वाह पापा ,दोस्ती हो तो आप जैसी  – मीनाक्षी सिंह 

अनीता,घर की नई नवेली बहू ,जिसके ब्याह को अभी 8 माह ही हुए थे ,घूंघट किये ,घर के  बाहर गेट पर कूड़े वाली गाड़ी में कचरा फेंक रही थी कि तभी उसे एक बुजूर्ग आदमी मैली कुचैली धोती कुर्ता पहने हाथ में लाठी लिए ,आँखों पर चश्मा लगाये  ,अनीता के घर की तरफ टकटकी लगाये, दिखायी दिये ! अनीता जल्दी से अंदर आयी ! उसकी सास गांव गयी हुई  थी ! पतिदेव नौकरी पर ! ससुर जी नहा धोकर बनियान ,अंगोंछा पहने पूजा कर रहे थे ! अनीता को समझ ही नहीं आ रहा था कि वो ससुर जी से कैसे बताये कि कोई बाहर खड़ा हैँ ! कभी ऐसा मौका ही नहीं लगा कि वो कुछ बात करे उनसे ! सासू माँ हमेशा मौजूद रहती ! वहीं सब बातें नरेश जी (ससुर जी ) तक पहुँचा देती ! 5-10 मिनट तो सोचा अनीता ने कि पूजा खत्म हो जाए तो बताऊँ ! पर ससुर जी पूजा में ध्यानमग्न थे ! उसने दो -तीन बार दरवाजे पर आवाज की ! 

नरेश जी ने पूँछा – कोई काम हैँ बहू ?? 

अनीता (घूंघट में ) धीमी आवाज में  बोली – वो पापा ,बाहर कोई खड़ा हैँ ! 

नरेश जी – पूँछकर आ कौन हैँ ,मैं पूजा कर रहा हूँ ! बैठने को बोल देना ! अभी आता हूँ ! 

अनीता – पापा ,मैं कैसे ?? 




नरेश जी – बांवरी हैँ क्या ,हमारे बाद सब तुझे ही संभालना हैँ ,ज़माना बदल गया हैँ ! जा पूँछकर आ ! 

अनीता जल्दी से बाहर आयी ! अभी भी वो बुजूर्ग दोनों हाथों से लाठी पकड़े दरवाजें को ही देख रहे थे ! 

अनीता – नमस्ते अंकल जी ,आप कौन ? अन्दर आ जाईये ! 

बुजूर्ग – मैं जगन्नाथ ,ये नरेश का ही घर हैँ ना बेटी ! कई साल पहले आया था ! अब ठीक से पहचान नहीं पा रहा ! 

अनीता – हाँ जी ,आप सही पते पर आयें हैँ ! अन्दर आईये ! 

बुजूर्ग – बेटी ,पहले तू पूँछ आ ! बहुत पुराना गरीब  दोस्त हूँ नरेश का ! पता नहीं कहीं भूल ना गया हो ! 

अनीता जल्दी से अंदर आयी ! पापा ,कोई जगन्नाथजी हैं गेट पर ! पूँछ रहे हैँ आप जानते हो उन्हे ?? 

नरेश जी ,जैसे हाल में थे वैसे ही रफतार से दौड़ते हुए गेट पर आयें ! 

आते ही जगन्नाथजी को गले से लगा लिया ! रूँधे गले से उनका हाथ पकड़ उन्हे अन्दर ले गए ! सोफे पर बैठाया ! 

नरेश जी – कहाँ था जगन्नाथ इतने सालों से तू ,जब भी गांव जाता तेरे बारें में पूँछता ! पर किसी को तेरा कुछ पता नहीं था ! 




नरेश जी और जगन्नाथ जी बचपन के गहरे दोस्त थे ! नरेश जी जात से पंडित ,और जगन्नाथ जी शूद्र ! पर कभी नरेश जी के घर वालों ने उनकी गहरी दोस्ती के कारण भेदभाव नहीं किया ! जगन्नाथ जी का नरेश जी के घर आना जाना था ! दोनों को नरेश जी की अम्मा एक ही थाली में खाना देती ! बड़े मन से दोनों पेट भर खाते और खेलने निकल ज़ाते ! कभी नरेश जी जगन्नाथ जी के घर सोते  तो कभी दोनों नरेश जी के घर ! साथ ही सरकारी विद्यालय में पढ़ते ! जगन्नाथ जी के यहाँ पैसों का बहुत अभाव रहता ! इसी वजह से जगन्नाथ जी छोटी सी उम्र में मजदूरी करने लगे ! नरेश जी बहुत दुखी रहते ,अब उतना मेल  मिलाप ना हो पाता दोनों का ! जगन्नाथ जी का विवाह सोलह साल की उम्र में ही हो गया ! पढ़ाई भी बंद हो गयी क्यूंकी अपनी पत्नी के लिए भी दो वक़्त की रोटी का प्रबंध जो करना था ! पर नरेश जी उनके घर आते ,ज़ाते रहते ! दोस्ती में कोई भी कमी नहीं आयी थी ! पर अब नरेश जी को परिवार वालों ने 18 वर्ष की उम्र में बाहर पढ़ाई के लिये भेज दिया ! दोनों दोस्त ,बिछड़ते समय राम लक्ष्मण की तरह रोये ! 

