ऊप्स मोमेंट – स्मिता सिंह चौहान

कैसी रही तुम्हारी पार्टी? मजा आया।”शैफाली ने रिया (बेटी)से पूछा।

“हां बहुत मजा आया ,बस थोड़ा निया का मूड ऑफ हो गया। बेचारी बहुत इमबैरेस सी हो गयी। इतनी सुन्दर लग रही थी उस पर वो ड्रेस लेकिन….”रिया ने अपना कोर्ट उतारते हुए कहा।

“क्या हो गया ?सब ठीक तो है।”शैफाली ने रिया के हाथ मे पानी का गिलास देते हुए पूछा।

“अरे मां वो हम सब डान्स कर रहे थे कि तभी रिया की स्कर्ट थोड़ा ऊपर हो गयी,शॉर्ट स्कर्ट थी ना।और वो ऊप्स मोमेंट का शिकार हो गयी।सभी उसकी तरफ देख रहे थे,फिर जब हमने नोटिस किया तब तक कुछ लोंगो ने डान्स के फोटो कॉलेज के ग्रूप में डाल दी। जब लोग उसमे कमेंट लिखने लगे तब पता चला।अब कितनी फोटो डिलीट करते।”रिया ने शैफाली को परिस्थिति  से अवगत कराया।

“लेकिन इसमें नया क्या है? जब हम कंफर्टेबल होते हैं तभी तो पहनते हैं।क्या निया को नही पता था कि उसके उठने बैठने, चलने फिरने या किसी भी एक्टिविटी में उसका पहना हुआ कितना ऊपर नीचे हो सकता है? ये आजकल ना सेलिब्रिटी लाइफस्टाइल का ऐसा चस्का लगा है कि अब उनका दिया ये ऊप्स मोमेंट भी  हमारी सोसायटी मे आ गया।”शैफाली ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा।

“मां अब ठीक है ना वो छोटे ही कपड़े पहनती है।लेकिन हमेशा ऐसा होता नहीं ना।अब इसमें उसकी क्या गलती?”रिया अपनी भावनाओं को जाहिर करते हुए बोली।

“नहीं मैं ये बिल्कुल नहीं कह रही कि ,वो गलत है ।ना मैं यह कह रही हू कि किसी का भी शार्ट ड्रैस पहनना गलत है।हां ,लेकिन मैं ये कह रही हूं कि जब हम कुछ भी पहनते हैं ,तो हमारे दिमाग में हम माहौल, समाज ,या वहा पर आने वाले लोंगो की सोच को पहचानते हुए ही पहनते हैं ।अच्छा मैने तो तुम्हे कभी मना नहीं किया ?तुम क्यों नहीं पहनती?”शैफाली ने रिया को प्रश्न किया।



“क्योंकि मुझे पर्सनली पसंद नहीं ।वैसे भी मुझे कंफर्टेबल नहीं लगता ,ऐसा लगता है कि पता नहीं जैसे कहीं तसल्ली से बैठने उठने में हिचकिचाहट महसूस होती है?बहुत ध्यान से उठो बैठो,बार बार ड्रेस को लेकर चिंतित से रहो ,कहीं से कुछ दिख तो नही रहा,थोड़ा सा ध्यान नही दिया तो वही हो जाता है जो निया के साथ हुआ।फिर बेमतलब की एक बहस को एनटरटेन करो।और तो   छोड़ो अपनी सोसायटी के लोगों से लेकर गार्ड भी ऐसे देखते है कि छी…तो क्यों?”रिया ने अपना पक्ष रखा।

“हां तो यही निया को भी लगता होगा,लेकिन हा उसका पहनावा उसकी चॉइस है ।तो फिर ये सब नाटक क्यों? ऊप्स मोमेंट ये जो क्लासी शब्द इस्तेमाल करके सब कुछ ढकने का नाटक क्यों?आप स्वीकार क्यों नही कर सकते कि एक शार्ट स्कर्ट को थोड़ा ऊपर सरकने के लिए आपकी परमिशन की जरूरत नहीं ,ठीक वैसे ही जैसे घर से निकलने से पहले जब आप आईना देखकर बाहर निकलते हो तो आपको पता होता है कि आप क्या पहन के जा रहे हो,अगर कोई टोक भी देता होगा घर में तो आपको उसकी परमिशन की जरूरत नहीं ।अगर ऐसा है तो स्वीकार करो कि हां छोटे कपड़ों में थोड़ा बहुत ऊपर नीचे होने की शत प्रतिशत संभावना होती है ,और होंगे ही ,उसके लिए इतना हल्ला क्यूं? जितना कंफर्टेबल तरीके से हम उन्हे पहनते हैं उतनी सहजता उसके नकारात्मक पहलू के लिए होनी चाहिए।अब साडी ही देख लो हमें पता है कि कमर का हिस्सा दिखना उस पहनावे में स्वाभाविक है ,हां ब्लाउज हमारी चॉइस का हो सकता ,है कितना क्या? लेकिन उसके लिए एक सहजता है ना।कोई नहीं कहता कि ब्लाउज में आपका बैक इतना क्यों दिख रहा है?या कमर इतनी क्यों दिख रही है?एक सहजता है ना। मेरे चॉइस, मेरे कपड़े ,मेरा शरीर कहने से पहले उसकी सीमाओ में हम कहां तक फिट हो पायेंगे वो भी तो हमे डिसाइड करना होगा।”शैफाली ने एक प्रत्यक्ष दृष्टिकोण रखा।

“कह तो आप ठीक रही हैं ,लेकिन जब ऐसा कुछ होता है तो लोग अपनी प्रक्रिया भी तो नकारात्मक देने लगते हैं।”रिया ने बात का मर्म समझते हुए कहा।

“यही तो लोग तो छोटे कपड़ों को लेकर भी प्रतिक्रिया देते हैं तो क्या हम पहनना छोड़ देते हैं?नहीं ना ,तो फिर उससे जुड़ी और चीजों के लिए लोगों के कहने पर उस इजाद किये गये बखेडे में शामिल हो जाते हैं।जब हम कंफर्टेबल हैं ,बिंदास तरीके से पहन सकते है ,तो बिंदास रहो ना।”शैफाली ने अपना पक्ष रखा।

“सही कह रही हो मां। बिंदास हो तो बिंदास ही रहो ना।मैं अभी निया को फोन करके कहती हूं कि ग्रूप में लिखी बातों पर ध्यान तब दे जब वो अपने कपड़ों के प्रति खुद असहज महसूस करती हो।सही कहा जब पहनते वक्त हम लोगों की राय को दरकिनार करते हैं तो फिर ऊप्स मोमेंट वाला बखेड़ा क्यों?”कहते हुए रिया ,निया को फोन मिलाते हुए कमरे की तरफ चल दी।

दोस्तो, आजकल ऊप्स मोमेंट एक ऐसा शब्द है जो सेलिब्रिटी कल्चर से चलता हुआ हमारे समाज की युवा पीढी तक पहुंच गया है।क्या वाकई हम अपने ही पहने कपड़ों के प्रति ईमानदार हैं?क्या हमे वाकई नही पता होता कि जो हमने पहना है उसमे हमारा शरीर कहा तक लोगों की निगाहों, या बाद में उनकी  सोच की मार को सहन कर पायेगा?क्या वाकई हम उस समाज का हिस्सा है जहा इन बातों का कोई फर्क नही पड़ता?क्या हमें एक बार कपड़ों में निहित सोच को पहले खुद स्वीकार करने की आवश्यकता है?

आपकी दोस्त

स्मिता सिंह चौहान

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