वैंपायर की मुहब्बत – नीलिमा सिंघल

आस्था बचपन से ही कल्पनाओं के सागर मे गोते लगाती रहती थी,,,कभी उसको लगता कहीं से ऐसी गाड़ी मिल जाए जो बटन दबाने से बड़ी हो जाए जो तैर सके उड़ सके,,,,

कभी सोचती उसको सिंड्रैला की तरह परी मिल जाए जो उसको बहुत प्यार करे और अपनी जादू की छड़ी से सब कुछ अच्छा कर दे,,,,

जब कॉलेज आयी तो रास्ते मे एक वीरान हवेली पड़ती थी जो बाहर आज भी भव्य थी,,,,उसको देखते देखते आस्था के मन की कल्पना मे रंग भरने लगे थे उसको डर लगने लगता था क्यूंकि उसके ख्यालो मे वहां ड्राकुला रहता था जो रात को खासकर पूर्णिमा और अमावस को निकल कर खून पीता है,,, 

जब वो अपनी सखियों को ये बताती तो सब उसका मज़ाक बनाती अब तो सभी प्रोफेसर भी समझने लगे थे आस्था को वो भी कभी कभार मज़ाक कर लिया करते,,,,,

एक दिन आस्था अपनी सहेली नीलम से मिलने गयी जो कॉलेज के पीछे ही रहती थी वो दिल्ली जा रही थी हमेशा के लिए तो उसने एक छोटी सी पार्टी की थी जिसमें आस्था को बुलाया था,,,माँ ने परमिशन तो दे दी थी पर जल्दी आने की हिदायत देकर। 

जैसे ही शाम का धुंधलका गहराया आस्था को माँ की बात याद आयी और नीलम से बोलकर बाहर आ गयी,,नीलम ने बहुत कहा कि वो अपने पापा या भाई के साथ उसको घर छुड़वा देती है पर मना करते हुए आस्था ने कदम बढ़ा दिए,,

10 मिनट बाद आस्था उसी हवेली जैसे घर के पास से निकली और अनजाने डर ने उसके कदम तेज हो गए,,

अचानक से उसको अपने पीछे किसी के होने का अहसास सा हुआ उसने कनखियों से देखा तो ब्लैक कपडों में एक लड़का दिखाई दिया,,आस्था ने कदम तेज कर दिए,,तभी वो लड़का आस्था के सामने आकर खड़ा हो गया गोरा चिट्टा रंग नीली आँखों से देखता आस्था को अच्छा लगा,,,

लड़के ने कहा “मेरा नाम इवान है और तुम—-“


“आस्था ” आस्था ने घबराते हुए जबाव दिया,,क्यूंकि किसी लड़के से बात करने का पहला मौका था co.ed मे पढ़ने के बाद भी घरवालों की सख्ती ने उसके अंदर कोई हिम्मत ही नहीं छोड़ी थी,,,

 “मैं कल ही यहां आया हूं इसी घर मे रहता हूं”,,,,हवेली की तरफ इशारा करते हुए इवान ने कहा 

“इस हवेली मे,,,,,पर यहां तो,,, यहां तो कोई नहीं रहता “डरते हुए आस्था बोली 

मालूम है दादाजी की हवेली थी अमेरीका जाने के बाद से खाली पड़ी है अब मैं यहां आया हूं बेचकर चला जाऊँगा,,,, इवान ने कहा 

“Ok ok ठीक है अब मैं चलती हूं देर हो जाएगी “कहते हुए आस्था ने भागते हुए कदमों से कहा,,

आस्था ने पीछे मुड़कर देखा तो अंधेरे के सिवाय कुछ नहीं था,,

अगले दिन वो अनमनी सी रही क्यूँ,,,,,नहीं पता पर रह रह कर उसको इवान की नीली आँखे याद आ रही थी शाम हुई तो खिड़की के बाहर ऐसा लगा जैसे नीले रंग की आंखे झाँक रही है,,पास जाकर देखा तो कुछ नहीं था,,

उसका व्यवहार उसकी माँ नोटिस कर रही थी कुछ तो बदला बदला सा था 4_5 दिन बीत गए,,

अचानक आस्था ने माँ को कहा “माँ कॉलेज जाना है “

“पर कॉलेज तो बंद है फिर,,,,”

“लाइब्रेरी, ,,,,,,लाइब्रेरी जाना है बुक्स चेंज करनी है exams केलिए”

 

“ठीक है जा चली जा”

 

आस्था ने किताबे उठाई और कॉलेज के रास्ते मे जा पहुंची,,हवेली के पास आते ही उसके कदम बहुत-बहुत धीरे हो गए,,जहाँ से दोड़ कर  निकला करती थी वहां आकर उसके कदम जैसे रुक गए,,,उसको काफी समय बीत गया पर इवान नजर नहीं आया,,,

