विदाई – अनामिका मिश्रा

आज निर्मला बिस्तर पर लेटी पुरानी यादों में खो गई थी। काफी दिनों से बीमार थी। निर्मला के दो बेटे थे। छोटा बेटा प्रदीप लाडला था निर्मला का। कहने लगा, “मां चलो तुम हमारे साथ रहना, मैं देख रहा हूं, तुम यहां आराम से नहीं हो, भाभी भी तुम्हारा ख्याल नहीं रख पा रही है,रीना तुम्हारी खूब सेवा करेगी,.. वो तो कह रही थी, मां जी को ले आइए हमारे साथ रहेंगी!”

पुत्र मोह में निर्मला अपने छोटे बेटे प्रदीप के साथ रहने लगी।

रीना की सेवा से खुश होकर उसने अपने सारे जेवर उसे दे दिये।

उसके कुछ दिनों के बाद ही रीना के स्वभाव और व्यवहार में अंतर दिखने लगा। रोज़ निर्मला की शिकायतें प्रदीप से होने लगीं।

प्रदीप को भी अब प्यारी मां में बुराइयां नजर आने लगीं थीं।

उसने कह दिया, “मां मैं तुम दोनों की रोज़ की किच-किच से परेशान हो गया हूं,.अब तुम यहां से विदा ले लो और चली जाओ भैया भाभी के पास!”

निर्मला को समझते देर न लगी। वह अपना सामान ले,..चली गई बड़े बेटे बहू के पास।

बड़ी बहू ने निस्वार्थ भाव से सेवा किया।


पर उसे देने के लिए अब निर्मला के पास कुछ बचा ही नहीं था।

आज पड़ी पड़ी वो यही सोच रही थी कि…अचानक सीने में दर्द होने लगा, उसने बड़े बेटे बहू को जोर से पुकारा… वे दौड़ कर आये और तब तक,एक हिचकी में ही,..निर्मला की संसार से विदाई हो गई।

जब निर्मला के पार्थिव शरीर को जमीन पर लिटाया गया, तो उसके सिरहाने एक चिट्ठी मिली।

उसके बड़े बेटे ने उस चिट्ठी को पढ़ा! उसमें लिखा था, “प्रदीप ने मेरा सब कुछ ले कर, मुझे उसी वक्त अंतिम विदाई दे दिया था,…आज तुम्हें देने के लिए मेरे पास आशीर्वाद के सिवा कुछ भी नहीं,…मैं पहचान नहीं सकी हमेशा तुम्हें और पूजा को गलत  समझती रही,..आज इस संसार से विदा ले रही हूं…अपनी मां को माफ कर देना!”

चिट्ठी पढ़कर दोनों ही रो पड़े।

उधर प्रदीप के मन में पश्चाताप भी नहीं रहा,कि मां की अंतिम विदाई हो चुकी हैं।

स्वरचित अनामिका मिश्रा

झारखंड जमशेदपुर

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