विश्वास नही होता पर सच है – पूजा मनोज अग्रवाल

बात आज से करीब दस ग्यारह वर्ष पुरानी है,, मेरी एक बचपन की सहेली थी मनीषा ,,, हम दोनों सहेलियों को बचपन से ही एक साथ घूमना – फिरना ,मौज – मस्ती करना बहुत अच्छा लगता था  और सोने पर सुहागा कि दोनों सहीलियो का विवाह भी एक ही शहर में हो गया । विवाह के बाद भी हम दोनों सखियों का यूं ही मिलना जुलना जारी रहा ।

जिंदगी में सब बढ़िया था सिवाय मनीषा के सिर दर्द की बीमारी । उसे बचपन से ही भयंकर सिर दर्द की शिकायत थी । कई बार अलग-अलग डॉक्टरों को दिखाने पर भी उचित इलाज नहीं मिल पा रहा था । उसके सिर में दर्द इतना भयंकर होता कि वह मारे दर्द के छटपटा जाती और बेहोश हो कर गिर जाती ,,,अक्सर इस दर्द के चलते उसे अस्पताल में दाखिल कराना पड़ता था ।

एक दिन मैं मनीषा से इसी सिलसिले में फोन पर बात कर रही थी , कि उसी समय मेरी छोटी ननद सुहानी का मेरे यहां आना हुआ । बातों बातों में मैंने सुहानी से मनीषा का जिक्र कर दिया । यह सुनकर उसने मुझे बताया ,,,” भाभी ,  राजस्थान के जयपुर से आगे एक सूरज गढ़ नाम का गांव है , जहां इस इस प्रकार के भयंकर सिर दर्द का इलाज होता है ,, और इलाज भी कुछ खासा मुश्किल और महंगा नहीं है । वे मरीज की नाक में कुछ दवाई डालते है और पुरानी से पुरानी सिरदर्द की शिकायत भी बंद हो जाती है । मेरी मानो तो आप अपनी सहेली मनीषा को वही दिखा लो ” ।

सुहानी का सुझाव मुझे अच्छा लगा मैंने मनीषा से बात की और हम दोनों ने अपने पतिदेव के साथ राजस्थान जाने का प्लान कर लिया । अगले दिन सुबह करीब – करीब आठ बजे हम लोग अपनी गाड़ी से सूरजपूरा गांव के लिए निकल गए  । दोनों सखियों को अपने पतियों का साथ और बचपन की यारी  ,,  सफर तो सुहाना होना ही था । मनीषा और उसके पति राघव , मैं और मेरे पति हम चारों अपना सफर में मस्ती करते हुए शाम तक वैध जी की हवेली पहुंच गए । वहां जाकर हमने देखा कि हम लोग अकेले ही नहीं थे वरन कई लोग उस हवेली में दूर-दूर से सिर दर्द का इलाज करवाने के लिए आए हुए थे  ।




बहुत से लोग हमसे पहले कतार में थे,,, हमने भी वहां अपना नंबर लगा दिया । हमें अगले दिन सुबह नौ बजे का नंबर दिया गया था । अभी सिर्फ पांच बजे थे तो हम चारों पास के ही एक खेत में घूमने के लिए निकल गए । हम सब लोग शहर से थे ,,,, बाप दादाओं के गांव में आना जाना कम ही होता था ।  इतने समय बाद गांव में घूमना एक रोमांच पैदा कर रहा था । पास ही एक खेत था , हरा – भरा खेत देखकर हम दोनों सखियों से रहा ना गया ,,वहां हमने बहुत सी फोटो खिंचवाई । हरे – भरे खेत , हरी फसल और  गांव की पगडंडियां , कुएं  देख कर मन प्रसन्न हो रहा था । अब अंधेरा होने को था ,, तो  हम चारों उनकी हवेली में वापस लौट आए ।

सभी लोगों के खाने का प्रबंध उन्हीं के घर था। आने वाले सभी आगंतुकों के खाने की व्यवस्था उनके घर की औरतें स्वयं अपने हाथों से , अपनी रसोई में करती हैं । हमने देखा वे सब मिट्टी के चूल्हे पर रोटी बना रही थी । सभी लोगों को जमीन पर एक कतार में बैठा कर भोजन करवाया जा रहा था । हमने भी खुले आकाश तले बैठकर एकसाथ भोजन किया ।  मिट्टी के चूल्हे पर बनी रोटियों का वह स्वाद आज भी राघव और मेरे पतिदेव भुलाए नहीं भूलते हैं । जल्दी ही खाना निपटा कर हम चारों अपने कमरे में सोने के लिए पहुंच गए ।

