उसकी चीख – डॉ उर्मिला शर्मा       

चित्रकथा

आज सुबह जैसे ही योगा करके उठी , किसी औरत के चिल्लाने की आवाज़ सुनाई पड़ी। जल्दी से बालकनी तक गयी तो देखा तो सामने सड़क के उस पार रामबाबू के घर से फिर चीखने की आवाज़ आ रही थी। तभी उनकी पत्नी दौड़ते हुए बरामदे तक आयी और वापस चली गयी। मैं रुककर माजरा समझने की कोशिश करने लगी।

ध्यान गया तो देखा रामबाबू के बरामदे में एक व्यक्ति निस्पृह भाव से कुर्सी पर आराम से बैठा है। उसपर उस चीख- पुकार का मानो कोई असर न हो रहा था।

एक – दो लोग वाज़ सुनकर अपने- अपने घरों की बालकनी या बाहर निकल आये थे। बगल के एक केमिस्ट जो अपनी दुकान के बाहर खड़ा था, वो रामबाबू के घर के सामने तक आया और वापस चला गया। तभी रामबाबू का सात वर्षीय लड़का घर के अंदर से दौड़ते हुए आया और बगल में स्थित केमिस्ट के दुकान पर गया और दुकानदार से कुछ बोला।

उस दुकानदार ने अंदर किसी को आवाज़ लगाई। इस बीच वो लड़का बेचैनी में लगभग कूद सा रहा था। उस बच्चे की दशा देख मन द्रवित हो उठा।

इस बीच रामबाबू की आठ वर्षीय लड़की बरामदे में आई और उस व्यक्ति को बुलाकर घर के अंदर ले गयी जो इतनी देर से बरामदे में बैठा हुआ था। इतनी देर में केमिस्ट ने अंदर जिसे अवाज़ लगाई थी वो व्यक्ति बाहर आया। वह एक डॉ था जिसकी क्लीनिक अंदर थी। तभी रामबाबू की बहन भी केमिस्ट की दुकान तक पहुँची।
फिर रामबाबू की बहन और लड़का दोनों डॉ को लेकर घर में गये। साथ- साथ केमिस्ट भी गया जो कुछ ही मिनट पहले उनके घर के सामने खबर जानने के लिए गुजरा था।



हमें इस मुहल्ले में आये छः-सात ही महीने हुए थे। इस बीच एक दो बार रामबाबू ,जो एक स्कूल मास्टर थे के घर से चीख सुनाई पड़ी थी। एक दिन रामबाबू ने पत्नी को घर के बाहर बन्द कर दिया था और वो घण्टों चिल्लाती रही थी बाहर। उसका समान भी फेंक दिया था। अगले दिन उसके मायके से उसका भाई आकर उसे ले गया था। महीनों बाद वापस आयी थी।

रामबाबू के घर के बहुत सारे किस्से मेरी पड़ोसन कोमल ने मुझे बताई। रामबाबू की शादी को नौ साल हुए थे। कभी भी उनका सम्बन्ध अपनी पत्नी के साथ अच्छा सम्बन्ध नहीं रहा। बहुत दुर्व्यहार करते हैं अपनी पत्नी के साथ। अभी दो महीने पहले एक दिन इसी तरह चीख – पुकार मची थी। मुहल्ले के कुछ लोगों को जाते देख कोमल भी जाने लगी। मैं भी उसके साथ चल दी।

घर के अंदर रामबाबू की पत्नी की दशा देख मैं तो सुन्न सी हो गयी। दुबली – पतली कृशकाय सी। जानवरों की तरह उसे रामबाबू ने पीटा था। नोच – खसोट और शरीर पर चोट के निशान उसके साथ हुए अत्याचार की गवाही दे रहे थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ इस कदर बेरहम हो सकता है। पत्नी के साथ-साथ उसके बच्चों की माँ भी है।

मुझसे और देखना असहनीय था। कोमल का हाथ पकड़े मैं अपने घर आ गयी। माथा पकड़ धम्म से बिस्तर के किनारे बैठ गई। रामबाबू की पत्नी का असहाय चेहरा बार – बार सामने आ रहा था। मेरे दिमाग में एक साथ कई प्रश्न उठा रहे थे। कब तक हमारे समाज में स्त्रियों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया जाता रहेगा। किसी भी सम्बन्ध में चाहे वह पति- पत्नी का ही क्यों न हो जब आपसी रिश्ते में प्रेम व सदभावना हो तो उसे उस रिश्ते से मुक्त कर दो। अपने को अलग कर लो। उसे मारने- पीटने का हक किसने दिया है।



दूसरी तरफ स्त्रियों को भी चाहिए कि ऐसे अत्याचार का विरोध करना चाहिये। कुछ भी सहकर पति के घर रहने में अपना सौभाग्य समझती हैं। साथ ही अभिभावक अपनी बेटियों के साथ जुल्म देखने के बाद भी वापस ससुराल जाने पर मजबूर करते हैं। ऐसे कई सवाल मन में हलचल मच रहे थे। मुझसे रहा नहीं गया और चुपचाप घरेलू हिंसा के विरुद्ध काम करनेवाले हेल्पलाइन पर फोन कर दिया।

कुछ ही घण्टों बाद देखा जीप से हेल्पलाइन वाले आये। लगभग आधे घण्टे बाद वो लोग चले गए। अब मुझे जानने की जिज्ञासा हो रही थी कि आखिर हुआ क्या। अगले दिन कोमल ने किसी तरह पता लगाकर बताया कि हेल्पलाइन वालों की पूछताछ में रामबाबू की पत्नी ने बताया कि उसे उसके पति ने नहीं मारा है बल्कि वो सीढ़ियों से गिर गयी थी जिससे लगी चोट के निशान दिख रहे हैं।

यह सब सुनकर मुझे घोर निराशा हुई। कहते हैं ईश्वर भी उसी की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करना चाहता है। ऐसे लोगों का क्या किया जा सकता है। अत्याचार करने वाला से अत्याचार सहने वाला क्या कम जिम्मेदार होता है। और इसी का परिणाम है कि आज फिर वो चीख गूंजी। और न जाने समाज में कब तक ऐसी चीखें हमें सुननी पड़ेगी।

—– डॉ उर्मिला शर्मा।

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