वादा – सोमा सुर : Moral Stories in Hindi

अवनि के पापा का तबादला इस छोटे से शहर में हुआ था। कक्षा ५ में पढ़ने वाली बैंक मैनेजर की बेटी अवनि अब तक बड़े शहरों में ही रही थी। छोटे से शहर के एकमात्र कांवेंट स्कूल में उसका दाखिला हो गया था। नये स्कूल में सारे बच्चों के अपने दोस्त थे, अवनि से कोई दोस्ती नहीं कर रहा था।

उसी स्कूल के माली की बेटी थी, आरूषी। गरीब परिवार की मेधावी आरूषी के भी कम ही दोस्त थे। कहीं न कहीं छोटी उम्र में ही अपने और दूसरे बच्चों के अंतर को समझने लगी थी। जब उसके पिता स्कूल के बागीचे में साफ सफाई करते और उसी समय बच्चों की आधी खाने की छुट्टी होती, सारे बच्चे मुंह छिपा कर, आँखों से इशारे करते। आरूषी सब कुछ जानते भालते अनजान बनने का नाटक करती।
अवनि साल के आधे में स्कूल में आयी थी, तो  टीचर ने उसका काम पूरा

करवाने की जिम्मेदारी आरूषी को सौंपी। बस एक अदद दोस्त से महरूम दोनों ही एक-दूसरे का सहारा बन गई। साल बितते बितते दोनों पूरे स्कूल में दो शरीर एक जान कहलाने लगीं। अवनि के माता-पिता भी आरूषी की यथा संभव मदद कर दिया करते थे। जहां पहले आरूषी पुरानी किताबों से पढ़ती थी। छठी कक्षा में अवनि के माता-पिता ने उसके साथ ही आरूषी की भी नयी क़िताबें खरीदी , नया यूनीफार्म सिलवाया। नये जूते, स्कूल बैग, पानी की बोतल पाकर तो आरूषी खुशी से फूली नहीं समा रही थी। अवनि की माँ कुछ ज्यादा ही स्नेह करने लगी थी इस बिन माँ की बच्ची से। अवनि के साथ ही आरूषी के लिए भी खाने का डिब्बा जाने लगा।

आरूषी के पिता किशन तो गदगद हो गए कि उनकी बेटी से उनके अलावा भी कोई इतना प्यार करता हैं। बेटी के सिर पर हाथ रख कर अक्सर कहते, “बेटा अवनि का साथ तू कभी मत छोड़ना। उसकी हर कठिनाई को दूर करने की कोशिश करना।” आरूषी भी सिर हिला कर हां कहती।

           इंसान का चाहा कभी पूरा हुआ है भला। अवनि के पिता का तबादला फिर दूसरे शहर हो गया। चार साल का साथ छूट गया। फोन तो आरूषी के घर था नहीं सिर्फ घर का पता लें अवनि चली गई। थोड़े दिनों में अवनि के नयी जगह में नये नये दोस्त बन गए। मोबाइल आ जाने के बाद अवनि को चिट्ठी लिखना भारी लगता। आरूषी की महीने में एक चिट्ठी आ जाती पर स्वाभिमानी आरूषी घर की परिस्थितियों के बारे में कुछ न लिखती। दोनों ही ग्रेजुएट हो चुके थे।

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             इधर कुछ दिनों से आरूषी की कोई चिट्ठी नहीं आती थी। अवनि की माँ को चिंता होती परन्तु मस्तमौला अवनि कहती, “आप बेकार में चिंता कर रहे हो। एग्जाम देकर चिल कर रही होगी। या फिर आगे की तैयारी।” तीन महीने बाद आरूषी की चिट्ठी आई। उसने लिखा था मेरी पटना में जॉब की बात चल रही है मैं इस महीने के आखिर में आउंगी। बेफिक्र अवनि ने सोचा पटना आयेगी तो मिलने तो जरूर आयेगी।
तीन साल बाद….

