ़ से तुम्हारी सालगिरह का गिफ्ट है।” “परंतु इतना महंगा?‌नहीं- नहीं हम नहीं लेंगे।” “अरे! महंगा सस्ता कुछ नहीं है सुधा। तुम्हें कभी भी नवीन के साथ घूमने का मौका नहीं मिला। अब बच्चे बड़े हो रहे हैं, ये सब प्लानिंग सिया और सोहम की है।” रमा देवी ने बताया “आप सभी के बिना हम कहीं घूमने नहीं जाएंगे।” सुधा बोली “हमारी प्यारी मम्मी! हमारी तो दुनिया आप ही हो। कभी अपने बारे में भी सोच लिया करो। सिल्वर जुबली एनीवर्सरी है, बाहर की सैर करके आओ आप लोग।

यह वक्त, यह अवसर सिर्फ आप दोनों का है, मम्मी-पापा। मौका भी है, दस्तूर भी है! बहुत समय लगा पर देखो अच्छा वक्त आ ही गया ‌ना! अगली बार हम सभी चलेंगे घूमने एकसाथ, पक्का प्राॅमिस!” दोनों बच्चों ने सुधा के गले में बाहें डालकर कहा “मेरी दुनिया तुम दोनों से ही है बच्चों!” सुधा की आंखें डबडबा गईं और आवाज़ में भी नमी आ गई। ये सब देखकर नवीन ने माहौल बदलने के लिए कहा,”और मैं कुछ नहीं?” “आप तो सभी कुछ हों।” सुधा शरमाते हुए बोली। “लो भइया! कैसा वक्त आ गया है, बहू ने सास की तो छुट्टी ही कर‌ दी!” मांजी भी चुहलबाज़ी में कहां पीछे रहने वाली थीं “मांजी आप तो इस घर की, हम सबकी जान हों।‌

आपका आशीर्वाद है, तभी तो घर में खुशहाली है।” सुधा ने मांजी के चरण-स्पर्श करते हुए कहा मांजी अपनी भोली-भाली बहू‌ पर न्योछावर हो गई… दोस्तों, यह कहानी ‌एक साधारण से परिवार की है कोई छल-षड़यंत्र नहीं , कोई क्लाइमेक्स नहीं बस एक सीधी-सादी सी कहानी है जहां सभी लोग हिलमिलकर रहते हैं, बुजुर्गो का सम्मान बरकरार है, बच्चे माता-पिता‌ और बड़े लोगों को आदर सम्मान दिया करते हैं। माॅ॑ सुधा ने अपना जीवन घर को बनाने में, बच्चों को अच्छा इंसान बनाने में लगाया है। पिता नवीन ने भी अपनी माताजी और परिवार के प्रति कर्तव्य का निर्वाह किया। देखा जाए तो आम भारतीय परिवार की कहानी है बिना किसी मिर्च मसाले की, वक्त के साथ तालमेल मिलाकर चलते हुए परिवार की कहानी है जहां सभी एक दूसरे की फ़िक्र करते हैं… बिना किसी लाग लपेट की मेरी यह कहानी आपको कैसी लगी? आशा है आप को मेरी पारिवारिक संबंधों पर आधारित, मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण यह कहानी पसंद आई होगी।

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 धन्यवाद। -प्रियंका सक्सेना (मौलिक व‌ स्वरचित‌)

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