फिर दोनों का साथ छूट गया ! नरेश जी पढ़कर बड़े अधिकारी बन गए ! जगन्नाथ जी ,पत्नी बच्चों की रोटी का प्रबंध करने के लिए दिन रात जो काम मिलता करते रहे ! 

नरेशजी के शहर के घर में एक बार जगन्नाथजी अपने प्रिय मित्र से मिलने आयें थे ! पर उस समय नरेश जी नौकरी के काम से बाहर गए हुए थे ! पूँछकर गेट से ही लौट गए थे ! 

जगन्नाथ जी – नरेश ,तुझे तो पता हैँ मैं पढ़ा लिखा तो था नहीं ,जब तक शरीर ने साथ दिया मजदूरी करता रहा ,पेट भरता रहा सबका ! उमा (पत्नी ) भी लोगों के यहाँ काम करती ! पर जब बुढ़ापे में शरीर में काम करने की शक्ति ना रही तो बच्चे अपने पत्नी बच्चों को ले निकल गए ! रह गए मैं और उमा ! 




दोस्त बड़ी उम्मीद से आया हूँ तेरे पास ,तेरे महल जैसे घर में पैर रखने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि कहीं मेरे पैरों से मैला ना हो जाए ! जगन्नाथजी बिलख पड़े ! 

नरेश जी ने कस्के जगन्नाथ जी का हाथ पकड़ा ! बोल यार ,मेरा दिल बैठा जा रहा हैँ ! कुछ तकलीफ हैँ ?? 

जगन्नाथजी – उमा अब नहीं बचेगी ,मेरी उमा बहुत बिमार हैँ ! खाना पीना सब छोड़ दिया हैँ ! फिर भी उम्मीद में उसे लिए इधर उधर सरकारी अस्पतालों में भटकता रहता हूँ ! उसे अपनी आँखों के सामने तड़पता नहीं देख सकता नरेश ! बोलते बोलते जगन्नाथ जी की सांस फूलने लगी ! अनीता तुरंत नाश्ता ,पानी लेकर आयी ! 

नरेश – कहाँ हैँ भाभी ,कहाँ छोड़ आया उन्हे ऐसी हालत में ?? 

जगन्नाथजी – वो चौराहे पर बैठा आया हूँ ; ये सरकारी अस्पताल भी महंगी दवाई के पैसे लेते हैं ! मैं कहाँ से लाऊँ ? 

नरेश जी – चुपकर ,चल जल्दी ! जब तक तू कुछ खा पी ले ! मैं कपड़े बदलकर  आया ! भाभी को ऐसी हालत में छोड़ आया ! ला नहीं सकता था ! 

जगन्नाथजी – तुझे बुरा ना लगे तो मैं ये खाना अपनी धोती में बांध लूँ ! उमा जब कुछ खायेगी ,तभी मैं उसके साथ कुछ खा लूँगा ! सिस्कने लगे ! 

नरेश जी भी भारी आवाज में  बोले – अनीता बेटा ,सारा खाना पीना ड़िब्बों में पैक कर दे ! हम भाभी को लेने जा रहे हैँ ! अपनी मम्मी (सासू माँ ) को फ़ोन कर देना ,शाम तक आ जायें ! सभी को भाभी की सेवा करनी हैँ ! वो यहाँ से बिल्कुल ठीक होकर ही जायेंगी ! 

अनीता – जी पापा ,अभी लायी खाना ! 

नरेशजी ने ड्राईवर से गाड़ी निकलवायी ! जगन्नाथजी का हाथ पकड़ बैठाया ! अनीता ने भी दोनों के पैर छूये ! जगन्नाथजी ने धोती से मुड़ा हुआ पचास का नोट निकाला ,अनीता के सर पर हाथ  रख उसके हाथ में थमा दिया ! बेटा ,तेरे इस गरीब ससुर पर बस यहीं हैँ देने के लिये ! स्वीकार कर लेना !  दोनों दोस्त निकल  गए एक बेजान औरत में जान फूंकने ! 

अनीता की आँखें भी ये दृश्य देख नम हो गयी ! वो भी मन ही मन सोच रही कि पापाजी कहाँ इतने सम्पन्न ,फिर भी अपने गरीब दोस्त से कोई भेदभाव नहीं किया ! दोस्ती हो तो ऐसी ! 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह 

आगरा

2 thoughts on “वाह पापा ,दोस्ती हो तो आप जैसी  – मीनाक्षी सिंह ”

  1. Bahut bahut sundar rachna, aapne to Krishn aur Sudama ko is kaliyug me lekar upasthit jar diya.🌹🙏🌹

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