वह वक्त गया – रोनिता कुंडू : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : नाश्ते की टेबल पर शिखा सबको नाश्ता पड़ोस रही थी और उसके चेहरे पर थकान साफ नज़र आ रही थी… कि तभी अंकित कहता है…. शिखा नाश्ता करके तुम एक-दो घंटे सो लेना…. गुड़िया तब तक अपने दादू, दादी के साथ खेल लेगी….

लता जी (अंकित की मां ):   क्यों रात को चौकीदारी कर रही थी क्या…? जो सुबह सवेरे सोएगी….? घर की बहू जब तब सोए अच्छा थोड़े ही ना होता है….

अंकित:   मां…! जब तब सोती है क्या शिखा…? आपको भी पता है गुड़िया रात को उठ उठ कर खेलती है… फिर घंटों बाद सोती है…, तो शिखा को भी जागना पड़ता है…. मेरी सुबह ऑफिस होती है इसलिए वह मुझे भी नहीं जगाती…. इस वजह से उसकी नींद पूरी नहीं हो पाती है… तो थोड़ी देर सुबह सो लेगी तो उसकी भी सेहत ठीक रहेगी….

मां:   बेटा….! यह तो हर मां की कहानी है…. तुझे क्या लगता है तू ऐसे ही बड़ा हो गया…? सिर्फ जन्म देने से अगर कोई मां बन जाता, तो यूंही नहीं मां का इतना मान बढ़ पाता… बच्चे को जन्म देने के बाद से उसे अपने सारे सुख सुविधाओं की भी बलि देनी पड़ती है…. यूं ही नहीं सब कहते है की मां बनना इतना आसान नहीं होता…..

अंकित:  मां…! मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है आपसे मैं शाम को बात करता हूं…. आप ज़रा 2 घंटे गुड़िया को संभाल लेना… यह बोलकर अंकित निकल जाता है….

इधर नाश्ता खत्म करके शिखा अपने कमरे में सोने चली गई…. गुड़िया को दादी के पास रखकर… सास तो गुस्से से उबल रही थी और बड़बड़ करती हुई दीनदयाल जी से कहती है…. यह आजकल की लड़कियां..!

पहले ससुराल आकर  पति को अपने वश में करती हैं, और फिर धीरे-धीरे पूरे घर को अपनी नौकरी पर लगा देती हैं…. कर भी क्या सकते हैं…? जब अपनी कोख का जना ही इनके पल्लू से बंध जाए, यह तो फिर भी पराई है….

दीनदयाल जी:   अरे लता…! क्यों ऐसी बातें कर रही हो…? सालों पहले जब मैं अपनी मां की बात मानता था और तुम्हारी नहीं…. तुम तब भी रोती थी, कहती थी… मेरे जैसे श्रवण कुमार को शादी ही नहीं करनी चाहिए थी…. पर अब जब तुम्हारा श्रवण   कुमार अपनी पत्नी की परवाह कर रहा है तो, वह भी तुमसे सहन नहीं हो रहा….

लता जी:   चुप रहो जी…! आपको तो बस मौका चाहिए मेरे खिलाफ बोलने का…. पता नहीं…! मेरी किस्मत इतनी खराब क्यों है….? पहले पति परवाह नहीं करता था और अब बेटे को भी परवाह नहीं है… फिर गुड़िया की तरफ देख कर कहती है…. तू भी बन जाना अपनी मां की तरह ड्रामेबाज़…..




दीनदयाल जी:  अरे इसे क्यों गलत पट्टी पढ़ा रही हो…? लाओ इसे मेरे पास दो…. अब 2 घंटे में खेलूंगा इसके साथ… ताकि मम्मी अच्छी नीन्नी कर सके… हैं ना मेरी लाडो…?

लता जी मन ही मन सोचती है… पता नहीं ऐसा कौन सा जादू किया है इस शिखा ने सब पर…? के सब इसके ही गुणगान करते रहते हैं…. लगभग 2 घंटे बाद शिखा उठ कर, नहा धोकर गुड़िया को लेने सास के कमरे में जाती है, तो देखती है पापा जी ने गुड़िया को सुला दिया है…

उसे देखकर सास कहती है…. हो गई नींद पूरी…? चाहे तो और एक 2 घंटे सो ले क्योंकि गुड़िया तो सो रही है….

शिखा:  नहीं मम्मी जी…! मैं खाना बनाने जा रही हूं… अगर यह उठे तो आवाज़ लगा दीजिएगा…

दीनदयाल जी:   हां बहू…! तू जा, मैं बुला लूंगा तुझे….

