वीणा की झंकार – बालेश्वर गुप्ता

 माँ तू भी? तू तो नारी है,फिर भी मुझे ही प्रताड़ित करती रहती है, क्यूँ भला? सारे दिन कॉलेज जाने से पहले ,फिर बाद में घर का सब काम करना,और बाद में तेरी कठोर वाणी,चल वीणा पढ़ाई कर।थक जाती हूँ मां, थक जाती हूँ।

        वीणा की वाणी सुन सुमन आँखों के कोर में आँसू लिये अपना मुँह दूसरी ओर फेर बुदबुदाने लगती है, कैसे समझाऊं तुझे मेरी बच्ची?आसुओं के छलकने से पहले ही सुमन बोल उठती है, बहुत बोलने लगी है वीणा, चल अपनी आज की पढ़ाई कर।

         सोचते सोचते सुमन अपने विगत में खो गयी,कुल 12 वी तक ही तो पढ़ी थी।18 वर्ष की उम्र में शादी हो गयी। सुनहरे सपने संजो सुमन आ गयी थी अपनी ससुराल में।कम उम्र,कम शिक्षा के कारण अभी अल्हड़ पन था,चुलबुलापन था,बचपना था।यह सब ससुराल में किसी को भी नही भाया।ससुराल पहुँचते ही बहू से अपेक्षा उसके धीर गंभीर होने और घर के काम काज से लेकर तमाम जिम्मेदारियो के चुपचाप निर्वहन की हो जाती है वो भी बिना अधिकार जताये।थोड़े ही समय में सुमन का अल्हड़पन ननद और सासू मां के तानों और पति के मौन ने 18 वर्षीय सुमन को 30 साल का बना दिया था।अपने घर की स्वच्छंदता बीती यादें भर रह गयी थी।वो समझ ही नही पा रही थी कि लगभग उसी की उम्र की उसकी ननद और उसमें इतना विभेद क्यूँ?सुमन सोचती कि सासू मां के पास तो उनके शेष जीवन मे वही रहने वाली है जबकि ननद तो शादी के बाद अपने पति के घर चली जायेगी,फिर उन्हें तो मुझसे अधिक लगाव होना चाहिये।फिर अपने मन को सांत्वना देती कि ननद की शादी हो जायेगी तब उसे ही तो मिलेगा पूरा प्यार,सासू मां का। लेकिन ये हो न सका।ननद की शादी भी हो गयी,वो अपने पति के साथ चली गयी,पर सुमन की किस्मत नही बदली।वो समझ नही पा रही थी कि उसकी सेवा में उसके समर्पण में कहाँ कमी है, कोई समझाने वाला भी तो नही।पति को ही तो यह करना था,पर वो भी निर्लिप्त रहते।इसी बीच उसकी गोद मे वीणा आ गयी।सुमन तो खुशी से झूम गयी,पर सासू माँ का चेहरा देख सुमन सहम गयी।घर मे लक्ष्मी आयी है, यह अहसास तो घर में कोई करा ही नही रहा था।वो तो बाद में पता लगा कि सबकी अपेक्षा पुत्र की थी।अब ये क्या सुमन के बस की बात थी।प्यारी सी वीणा ने उसके अंतर्मन के तारो को झंकृत कर दिया था।




     अपनी नियति को भोगते सुमन ने अपना पूरा ध्यान वीणा की परवरिश पर लगा दिया।सुमन ने निश्चय कर लिया था कि वो वीणा को अपने जैसी जिंदगी नही  जीने देगी।सुमन ने ठान लिया था कि वो वाणी को खूब पढायेगी, आत्मनिर्भर बनायेगी, जिससे वाणी को उसकी तरह उपेक्षित जीवन न जीना पड़े।

       जैसे ही वाणी ने इंटर पास किया घर मे आगे की पढ़ाई का विरोध शुरू हो गया।क्या जरूरत है,लड़की जात है ससुराल ही तो जाना है, तुम भी तो इंटर पास ही हो फिर वाणी को आगे पढ़ाने का क्या मतलब,हमें कौन सी नौकरी करानी है, घर का काम काज सिखाओ,फालतू के चोचले छोड़ो।

      पहली बार सुमन ने मुँह खोला और दृढ़ता से बोली मेरी वाणी कॉलेज हर हाल में जायेगी, वो पढ़ेगी।मैंने जीवन भर आप सबकी मानी ही है, पर अब नही।

सब अवाक हो सुमन का मुँह ताकते रह गये, सुमन बोल भी सकती है, ऐसा तो देखा ही नही था।वीणा ने कॉलेज जाना शुरू कर दिया था,पर परिवार का एटीट्यूड नही बदला।वाणी को सुमन ने हर परिस्थिति में झूझने की ट्रेनिंग देने के उद्देश्य से उसे घर के कामकाज में भी लगाया।किशोर वय की वाणी को यह घर का काम करना सुहाता ही नही था,पर सुमन अपने अनुभव के आधार पर समझ रही थी कि जहां वाणी का पढ़ना जरूरी है तो वही उसको घर के काम काज और अन्य गतिविधियो में भी पारंगत होना जरूरी है।

      वाणी की शिकायत पर सुमन की आँखों मे आंसू आ गये, पर वो जानती थी वीणा के तारो के कसे बिना उससे मधुर स्वर नही निकलेंगे।सुमन किसी भी कीमत पर वीणा को उसके भावी परिवार में उपेक्षित या भेदभाव वाला जीवन जीने नही देना चाहती थी।

      सुमन की तपस्या आखिर रंग लायी, जब वाणी ने बैंक के अधिकारी की प्रतियोगी परीक्षा पास कर ली और उसके पास नियुक्ति पत्र आ गया।दौड़ कर आयी वीणा ने जाकर अपनी माँ को अपनी बाहों में भींच लिया फिर पावँ छूते बोली माँ आज तेरी तपस्या पूरी हो गयी।अब तू मेरे पास रहेगी माँ।




     दूसरे कमरे में सुन रहा सुमन का पति अपनी वीणा पर गर्व कर रहा था पर अभिव्यक्त कैसे करे यह असमंजस उसके सामने था।बेटे की चाह ने बेटी को बिसरा दिया था,कैसे अब प्रायश्चित करे?

      अचानक सुमन वाणी का हाथ पकड़ अपने पति के पास लाकर बोली सुनते हो अपनी वाणी अफसर हो गयी है, क्या आशीर्वाद नही दोगे, और वो अचकचा कर सुमन और वाणी को खींचकर गले लगा लेता है।

#भेदभाव 

          बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

स्वरचित और अप्रकाशित।

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