बालकनी में गीले कपड़े डाल रही थी तभी नीचे उसकी झलक दिखाई दी, कितने दिन हो गए, उन्हें देखे हुए! आज अचानक नजर पढ़ते ही खुशी से चीख निकल गई, तभी कोई और उनसे मिलने आ गया और उनके ऊपर हाथ फेरने लगा, मुझे यह सब सहन नहीं हो रहा था, और मैं बालकनी में से ही चिल्ला पड़ी….
रुको.. तुम ऐसे नहीं जा सकते, “तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है”, फिर भागती हुई मैं नीचे गई और उन्हें रोका! लाल लाल, गोल-गोल, मोटे-मोटे, चमकीले टमाटर जो महंगाई की वजह से₹300 किलो हो रहे थे, आज बिल्कुल मेरी नजरों के समीप थे, किंतु उस भैया के पास सिर्फ चार ही टमाटर बचे हुए थे, मैंने सोचा.. चलो.. कोई बात नहीं, चार ही सही.. और मन में से एक पुकार आई… “तुम पर सिर्फ मेरा अधिकार है”
अब मैं इतनी आसानी से नहीं जाने दूंगी! की तभी एक महिला बोली…. बहन जी.. पहले मैंने देखा था और इन्हें मैं लूंगी! मैं बोली… मैंने तो बहुत देर पहले हीं देख लिया था ऊपर से, और मैंने कह भी दिया.. कि यह सिर्फ मेरे हैं, इसलिए तुम कहीं और से ले लो और हमारी बातचीत तू तू मैं में में बदल गई, फिर हम दोनों ने समझौता कर लिया! दोनों को ही टमाटर की सख्त जरूरत थी अतः हम दोनों ने 50-50 रुपए में दो दो टमाटर ले लिए!
मैं खुशी से इतरा रही थी और अपने आप पर गर्व करती हुई घर आई और सोचने लगी.. इनका किस तरह से सदुपयोग किया जाए! नहीं.. नहीं… चटनी में नहीं डालूंगी इनको, चटनी में तो पूरी में ही दो टमाटर लग जाएंगे, कितने दिन हो गए पाव भाजी खाए हुए … नहीं नहीं.. पाव भाजी में तो और भी ज्यादा जरूरत होती है इनकी, फिर क्या करूं..? आलू की सब्जी..? आलू की सब्जी तो दही की भी बनाई जा सकती है, क्या करूं..
टमाटर ले भी लिए पर उनका खर्च करने का भी मन नहीं कर रहा, फिर सोचा… फिलहाल तो उठाकर अलमारी में रख देती हूं! अगर फ्रिज में रख दिए तो बच्चे सेब अंगूर को छोड़कर दोनों टमाटर को गपा गप खा जाएंगे, इससे अच्छा मेरी अलमारी में छुपा के रख देती हूं और जैसे-जैसे जरूरत पड़ेगी वैसे-वैसे काम ले लूंगी! तीन-चार दिन इसी प्रकार सोचने में ही निकल गए कि इन्हें किस प्रकार काम लिया जाए!
चार-पांच दिन बाद एक दिन पतिदेव बोले…. यार.. टमाटर बड़े सस्ते हो गए हैं, ऑफिस से आते समय मैं 2 किलो टमाटर ले आया, आज कुछ टमाटर की चटनी बना देना, कुछ की पाव भाजी और कुछ सलाद में काट देना, बड़े दिन हो गए टमाटर की कोई भी चीज खाए हुए! मैं यह सुनकर गुस्से में तिलमिलाने लगी और बोली….
कितने सस्ते मिल गए तुम्हें टमाटर ,जो 2 किलो ही उठा ले आए..? तब पतिदेव बोले.. अरे ₹50 किलो…इसलिए100 के 2 किलो ले आया! मैंने कहा… इतने सस्ती टमाटर, मैंने तो अभी चार दिन पहले ही₹50 के दो टमाटर लिए हैं! अच्छा…. लेकिन तुम तो इतने दिनों से बिना टमाटर की चीज खिला रही हो! हां हां… आप रुकिए.. मैं अभी वह टमाटर दिखाती हूं
आपको, वह कितने शानदार टमाटर है और जब मैं टमाटर निकाल कर लाई तो टमाटरों का अलमारी के अंदर कचूमर निकल गया था, इसके अलावा उसके ऊपर रखी हुई मेरी ड्रेस भी खराब हो गई, और उन टमाटरों में से बदबू आ रही थी! जब मैंने पतिदेव को दिखाया तो गुस्से में बोले…
अब तुम ही खाओ इन टमाटरों को,… हम तो सब ताजा ताजा टमाटर खाएंगे, और तुम्हारे इतने महंगे टमाटरों का जूस तुम्हें ही मुबारक! हम गरीब लोग तो सस्ते टमाटर ही खा लेंगे! अब कहो शान से… टमाटर जी…. आप पर सिर्फ मेरा अधिकार है! हो गई अधिकार की ऐसी तैसी!
संचय की प्रवृत्ति कभी-कभी नुकसान दायक भी हो सकती है, किंतु मुझे क्या पता था मैं तो अपने परिवार का भला ही सोच रही थी, और बचत करके घर के बजट को बचा रही थी, बचत के चक्कर में मुझे ही चूना लग गया! आप बताइए दोस्तों क्या मैंने घर में बचत करके कुछ गलत काम किया था क्या…? आजकल लहसुन भी बड़ा महंगा हो रहा है, सोच रही हूं.. थोड़ा सा लहसुन लाकर रख लूं क्या….?
हेमलता गुप्ता स्वरचित
आप पर सिर्फ मेरा अधिकार है