आस्था घर चली आयी,,

रात होते ही जुगनू जगमगा उठे आस्था के कमरे की खिड़की पर,,,आस्था पास आयी तो वंहा इवान खड़ा था,,,,इवान वहां कैसे,,,आस्था की आंखे भर आयी ये सोचकर जिसके लिए झूठ बोला वो नजर नहीं आया और अब वो यहां उसके इतने पास है,,,

इवान ने कहा “आस्था मैं दिन मे काम से बाहर गया था पर जब वापस आ रहा था तो तुम्हें लौटते हुए देखा और तुम्हारे पीछे चलते हुए यहां तक आ गया ,कोई देख ना ले इसीलिए छुपा रहा”

आस्था ने खिड़की खोली और अंदर आने के लिए बोला तो इवान ने कहा “नहीं आस्था तुम पहले घर आयी थी तो मेहमाननवाजी का पहला नंबर मेरा है,,चलो मेरे साथ “

“क्या? इस समय? मुझे इजाजत नहीं मिल पाएगी “आस्था सहमते हुए बोली। 

“अगर भरोसा हो तो चलो मेरे साथ अभी यहीं से इजाजत की जरूरत नहीं “


 ना जाने किस भावना के वशीभूत आस्था खिड़की से बाहर आकर इवान के साथ चली गयी। 

बाहर से विरान हवेली अंदर से जगमगा रही थी  बड़ी सी मेज पर हर तरह का खाना रखा था,,,

इवान ने कुर्सी सरकाई और आस्था को बैठने का बोला। 

आस्था बैठ गयी ऐसे जैसे उस पर जादू हो रहा हो,,

इवान ने उसको शर्बत दिया साथ मे सलाद और बिस्किट भी,,

उसके पैरों के पास बैठते हुए इवान बोला, “जबसे तुम्हें पहली बार देखा तुम मे खो गया था मैं,,खुद की आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा कि तुम यहां मेरे सामने हो,,मुझे तुमसे प्यार हो गया है, अब तुम्हें मुझसे दूर कोई नहीं कर सकता कोई भी नहीं”

आस्था लरजती आँखों से उसको देखे जा रही थी ,उसका तो जैसे खुद पर से भी सारा कंट्रोल खत्म होता जा रहा था,,

आस्था ने कहा “पर उस दिन रात को एक ही बार तो देखा था “

इवान ने कहा “नहीं,,मैं तो तुम्हें ना जाने कब से देख रहा हूँ,,तुम मेरी तरफ या घर की तरफ इशारा करके बात करती थी”

आस्था चिहुंक गयी, अचकचा कर इवान को देखकर बोली “तुम तो अभी कुछ दिन पहले ही आए थे तो,,,तुमने मुझे कब “

इवान के होठों रहस्यमय मुस्कान छा गयी,,,

उसकी काले रंग की कमीज़ के कॉलर खड़े हो गए और उसके साइड के चारो दांत नुकीले बनकर बाहर निकल गए,,,,

आस्था चीख मार कर बेहोश हो गयी। ।।

आस्था को धीरे-धीरे होश आया तो देखा कि उसकी माँ तेज तेज हिला रही थी,,,माँ को देखकर आस्था माँ से लिपट गयी ,,,तो माँ ने उसके सिर पर एक चपत लगायी और बोला “जल्दी से तैयार हो जाए नीलम की पार्टी मे नहीं जाना क्या,,,और ये सोते सोते चीख क्यूँ मारी “

“ओ तेरी!!! मैं सपना देख रही थी” कहते हुए आस्था ने अपने ही सिर पर एक चपत मारी ।

 

आस्था तैयार होकर नीलम की पार्टी मे पहुंची,,और जैसे ही उसको अपने सपने के बारे मे बताने लगी, उसके सामने ब्लैक रंग के कपडों मे एक लड़का आ खड़ा हुआ,,,,और आस्था की तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोला “मिस आस्था,,मैं इवान “

आस्था चकरा कर रह गयी,,,जब इवान उसके पास फुसफुसा कर निकल गया “कहा था ना अब तुम्हें मुझसे कोई दूर नहीं कर पाएगा,,तुम एक वैंपायर की मोहब्बत हो,,,,और वैंपायर से उसका प्यार कोई छिन ले किसी मे ताकत नहीं। ।।।

आस्था को सपने और हकीकत मे फर्क नजर नहीं आ रहा था अब,,,,अब उसके ऊपर हर समय इवान की नजरें रहती। ।

इतिश्री 

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