                 अवनि का घर दुल्हन की तरह सजा है। आखिर माता-पिता की एकलौती संतान है। उसकी शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। अवनि की माँ को बहुत अफसोस हो रहा था भाग दौड़ के बीच आरूषी और उसके पिता को शादी का कार्ड डाक द्वारा ही भिजवाया था, किसी को पत्र देकर भेज नहीं सकीं थी।

न जाने कार्ड पहुंचा भी था कि नहीं। कोई नहीं आया तो मन में संशय था। अवनि हँसी खुशी विदा हो गई। परन्तु उसकी खुशी ज्यादा दिन तक  नहीं रही। एकलौती संतान, माता-पिता के प्रेम के कारण घर का कोई भी काम नहीं सिख पायी थी। अनगढ़ कामों की वजह से संयुक्त परिवार में हँसी का पात्र बन जाती। तानों उलहानाओं ने नयी नवेली दुल्हन के मन में वैवाहिक जीवन के प्रति विरक्ति पैदा कर दी। संयुक्त परिवारों के पुत्रों की विडंबना

होती है कि उन्हें प्रेम तो बहुत मिलता परन्तु अपनी इच्छा व्यक्त करने का अवसर नहीं मिलता और पत्नी के पक्ष में तो बिल्कुल भी नहीं। ऐसी ही तानों से तंग आकर एक दिन अवनि दुनिया छोड़ने का निश्चय कर छत पर गई ही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई। अवनि ने दरवाजा खोला तो एक उसकी हम उम्र लड़की खड़ी थी। “पहचाना नहीं मैं आरूषी!!”
  “आरूषी तू यहां कैसे? कहां रहती है? मेरे घर का पता किसने बताया?”


“अरे अरे अंदर तो आने दें। मैं यही पास में जॉब करती हूं। लंच में दो घंटे का ब्रेक होता है। नीचे से तुझे छत पर देखा तो पहचान गई।”  अवनि ने आँखे नीची कर ली। “क्या हुआ मुझे बता।”

         न जाने कौन सा सम्मोहन था कि अवनि ने सब कुछ उसे बता दिया। “बस इतनी सी बात है मैं हूँ ना मैं तुम्हें सब सिखा दूंगी। मैं रोज इस समय आउंगी। तुम्हें खाना बनाने से लेकर घर को कैसे व्यवस्थित रखना है सब सिखा दूंगी पर मैं आती हूं ये तुम किसी को‌ ना बताना। इस समय घर के आदमी बाहर गए होते हैं और औरतें अपने कमरे में सो रहीं होती है। यही सही समय है।”

           अब रोज आरूषी आने लगी पर जिस दिन घर में कोई होता वो नहीं आती। धीरे-धीरे अवनि हर काम में चतुर हो गई। घरवाले भी उसमें अंतर देख रहे थे। अब सास,ननद, जेठानी के ताने कम होने लगे। घर की परेशानियां ‌न होने से पति का संग भी अच्छा लगने लगा। अभी वो खुश रहने ही लगी थी कि आरूषी ने घर आना छोड़ दिया। अवनि जब भी फोन नम्बर की बात करती थी वो इधर-उधर‌ के बहाने करके नहीं देती थी। जो पता दिया था वो भी झूठा निकला। अवनि को आरूषी की चिंता होने लगी। वो मायके में आई, पिता को बताया। जैसे भी हो आरूषी को ढूंढना पड़ेगा।     

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        माता-पिता हतप्रभ ऐसा कैसे हो सकता है। तीन साल पहले आरूषी के पिता की मृत्यु हो गई थी। तीन चार महीने बाद उसे जॉब मिली। पटना जाने के लिए निकली परन्तु वापस ‌नहीं‌ आयी। सुना है  जहां जॉब के लिए गई थी उन्होंने उसका बलात्कार करके मार डाला। उसकी सड़ी गली लाश तीन दिन बाद पुलिस को मिली। आई कार्ड से उसकी पहचान हुई। अवनि की शादी के बाद शगुन की मिठाई देने वो गए तब उन्हें पता चला। फिर तुम्हारे पास कौन आया था?? अवनि की माँ आरूषि का आई कार्ड दिखाते हुए पूछा।


“वह आरूषी ही थी माँ। आज से नहीं पिछले तीन सालों से मेरे साथ अजीब-अजीब बातें हो रही थी। एक्सीडेंट होते-होते रूक गए।‌कितनी बार उसने मेरी जान बचाई। उस दिन भी छत में….”
          हाँ‌, वो बार-बार कहती थी, “बाबा ने हमसे वादा लिया था तुम्हारा ख्याल रखेंगे। ख्याल तो रखेंगे ही आखिर तुम मेरी एकलौती दोस्त हो।”

सोमा सुर

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