उन्मुक्त जीवन – सरगम भट्ट

सुबह के आठ बज रहे हैं , अभी तक चाय भी नहीं बनी है जबकि रोज पांच बजे ही बन जाता था ” नौ बजे ऑफिस , और कॉलेज जाने वाले तीनों बच्चे

( यानी कि सिम्मी के पति देव सुयश और नन्द रेनु (अट्ठारह ) देवर मानस ( बाइस )

“!! अभी तक सो रहे हैं ।

घर का कोई भी काम नहीं हुआ है , यहां तक कि किचन में जो बर्तन रात को धुल दिए जाते थे ” सब अभी तक वैसे पड़े हैं ।

इकलौती बहू ” जिसे दो साल पहले अपनी पसंद से , अपने बेटे से ब्याह कर लाई थीं !

” कमला जी “

सिम्मी पढ़ी लिखी , सुंदर सुशील तथा गृह कार्य में पूर्ण रूप से दक्ष ।

भले ही अपने पसंद से लाई थी , लेकिन तानों के सिवा प्यार मान सम्मान कभी ना मिला उसे । जब सासु मां नहीं देंगी ” तो ननंद देवर क्यों देंगे सम्मान ।

पतिदेव खुद ताने तो नहीं मारते लेकिन ! कुछ बोलते भी नहीं , उनकी चुप्पी ही बढ़ावा दे रही थी ” छोटे भाई बहन को ।

सिम्मी कहीं जाने के लिए तैयार खड़ी है , सुंदर सी साड़ी स्लीवलैस ब्लाउज के साथ ” बालों का जूड़ा ” कंधे पर पर्स , हाथों में चूड़ी की जगह कड़े ” और बिना हील की सैंडल ।

बिल्कुल वैसे जैसे किसी ऑफिस में जाना हो ।

यह सब देख कमला जी का दिमाग चकरा गया , कोई काम भी नहीं हुआ है , और सुबह सुबह सिम्मी तैयार होकर कहां जा रही है बिना बताए ।

ये क्या तरीका है बहू , आज सुबह चाय भी नहीं मिली ” और तो और आठ बज रहे हैं, कोई काम भी नहीं हुआ ….. और तुम इतनी तैयार होकर बिना बताए कहां जा रही हो ?

 

 



मम्मी जी आपको याद है मैं दो-चार दिनों से मोबाइल और लैपटॉप कुछ ज्यादा ही यूज कर रही हूं, हां याद है लेकिन तुम कहना क्या चाहती हो? साफ-साफ कहो ! मा घुमा फिराकर क्यों बात कर रही हो?

साफ-साफ बात यह है मम्मी जी,  मैंने अपना रिज्यूम एक कंपनी को भेजा था “वहीं का इंटरव्यू था और मैं सिलेक्ट हो गई ! और कंपनी की तरफ से मुझे फ्लैट भी मिला हुआ है ।

इसीलिए अब से मैं वहीं रहूंगी।

अब और ज्यादा बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं है मुझ में, दिन रात एक पैर पर नाचते हुए भी कोई इज्जत मान सम्मान नहीं है, नहीं रह सकती मैं अब इस बंधन में, और सुयश जी मैंने आपसे कहा तो आपने भी पल्ला झाड़ लिया! मैं आपकी जिम्मेदारी हूं ना की किसी और की।

जब आपको लगी है आपको मेरी जरूरत है, तो बेझिझक चले आइएगा क्योंकि अब मैं यहां नहीं आ सकती यहां एक नौकरानी की जरूरत है जो मैं भेज दूंगी अपनी तनख्वाह से।

बाहर से गाड़ी के हार्न की आवाज सुनाई पड़ी, देखा तो कैब आ चुकी थी जो उसने बुक की थी जाने के लिए ,  सुमी पति सहित पूरे परिवार को हैरान-परेशान सोंचता हुआ छोड़ वहां से , फालतू के बंधन से आजाद होने की खुशी मनाते हुए” अपनी आजाद नई जिंदगी जीने के लिए निकल पड़ी।

(उतनी ही रोक लगानी चाहिए जितना सही हो जमाना बदल गया है जमाने के साथ बदलना सीखिए सास और बहू के बीच एक पीढ़ी का अंतराल होता है तो जाहिर सी बात है सोच भी अलग ही होगी  कुछ खुद मैनेज कीजिए कुछ बहू कर लेगी तभी परिवार में एकता बनी रहेगी आज के जमाने में किसी को बंधन में रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है इसीलिए रिश्ते बंधन से नहीं प्यार से बनाइए)

#बंधन

सरगम भट्ट

गोमतीनगर लखनऊ

उत्तर प्रदेश

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