उधार – मीनाक्षी सिंह

ये लिजिये काका ,,आपके पैसे ब्याज़ सहित !

कौन ???? हाथों में लाठी लिए हुए सुरेश जी चश्में को नीचे करते हुए बोले ! मैं पहचाना नहीं ! कौन हो बेटा तुम ! और मैं कौन होता हूँ किसी को उधार देने वाला ! अपनी  खुद की दो वक़्त की रोटी मुश्किल से कमा पाता हूँ ! सुरेश जी कंपकपाती आवाज में बोले!! जा बेटा तू जा ,गलत पते पर आ गया हैँ ! लोग गरीबी में मजाक बनाने चले आते है ! लाठी लेकर सुरेश जी अंदर झोपड़ी में जाने लगे !

अरे रुकिये तो काका ,आप सच में बुड्ढे हो गए हैँ ! ठीक से देखिये ,पहचाना नहीं मुझे !

क्यूँ मेरा बख्त खराब कर रहे हो ,अभी बारिश होने वाली हैँ ! चुल्हे पर दो रोटी सेंक लूँ ,नहीं तो गीला हो गया चुल्हा तो फिर पानी के साथ चीनी फांककर सोना पड़ेगा ! सुरेश जी थोड़ा गुस्से में बोले !

अच्छा ,ठीक हैँ ! एक बार इस फोटो को देख लिजिये और ये पैसे ले लिजिये ! ना पहचान पाये तो मैं चला जाऊँगा !

अपने चश्मे को आँख पर अच्छे से रख गौर से सुरेश जी ने उस फोटो पर निगाह मारी !

अरे मेरा वीरू ,तू ! सुरेश जी की आँखों से आंसू अनवरत बहने लगे ! इधर आ ! ठीक से देख तो लूँ तुझे ! कितना बड़ा हो गया हैँ रे तू ! कितना सुन्दर लग रहा है इस सूट बूट में ! शायद ईश्वर ने इसी दिन के लिये कुछ सांसे बचा रखी थी कि तुझे इस रुप में देख सकूँ !

सूट बूट वाले 25 साल के वीरू ने सुरेश जी के पैर छूये ! उनके गले लग गया ! सुरेश जी ने भी अपनी पकड़ और मजबूत कर ली ! दोनों एक दूसरे से गले लग अनवरत आंसू बहाते रहे !

ए रे ,तू कहाँ था इतने दिन ! उस दिन के बाद से पलटकर भी नहीं देखा तूने !! बचपन में तेरे माँ बाप हादसे का शिकार हो गए ! तू अपने ताऊ ताई के साथ रहता ,वो तुझसे दिन भर मजदूरी करवाते !

हाँ काका ,पर मेरा मजदूरी में बिल्कुल मन ना लगता ! मैं भागकर आपके पास पढ़ने चला आता ! आप अकेले रहते !आपका थोड़ा हाथ बंटा देता ! आप मुझे बिना एक रूपये लिए पूरे दिल से पढ़ाते ! पर एक दिन ताऊ ने देख लिया मुझे कि मैं मजदूरी पर नहीं गया ,,आपके यहाँ आकर पढ़ रहा हूँ ! फिर क्या था उस दिन कपड़े धोने वाले पीटने से मेरी पीठ छील दी उनने !

पर फिर भी तेरी पढ़ने की ललक को कम ना कर पायें रे !




हाँ काका ,फिर मैं दौड़ता हुआ आपके पास आया ! आपने बिना अपनी परवाह किये मुझे 4000 रूपये दे दिल्ली की गाड़ी में बैठा दिया ! समझा दिया कि अब अपनी ज़िन्दगी तुझे अपने मन मुताबिक जीनी हैँ ! मैं ठहरा आपका शिष्य ,वहाँ उन पैसों से चाय बनाने का सामान ले आया ! सुबह शाम चाय बनाकर बेचता अपने  खोके पर ! दोपहर को सरकारी स्कूल में पढ़ने चला जाता ! इंटर पास हो गया तभी पोस्ट ऑफिस में जगह निकली क्लर्क की ! मैने फॉरम डाल दिया ! मैं क्लर्क बन गया काका ! आपके आशिर्वाद से आज वहाँ अधिकारी के पद पर हूँ ! आपको कभी नहीं भूला काका ! बस जीवन की भाग दौड़ में अब समय मिल पाया आपसे मिलने का ! पर मन बहुत व्यथित हैँ ,जिस काका की वजह से आज यहाँ हूँ ! उनकी ऐसी हालत हो गयी हैँ ! आंसू रूक नहीं रहे थे वीरू के अपने काका की ऐसी दयनीय हालत देख ! अब आप मेरे साथ चलिये काका ! ये आपका उधार और उसका ब्याज !

नहीं रे ,मुझे कुछ नहीं चाहिए ! तू तो बहुत आगे बढ़ गया रे ! चल तुझे ,अपने हाथ की रोटी खिलाऊँ ! सुरेश जी बोले !

वीरू –  काका बचपन की तरह ,आज रोटी मैं बनाता हूँ ,,आप खाना ! दोनों ने मिलकर रोटी खायी ! पूरा गांव उनका प्रेम देख भाव विभोर हो रहा था !

रात को दोनों खटिया पर बात करते हुए सोये !

सुबह वीरू ने काका के उठने से पहले दूध लाके चाय बनाई !

काका को उठा ही रहा था ! यह क्या काका का शरीर ठंडा पड़ चुका था ! वो हमेशा के लिए परलोक सिधार गए थे ! बस शायद अपने वीरू के हाथ अपना दाह संस्कार कराने के लिए रूके थे !

अपने काका के उधार की कीमत वीरू ने चुका दी पर क्या थोड़ी देर नहीं कर दी !

समाप्त

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

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