हम चारों का सोने का प्रबंध एक बड़े से कमरे में था ।  सुबह के निकले हुए हम लोग बहुत थक चुके थे ,,, हम चारों का मन आराम फरमाने के लिए आतुर था । राघव और मेरे पतिदेव तो थके मांदे जल्द ही नींद के आगोश में डूब गए । मैं और मनीषा कई दिनों बाद मिले थे तो हम दोनों सहेलियां खूब देर तक बतियाती रहीं और लेटे-लेटे उसी पलंग पर सो गईं  ।

   रात के करीब ढाई बज रहे थे , मेरी आंख खुली और मैंने मनीषा की तरफ करवट ली,,,,, ज्यों ही  मेरी अधखुली नजर उसकी और गई तो मैं क्या देखती हूं ,,,मनीषा नींदों में ही मुस्कुरा रही थी ,,और अपनी दोनों बांहें ऊपर उठाकर ऐसा अभिनय कर रही थी कि मानो वह अपने हाथों में चूड़ियां पहन कर देख रही हो । वह बारी-बारी से दोनों हाथों की चूड़ियों की तरफ देखती ,,,,और उन्हें अपनी बाहों में गोल- गोल घुमाने लगती ।




उसे ऐसा करते देख मेरे होश फाख्ता हो गए मेरे मुंह से आवाज भी ना निकल पा रही थी । अपने धड़कते दिल को काबू कर मैं वहां से दौड़ी और अपने पति के  समीप जाकर लेट गई । सभी इतने थके हारे थे कि किसी को जगाना मैंने उचित ना समझा,,, इतना भयानक दृश्य देखकर मेरी आंखों से नींद नदारद हो गई थी । पूरी रात मनीषा का वह दृश्य मेरी आंखों के सामने चलचित्र की भांति चलता रहा ।

अगले दिन सुबह दवा लेने का हमारा दूसरा ही नंबर था । उस वैध ने मनीषा के नाक में दवा डाल थोड़ी देर नाक मसली और नाक के रास्ते दो – एक  छोटे छोटे सफेद कीड़े निकाल दिए,,,।  कुछ ही मिनटों में मनीषा को ठीक लगने लगा था ।

यह इलाज हम सभी को बड़ा विचित्र तो लग रहा था ,, परंतु मेरे मन में तो सिर्फ रात वाला किस्सा ही दौड़ रहा था , मुझे वहां से जल्द से जल्द वापस लौटने की इच्छा हो रही थी ।  दवा लेने के बाद हम लोग तुरंत ही  दिल्ली वापसी के लिए रवाना हो गए।

लौटते में पतिदेव गाड़ी ड्राइव कर रहे थे और साथ वाली सीट पर राघव बैठे थे । मैं और मनीषा पीछे सीट पर बैठे हुए थे तभी मैंने सभी को रात वाला किस्सा सुनाया , मेरे पतिदेव मुझ पर हंसने लगे और बोले ,” पूजा ,,,तुम बहुत डरावनी फिल्में देखती हो इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा होता है ,, यह तुम्हारे मन का वहम है या फिर तुमने कोई  सपना देख लिया है “। किसी ने मेरी बात पर विश्वास नहीं किया और इसे मजाक में ले लिया ।

परंतु यह बात कोई वहम नहीं , बल्कि शत प्रतिशत सच है,, मैं नहीं जानती ऐसी भूत या आत्मा जैसी कोई चीज होती भी हैं या नहीं । परंतु मेरे साथ ऐसी कुछ घटनाएं हुईं हैं ,जिसमें मैने इन चीज़ों को महसूस किया है । वैसे मैं उस दिन के बाद दोबारा कभी सूरजपुरा की तरफ नहीं गई । और हां , अब मनीषा का सिर दर्द पहले की तरह भयंकर नहीं होता और न ही कभी उसे उस दिन के बाद अस्पताल में दाखिल करने की नौबत आई  ।

स्वरचित मौलिक

पूजा मनोज अग्रवाल

दिल्ली

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