उसका निर्णय – स्मिता टोके “पारिजात”

“दी ,,,,आप अपनेआप को बहुत स्मार्ट समझने लगी हैं ,,,,,,,,,,, ।”

आरोही का मैसेज पढ़कर अपमान की पीड़ा से नंदा की आँखें छलछला उठीं ।

“आपको रिस्पेक्ट करती हूँ इसका मतलब ये नहीं कि आप मेरी लाइफ में ही ताकाझांकी करने लगे । बहुत बर्दाश्त किया आपको,,,,,,,, अब और नहीं ,,,,,,,,,,” आरोही के शब्द पिघले सीसे की तरह कानों में उतरते जा रहे थे ।

अचानक दोपहर बहुत उदास हो गई । बाहर खिली चटख धूप कमरे के भीतर भी चुभने लगी । नंदा को लगा जैसे उसे किसी ने झन्नाटेदार झापड़ रसीद कर दिया हो …….

आवाज़ करते हुए घूमता सीलिंग फैन सांत्वना देता सा लग रहा था । लेकिन उसे सांत्वना नहीं चाहिए थी । वह जी भरकर रो लेना चाहती थी ।

उसने उदास होकर मोबाइल ऑफ कर दिया।

आरोही से उसकी मुलाकात सोशल मीडिया के एक प्लेटफॉर्म पर हुई थी । एकदूसरे की पोस्ट्स पर प्रतिक्रिया देते-देते विचार मिले, जानपहचान हुई और थोड़े ही समय में दोनों  अभिन्न सखियाँ बन गईं । समय के साथ आरोही नंदा को “दीदी” संबोधित करने लगी । नंदा भी उसे एक सहेली और छोटी बहन की तरह प्यार करती । स्नेह से “बेटू” बुलाने लगी थी ।

नंदा ग्रुप एडमिन और स्थिरचित्त होने के की वजह से आरोही की पोस्ट्स पर किसी भी विवाद को बड़े ही सकारात्मक ढंग से सुलझा लेती थी । ग्रुप में भी दोनों की दोस्ती के चर्चे होने लगे ।  एकदूसरे का सहयोग करना, विचारों का आदान-प्रदान करना, ज़रूरत के समय मानसिक सम्बल देना यही तो दोस्ती होती है ।

इस बीच नंदा को आरोही के मित्रों की भी फ्रैंड-रिक्वेस्ट आने लगी । वह हर बार डिलीट कर देती । आरोही जब जरूरत हो और जब भी फुर्सत हो नंदा को मैसेज कर देती । नंदा भी व्यस्तता के बावजूद स्नेहवश बहुत से समय इस चौटिंग में देने लगी । उसे मार्गदर्शन देती और कई बार उलझनों से निकालती । इसमें नंदा को बहुत सुख मिलता था ।

लेकिन कहते हैं कभी-कभी इंसान की सोच बदलने में देर नहीं लगती । आरोही के बीमार पड़ने पर उसने अपना अकाउंट अस्थाई रूप से बंद कर दिया । स्वाभाविक रूप से नंदा के पास आरोही के मित्रों के संदेश आने लगे । सभी जानते थे कि उसके पास आरोही की खबर ज़रूर मिल जाएगी ।




इसी बातचीत के दौरान सद्बुद्धि या दुर्बुद्धि से नंदा ने पहले से परिचित समान  विचारों वाली 2 सखियों को रिक्वेस्ट भेजी और 3-4 स्वीकार की, जिन्हें वह पूर्व में इग्नोर कर चुकी थी ।  वे सहेलियाँ तो सोशल मीडिया पर दोस्ती और उसकी टाइमलाइन पर पोस्ट्स पढ़ना चाहती ही थीं । नंदा जल्दी ही उनसे भी भलीभाँति जुड़ गई । वह ख़ुश थी कि अब उसके पास आरोही जैसी ही प्यारी सखियाँ हैं ।

आरोही मैसेजिंग एप पर नज़र आ रही थी लेकिन अब पहले वाले प्लैटफॉर्म पर उसकी प्रोफ़ाइल नदारद थी । कई दिन नंदा ने ध्यान नहीं दिया । लेकिन एक दिन अचानक पूछने का मन किया ।

“कैसी हो आरोही ,,,,,,,,”

“मैं ठीक हूँ ,,,,,,,,,,”

“आजकल दिखती नहीं ,,,,,,,,,”

“हाँ ,,,,,,,,”

नंदा के मस्तिष्क में अचानक एक सवाल कौंधा,

“तुमने मुझे ब्लॉक किया है क्या ? ,,,,,,,,”

“हाँ, किया है ,,,,,,,,,” आरोही बेशर्मी से बोली ।

“आप बहुत स्मार्ट समझने लगी हैं अपनेआप को ,,,,,,,,,,,”

और भी न जाने क्या-क्या ?

“बेटू, तुम एक बार कहती तो मैं उन सबसे खुद ही अलग हो जाती …..”

“और कितना अच्छा बनोगी आप ,,,,,,,,,,,,,”आरोही अनवरत मैसेज भेजती जा रही थी ।

जब संवाद की गुंजाइश ही नहीं रिश्ता दम तोड़ने लगता है । गलतफहमी दूर की जा सकती थी लेकिन नहीं कि गई । मैंने अपना इतना समय क्यों ज़ाया किया ,,,,,,,? विशाल जी ठीक ही कहते हैं, इस आभासी दुनिया में तुम ज़्यादा मत डूबो ,,,,,,,,,, । तुम्हें यहाँ भी सही-गलत की पहचान करनी ही पड़ेगी ,,,,,,,,,, । कितनी ही बार उसे सोशल मीडिया पर अति सक्रिय देखकर विशाल जी टोकते और दोनों  में बहस छिड़ जाती ।

नंदा के मन में स्पष्टता आती जा रही थी ,,,,

कुछ सोचकर उसने टाइप करना शुरू किया ,,,,

“हमने बहुत अच्छा समय साथ बिताया आरोही । मैंने हमेशा तुम्हें अपना स्नेह, जीवन का कीमती समय दिया । शायद यही मेरी गलती थी । तुम्हारे सवालों का जवाब देने अपने काम एक तरफ़ रख दिए । रात हो या दिन परवाह नहीं की …….शायद यही मेरी गलती थी …… मैं तुम्हारे निर्णय का सम्मान करती हूँ । तुम जहाँ रहो, ख़ुश रहो । गुड़ बाय ।”

मैसेज भेजकर नंदा ने आरोही के साथ सभी संपर्क सूत्रों को ब्लॉक कर दिया ,,,,,, और एक आत्मविश्वास भरी गहरी साँस लेकर अपने दैनिक कार्य में व्यस्त हो गई ।

स्मिता टोके “पारिजात”

   इंदौर

मौलिक एवं स्वलिखित रचना।  सर्वाधिकार सुरक्षित

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