विश्वास की डोर – नताशा हर्ष गुरनानी

आज रजत बहुत उदास और परेशान है उसे समझ नही आ रहा है वो करे तो क्या करें।

कल तक जो परिवार उसका अपना था आज एक पल सब पराए लगने लगे उसे।

क्यों सुनी उसने अपने मम्मी पापा की बात कि उसे अनाथालय से गोद लिया था।

ओह मैं अनाथ था इन्होंने मुझ पर अहसान किया

कितना प्यार करते है मम्मी पापा मुझे

और मैं अनाथ

मेरे कारण रूही को भी कम प्यार मिला क्योंकि उसका प्यार मेरे हिस्से आ गया।

अब घर का बटवारा भी होगा तो उसमे भी रूही को कम मिलेगा।

नही नही मैं ऐसा नहीं होने दूंगा मैं चला जाऊंगा इस घर से, इन सबसे दूर कही भी, अब मैं इतना बड़ा तो हो गया हूं कि कही भी कुछ भी छोटा मोटा काम करके अपना पेट पाल सकता हूं।

और कमरे में आकर एक छोटा सा बैग लेकर उसमे दो तीन जोड़ी कपड़े लेकर वो निकला कमरे से सामने देखा तो उसके मम्मी पापा खड़े थे।




रजत कहा जा रहे हो बेटा?

मम मम मम्मी वो वो

क्या बेटा कहो ना कहा जा रहे हो।

मम्मी पापा मुझे पता चल गया है कि मैं आपका असली बेटा नही हूं आपने मुझे गोद लिया है।

नही मेरे बच्चे कहकर सुनीता रजत से गले लगकर रोने लगी।

मेरे बच्चे हम तुम्हे ये बात बताने ही वाले थे पर लगा अभी तुम्हारी बारहवी की वार्षिक परीक्षाएं चालू हो ने वाली है बस वो हो जाए फिर हम दोनो तुम्हे सब सच बताने ही वाले थे बेटा।

सुनो रजत बेटा सुमित ने प्यार से गले लगाते हुए रजत से कहा, बेटा आज तक हमने कभी भी तुम्हे पराए होने का अहसास कराया क्या बेटा?

हां बेटा तुमने तो हमारे आंगन में खुशियां ही खुशियां बिखेर दी है पहले मैं मां बनने को तरस रही थी पर तुम्हारे आने के बाद मां बनने का सुख मुझे मिला और तुम्हारे कदम इतने सौभाग्यशाली थे कि मेरी कोख में रूही भी आ गई।

बेटा अगर तुम ऐसे चले गए तो हमारा क्या होगा हम तो जीते जी मर जाएंगे बेटा।

हमारी गलती बस इतनी है कि हमने तुम्हे कुछ नही बताया और ये बात तुम्हे इस तरह पता चली पर बेटा हम पर अविश्वास नही दिखाओ।




हम दोनो तुमसे बहुत प्यार करते है।

इतने में रूही आ गई और रजत से गले लग कर कहने लगी भैया मुझे छोड़कर जाओगे तो मै राखी किसे बांधूंगी।

मुझे नहीं पता ये अनाथ वनाथ मुझे बस इतना पता है कि आप ही मेरे भाई हो सिर्फ मेरे प्यारे भाई जिसका हाथ पकड़ कर मैंने चलना सीखा, स्कूल में किसी ने कुछ कहा तो उस समय मेरा बड़ा भाई मेरे साथ खड़ा था।

भैया प्लीज़ आप कोई गलत कदम ना उठाइए और हमे छोड़कर ना जाइए प्लीज भैया।

रजत, रूही, सुनीता, सुमित चारो आज गले लगकर रो रहे थे आज उनका घर बिखरने से बच गया।नताशा हर्ष गुरनानी
भोपाल

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