तुम्हारी ये आदत मुझसे मेरा स्वाभिमान छुड़वाकर रहेगी…. – भाविनी केतन उपाध्याय 

 

” यूं बिना किसी की इजाजत लिए किसी ओर के कमरे में तांका झांकी करना अच्छी बात नहीं है…. और ये तो बहू का कमरा है…. उसमें तुम क्या कर रही है ? बहू देखेगी तो क्या सोचेगी तुम्हारे बारे में ?” रमाकांत जी ने अपनी पत्नी सुनंदा जी को समझाते हुए कहा।

” बहू देखेगी तो कुछ सोचेगी ना मेरे बारे में ? और अपने घर में किसी की इजाजत क्यों लेना ? तांका झांकी नहीं करुंगी तो कैसे पता चलेगा कि बहू हम से छिपा कर कमरे में क्या क्या ला रही है …” सुनंदा जी ने बहू का ड्रेसिंग टेबल खोलते हुए कहा।

” देखो मैं तुम्हें सचेत कर रहा हूं कि बहू की गैरमौजूदगी में उनके कमरे में तांका झांकी करना अच्छी बात नहीं है।‌ तुम्हारी इस तांका झांकी करने की आदत ने ही हमें अपने अपनों से दूर कर रखा है…. कहीं ऐसा ना हो कि बेटा बहू भी हम से दूर चले ना जाए…!! तुम्हें बहू के कमरे में जाना है तो वो हाजिर हो तब जाओ ऐसे उसकी गैरमौजूदगी में नहीं….. क्योंकि तांका झांकी कर तुम बात अपने तक सीमित रखती है तो कोई बात नहीं पर तुम उसे बढ़ा चढ़ाकर पेश करती हो और दूसरी बात याद है ना मजली भाभी ने क्या किया था ? उनका सोने का हार खुद से कहीं खो गया था और सारा आरोप तुझ पर लगा कर तुम्हें चोर साबित कर दिया था।

वो तो सही समय पर वो हार मां के हाथों में आ गया तो तुम निर्दोष साबित हुई पर घरवालों से खासतौर से मजली भाभी से मेरा मन उतर गया था इसलिए मैंने सबसे रिश्ता कम कर अलग रहने का फैसला किया था कि आगे जाकर हमारे स्वाभिमान को ठेस ना पहुंचे पर लगता है कि तुम्हारी ये तांका झांकी करने की आदत मुझसे मेरा स्वाभिमान छुड़वाकर रहेगी…” रमाकांत जी ने उदास होते हुए कहा।

” मुझे माफ़ कर दिजिए, मैं अपने आप को नियंत्रित कर नहीं पाई और इतने सालों से छूट गई आदत ने फिर से हमला कर दिया। पर मैं अब कसम खाकर कहती हूॅं कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं अपनी ये आदत से दूर रहकर ही दम लूंगी क्योंकि हमारे स्वाभिमान के साथ मैं अब समझौता नहीं कर सकती…” सुनंदा जी ने रमाकांत जी का हाथ थामे हुए कहा तो रमाकांत जी मुस्कुरा उठे।

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद

आप की सखी भाविनी केतन उपाध्याय 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!