वृन्दा सब्जी घर – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

वृन्दा का छोटा सा परिवार था, परिवार मे दस साल की बेटी और छः साल का एक बेटा था। पति एक हाउसिंग सोसायटी मे गार्ड थे । वृन्दा बहुत ही खुशमिजाज औरत थी, छोटी-छोटी चीजो मे खुशियां ढूंढ लेती थी….या यूं कहिए खुश रहना उसकी फिदरत थी। पर शायद होनी को वृन्दा का खुश रहना मंजूर नही था।

एक दिन ड्यूटी जाते वक्त सड़क दुघर्टना मे वृन्दा के पति की मौत हो जाती है। वृन्दा यह सूचना पाते ही बिलख-बिलख कर रोने लगती है। दोनो बच्चे भी वृन्दा से चिपट कर रोने लगते हैं। वृन्दा ने अपने आॅ॑सू

पोछते हुए….दोनो बच्चो को शान्त कराया और अपने आॅ॑चल मे समेट लिया।

कुछ दिन किसी तरह गुजारा हो गया…परन्तु अब वृन्दा के सामने समस्या आ गई, घर का खर्चा कैसे चलेगा और बच्चो की पढ़ाई-लिखाई कैसे होगी? इसी उधेड़बुन मे लगी हुई थी तभी दरवाजे पर एक बूढ़े सब्जी वाले ने दस्तक दीया।

बिटिया सब्जी लोगी…. सब्जी वाले बाबा ने आवाज लगाते हुए पूछा।

नही बाबा, मैं सब्जी तो नही ले पाऊंगी…. वृन्दा ने बड़े दुखी मन से कहा।

बिटिया मै तुम्हारा दुख समझ सकता हूं, ये कुछ सब्जियां हैं ले लो….. मुझे पैसे मत देना। अपने पिता की तरह ही मुझे समझो। बिटिया अगर बुरा न मानो तो एक बात कहूं…

हां हां बाबा कहिए…. वृन्दा ने कहा।

बिटिया हम लोग पढ़े लिखे तो हैं नही इसलिए कोई नौकरी तो कर नही सकते,क्यों न तुम अपने घर मे ही सब्जी की दुकान खोल लो, इससे कुछ आमदनी हो जाएगी…घर भी संभल जाएगा और बच्चो की पढ़ाई लिखाई भी हो जाएगी।



लेकिन बाबा कोई भी काम शुरू करने के लिए पैसे चाहिए होते हैं… और मेरे पास तो एक फूटी कौड़ी भी नही है। फिर कैसे मै यह काम शुरू कर सकती हूं?

हां बात तो सही कह रही हो बिटिया… बिटिया तुम तो जानती ही हो कि मेरे घर मे सिर्फ हम बुढ़िया बुड्ढे ही है। एक जवान बिमार बेटा था  इलाज के अभाव मे मर गया।  तब से हमने घर मे ही सब्जी की दुकान खोल ली। दुकान अच्छी चल गई कोई दिक्कत नही होती। लेकिन अब हम बूढ़े हो गए हैं, बुढ़िया भी बिमार रहती है। मुझसे अब अकेले इतना नही हो पाता। क्यों न तुम हमारी दुकान संभाल लो।

यह सुनते ही वृन्दा की आॅ॑खो मे चमक आ गई। पति के देहांत के बाद, उसके अपनो ने उससे मुह मोड़ लिया। उसे कुछ भी नही सूझ रहा था कि वो क्या करे ऐसे मे बाबा फरिश्ता बनकर आ गए। उसने झट से बाबा के सामने एक शर्त रख दी।

हां…हां….बिटिया कहो क्या शर्त है…. बाबा बोले।

बाबा मै आपकी दुकान तभी संभालूंगी जब आप दोनो लोग हमारे साथ रहेंगे, मुझे माता-पिता का साया मिल जाएगा और बच्चो को दादा दादी मिल जाएंगे।

सब्जी वाले बाबा की आंख से आॅ॑सू मोती बन कर ढुलक गए। बाबा ने कहा बिटिया इस उम्र मे हमे और क्या चाहिए…. बच्चो का प्यार और अपनो का साथ…बस एक हॅ॑सता खेलता परिवार।

अब बाबा और बाबा की पत्नी वृन्दा के साथ वृन्दा के घर मे रहने लगे। बाबा ने अपनी दुकान का सारा सामान वृन्दा के घर मे शिफ्ट कर “वृन्दा सब्जी घर” के नाम से एक नई दुकान खोल दी। बाबा बाहर से सब्जी लाने का काम करते थे। वृन्दा और बाबा की पत्नी दुकान देखते थे। बाबा ने अपने घर और दुकान को किराए पर उठा दिया। वृन्दा का घर फिर से खुशियों से महकने लगा।

#पराए_रिश्तें_अपना_सा_लगे

प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रयागराज उत्तर प्रदेश 

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