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उस तस्वीर को हटा दिया न! – डाॅ मधु कश्य

 “लीला !आज रमा दी आ रही है ,घर करीने से सजा देना और उनके कमरे को उनके अनुसार ही सजाना, नहीं तो आते ही शुरू हो जाएँगी। मैं मिठाई लेकर आता हूँ ।”तभी प्रकाश जी की नजर टेबल पर रखी एक तस्वीर पर गई,” और हाँ! इसे हटा देना ।मुझे बेवजह का तमाशा नहीं चाहिए और सृष्टि कहाँ है ?”

“अपने कमरे में !”लीला जी ने दबी हुई आवाज में कहा ।

“ठीक है! उससे कहना दीदी के सामने जितना कम हो सके, उतना कम ही आए। अभी पुराने दर्द ही नहीं मिटे हैं और कोई नया दर्द सहने की ताकत नहीं है।” कहकर प्रकाश जी निकल गए। लीला जी आने वाले समय को लेकर बहुत डरी हुई थी।एक तरफ प्रकाश जी का गुस्सा, रमा दी के ताने और दूसरी तरफ सृष्टि जो बिना कोई गलती किए ही गुनाहों की सजा भोग रही थी।लीला ने अपना अपना ध्यान इन सब से हटाकर घर की सफाई में लगा दिया ।सारा दिन कमरे की सफाई के बाद उसने सृष्टि को खाने के लिए बुलाया।

” उसे कमरे में ही खाना दे दो ,दीदी आ रही होंगी और सारी….।”

” हाँ!सब फोटो हटा दिया.. कितनी बार एक ही बात याद दिला कर मेरे दर्द को कुरेदते रहेंगे…।” लीला जी का गुस्सा फूट पड़ा। कहते हैं ना तूफान के पहले भी शांति ही रहती है, जिसकी उम्मीद प्रकाश जी ने नहीं की थी।

” अच्छा ठीक है! अब खाने की तैयारी करो ।”लीला जी अपने आँसू पोंछते हुए सभी के लिए खाना लगाने लगी ।तभी घंटी बजी।

” अरे दीदी! आप आ गई ।”

“तो क्या आती नहीं, वहीं रह जाती।” रमा जी की शुरु से आदत थी,वे कभी भी सीधा जवाब नहीं देती थी।लीला उनके आवभगत में लग गई ।उसने तुरंत शरबत दिया, ठंडा ठंडा पानी दिया।

” दीदी चाय भी ले आऊँ?”

“नहीं !नहीं! चाय नहीं! अभी खाना ही लगा दो। देख रही हूँ कि सब का खाना तो  लग ही रहा है ।”




“हाँ दीदी !बस आपका भी लगा रही हूँ ,आप वॉशरूम में जाकर फ्रेश हो जाइए।”रमाजी  अपने कमरे की ओर चली गई। उन्हें पता था कि उनके लिए यही कमरा रखा गया होगा ।”सभी तो दिख रहे पर सृष्टि बिटिया नहीं दिख रही…मैं भी कितनी पागल हूँ उसकी तो शादी हो चुकी है, वह यहाँ  कहाँ से दिखेगी? क्यों प्रकाश?” प्रकाश जी  कुछ कह न सके।

” दीदी! आप फ्रेश होकर जल्दी आइए ।”रमा जी चुपचाप अपने कमरे में चली गई ।आधे घंटे बाद रमाजी अपने कमरे से निकली तभी उसी समय सृष्टि भी खाना खाकर अपना प्लेट लेकर अपने कमरे से बाहर निकल रही थी।

” अरे सृष्टि! तू यहाँ कैसे?” सृष्टि चौंक गई ।उसे पता था कि बुआ आ रही है इसलिए वह रूम से बाहर नहीं निकल रही थी पर उसे क्या पता था कि वह जैसे ही निकलेगी वैसे ही उसका सामना बुआ से हो जाएगा। उसने चुपचाप किचन में जाकर प्लेट रखा और अपने रूम में चला गई। 

“ये क्या था प्रकाश!न पैर छुए,न हालचाल पूछा।शादी के बाद सारे संस्कार भूल गई क्या और दामादजी कैसे है?वह नही आए?कही ये नाराज होकर तो नही आ गई, अभी तो शादी के छः ही महीने हुए है और ये सब…कुछ बोलोगे तुमलोग?”

“क्या बोले दीदी!आपसे छिपाना चाह रहे थे कि आते ही आपको कोई तकलीफ न दे पर आपने भाँप लिया।बहुत गलत जगह शादी हो गई दीदी!रमेशजी ने विदेश में पहले से शादी कर रखी थी और यहाँ अपने देश में अपने माता पिता के लिए शादी करना चाहता था।जल्दी जल्दी में मैने भी पता नही किया और रिश्ता पक्का कर दिया।इससे अच्छा होता ,मेरी बेटी कुँआरी रहती ,कम से कम अपने पैरो पर खडी तो होती।”

“क्या बात कर रहा प्रकाश?”

“तो क्या बोलूँ दीदी!इस दर्द से वह दर्द ज्यादा भला रहता।अब तो दर्द की भी कोई जगह नही बची है।”लीला भी रोने लगी।

“अरे !तुमलोग ऐसे रोओगे तो सृष्टि को कौन सँभालेगा?अभी भी देर नही हुई है,मैने दुनिया देखी है प्रकाश…तलाक की अर्जी दे दो और बिटिया को अपनी जिन्दगी का फैसला खुद लेने दो।इस दर्द से बाहर निकलेगी तो दुनिया का हर दर्द वह बर्दाश्त कर लेगी।चलो खाना खाओ।अन्नदेवता को नाराज नही करते।”सभी खाना खाने लगे।जिन रमा दी के आने से सभी डर रहे थे,उन्ही रमाजी ने आते ही सबके दर्द पर मरहम लगा दिया था।

#दर्द 

डाॅ मधु कश्यप 

मौलिक एंव स्वरचित

 

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