दोपहर को सभी खा पीकर सो जाते हैं तो गुड़िया खेल रही होती है… शिखा भी गुड़िया के साथ खेल रही होती है… शाम को गुड़िया सोती है तो शिखा की भी आँख लग जाती है…

तो सास गुस्से में खुद ही चाय नाश्ता बना कर खा लेती है… कुछ देर बाद अंकित आ जाता है, और मां को यूं अकेले चाय नाश्ता खाते देख  शिखा के बारे में पूछता है…

मां:   सो रही है… तूने सुबह कहा उसे सोने देने तो, मैंने गुड़िया को अपने पास ही रखा…. अभी दोपहर की सोई घर में बुजुर्ग सास, ससुर को भूलकर सो ही रही है… बेटा..! अब तो मुझे लगता है मुझे सारे काम फिर से करने की आदत डालनी पड़ेगी… पता नहीं अब खाना भी खुद बनाकर ही खाना पड़े….

अंकित कमरे में जाकर देखता है शिखा और गुड़िया सो रहे हैं…. उसने शिखा को धीरे से जगाया और बाहर आने का इशारा किया…

अंकित:   यह क्या शिखा…? मानता हूं तुम्हारी नींद पूरी नहीं होती, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम जब तब सो जाओ…? और मां को सारे काम करने पड़े…. आखिर उनकी भी तो उम्र हो गई है, उन्हें भी तो आराम की ज़रूरत है…,




शिखा:  मुझे माफ कर दीजिए….! पूरी दोपहर खेलने के बाद गुड़िया शाम को सोई और उसे सुलाते सुलाते कब मेरी आँख लग गई कुछ पता ही नहीं चला…

सास:   हां पता भी कैसे चलेगा…? तुझे तो यह पता जो है कि सास तो है, कर ही लेगी सब कुछ…

अरे तेरी सास तो कितनी भली है, जो तेरी तकलीफ समझती है अगर मेरी सास होती ना, तब तुझे पता चलता…!

दीनदयाल जी:   हां बहू….! इनकी सास होती ना, तब तो तुम कब की अलग हो गई होती…. जैसे यह हुई थी…. क्योंकि सास की बाते सुने, इतनी हिम्मत नहीं थी इनमें…. तू तो फिर भी सुन लेती है….

लता जी:   क्या बोल रहे हैं आप…?

दीनदयाल जी:   लता…! जो जैसा होता है, वह पूरी दुनिया को वैसे ही देखता है… मेरी मां तो तुम से डरती थी… अरे एक कप चाय के लिए भी तुम उन्हे कितना सुनाती थी और आज अपनी बहू पर अत्याचार कर रही हो…. मत भूलो…. तुम्हें भी बुढ़ी होना है….

आज तो #वक्त और शरीर साथ दे रहा है, कल ना भी दे….तब एक कप चाय के लिए कहीं तरसना ना पड़े….? क्योंकि हमारा व्यवहार हमारे सामने वाले को अच्छा या बुरा बनाता है…. किस ज़माने में जी रही हो तुम पता नहीं…?

ह वक्त गया जब सास के अत्याचार बहुएं  सिर झुका कर सहती थीं…. अब तो अगर बहू ने पलट कर अपने पर हुए अत्याचार का जवाब दे दिया, तो पूरा बुढ़ापा ही नर्क बन जाएगा…. अरे बहू को अपना मानोगी तो वह भी तुम्हें दिल से अपनाएगी…

आज उसकी तकलीफ तुम देखोगी , तो वह कल तुम्हारी तकलीफ समझ पाएगी…. वरना जाकर वृद्धा आश्रमों  के चक्कर लगाकर आओ, तब पता चल जाएगा….

शिखा:   पापा जी…! यह कैसी बातें कर रहे हैं आप…? मैं क्या आप लोगों को ऐसी बहू लगती हूं…?

दीनदयाल जी:   बहू…!तुम ऐसी नहीं हो…. पर वृद्धाश्रम में आने वाले हर बुजुर्ग सिर्फ बेटे या बहू के वजह से ही नहीं होते, कुछ अपनी वजह से भी होते हैं…. हम सामने वाले की तकलीफ अगर नहीं समझेंगे, तो वह भी क्यों समझे…?

लता जी चुपचाप खड़ीं अपनी गलतियों को समझ तो रही थीं, पर शायद उन्हें यह कबूल करने में समय लगे…

धन्यवाद 

#वक्त 

स्वरचित/मौलिक

रोनिता कुंडू

V M

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!