Moral stories in hindi: अंजलि फूट-फूटकर रो रही थी। उसके जीवन में कभी उसकी आंखों में आंसू का एक कतरा भी उसके माता-पिता को पसंद नहीं आता था ।
आज उसे रोते हुए देख कर माता पिता हर्षित थे।
उसकी मां मनीषा जी थोड़ा हड़बड़ाई भी तो अंजलि के पापा शम्मी जी ने मनीषा को मना करते हुए कहा
“मनीषा, रोने दो उसे। दिल का गुबार निकाल लेने दो। वह आज तक घुट घुट कर जी रही थी।”
“जी, आप बिल्कुल सही कहते हैं।”
मनीषा जी की आंखें भी डबडबा गई।
वह कितना मनहूस घड़ी था जब अंजलि के बारहवीं का रिजल्ट आया था।उसने 99% पाया था।वह अपने स्कूल की टॉपर रही थी ।
उसी समय अंजलि के मम्मी पापा और भैया भाभी सभी ने यह प्लान किया कि उनके कुल देवी का मंदिर चलते हैं। वहां प्रणाम कर आएंगे।
अंजलि खुशी-खुशी जाने की तैयारी कर दी।वहअपने को डॉक्टर का की वर्दी पहने हुए सपने देखा करती थी।
वह कहती थी
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” मम्मी पापा ,आप लोग देखना मैं मेडिकल कॉलेज में भी टॉपर ही रहूंगी और आप लोगों का नाम रोशन करूंगी।”
” हां बेटा, बिल्कुल यही होगा !”मम्मी पापा फूल कर कुप्पा हो जाते थे ।
पर कुल देवी के मंदिर जाते हुए ना जाने क्या गलती हुई।
सामने से आ रही एक गाड़ी ने उनकी गाड़ी को भयानक टक्कर मार दिया… और यह गाड़ी सीधे पलट कर गिर गई ।
पिताजी के कमर की हड्डी टूट गई ,मां मनीषा जी के पैर की हड्डियां टूट गई ।भाई भाभी को मामूली ही चोटें आईं लेकिन अंजलि का तो पूरा देह पैरालाइज हो गया ।
कई महीनों तक वह बेहोश थी।वह कोमा में चली गई थी।
मनीषा जी का रो-रोकर हालत खराब था। वह रोते हुए विलाप करतीं थीं
“मां ,कौन सा भूल हो गई थी आपके दर्शन को ही तो आ रहे थे गलती माफ कर दो ना, मेरी बिटिया को जिंदगी दे दो!”
देवी मां ने अंजलि को जिंदगी तो दे दिया लेकिन वह अब शरीर से पूरी तरह से लाचार हो गई थी।
कई महीनों के बाद होश में आने के बाद अंजलि को पता चला कि वह तो बेकार हो गई है ।उसका कोई अंग काम नहीं कर रहा था।
अपने आपको देखकर वह फूट-फूटकर रो पड़ी।
” अब यही आंसू मेरे साथी हैं।!वह अपने आप से कहा करती।
महीनों तक कई थेरेपी के बाद उसके पांचों उंगलियां काम करने लगी थीं।
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हाथ ठीक हो गए थे मगर पूरा शरीर अकड़ गया था।
डॉक्टर ने भरोसा जताते हुए कहा
“जब इतनी सफलता मिली है तो हम आगे भी हम होपफुल रहेंगे ।यह थेरेपी जारी रखिएगा।”
थैरेपी सालों साल जारी रह लेकिन कोई काम नहीं आया ।
दोनों हाथ काम करने लगे थे तो पापा ने कहा
” अपनी पढ़ाई मत छोड़ो!”
अंजलि को ड्राइंग में पेंटिंग का खास शौक था ।कॉलेज में ड्राइंग और पेंटिंग के क्लासेस चलते थे। उसने फाइन आर्ट्स में नाम लिखवा लिया ।
मेहनत बहुत थे। उससे करने के लिए फील्ड वर्क भी करना जरूरी था लेकिन स्पेशल अनुरोध के बाद उसे छूट मिल गए थे वह सिर्फ क्लास करके ही अपनी पढ़ाई जारी रख सकती है।
बीए फाइन आर्ट्स में करने के बाद अंजलि ने राज्य स्तर पर पेंटिंग की परीक्षा दी। उसमें उसने स्वर्ण पदक जीता।
राज्य सरकार ने उसे विशेष बुलाकर विशेष रूप से सम्मानित किया।
उसके आगे की पढ़ाई के लिए और उसके बेहतरीन इलाज की भी सुविधा प्रदान किया।
राज्य के मुख्यमंत्री जी ने अपने हाथों में गोल्डन ट्रॉफी, प्रशस्ति पत्र और एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार अंजली को दिया।
“अंजलि जी आप दो शब्द बोलिए प्लीज!” संचालक महोदय की बात सुनकर अंजली ने माइक उठाया ।वह व्हीलचेयर पर थी।
उसने कहा
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” एक समय ऐसा था कि मैं जीने की उम्मीद छोड़ चुकी थी। मुझे जिंदगी बोझ लगने लगी थी।
मैं अपने माता-पिता के लिए ही जी रही थी।
लेकिन फिर मैं हार नहीं मानी। मैंने ठान लिया था कि मुझे कुछ करना है….!
अपने आंसुओं को खुद ही पोंछना है। आज मैं जीत गई!”
अंजलि फूट-फूट कर रो रही थी और पूरा सभा गार तालियों से गूंज रहा था।
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प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
#आँसू