तुम बेटी होकर भी मां का दर्द नहीं समझती – कीर्ति मेहरोत्रा
- Betiyan Team
- 0
- on Jan 17, 2023
श्रुति ! तुम्हारी मां अकेले परेशान हो जाती है अब इस उम्र में इतना काम उसके वश का नहीं है । तुम अपने बच्चों को भी मां के सहारे छोड़कर अपनी सहेलियों के साथ घूमने निकल जाती हो । तुम्हें ये तो समझना चाहिए कि इतने छोटे बच्चे अब वो नहीं संभाल सकती । तुम्हें तो अच्छी तरह पता है उसके घुटनों में कितनी तकलीफ़ रहती है जरा देर ज्यादा खड़ी रहती है तो रात में सो नहीं पाती ” कमलनाथ जी ने अपनी बेटी श्रुति को कमरे में आराम से सोफे पर टेक लगाकर आंख बंद कर आराम करते देखा तो रहा नहीं गया और बोल दिए ।
” पापा ! मैं मायके आराम करने आती हूं काम करने नहीं । वो मां हैं अपनी बेटी के लिए इतना नहीं कर सकती । वैसे भी मां घर का काम हमेशा से ही अपने आप करती है ” श्रुति ने लापरवाही से जवाब दिया ।
कमलनाथ जी को श्रुति से कुछ ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी क्योंकि वो हमेशा से स्वार्थी स्वभाव की थी । मां से हर काम की उम्मीद रखती लेकिन खुद कभी उनकी कोई मदद नहीं करती । वो हमेशा अपनी पत्नी सुनयना को समझाते रहते कि ” श्रुति से भी थोड़े बहुत काम करवाया करो तो तुम्हें भी आराम मिले । सब काम अकेले ही करती रहती हो परेशान हो जाती हो । इसी बहाने सीख भी लेगी और तुम्हारी मदद भी हो जाएगी । घर के काम सभी को आने चाहिए “।
” अरे क्या करना है जी ! अभी यहां है तो रह ले अपनी मर्जी से बाकी ससुराल जाकर तो चूल्हा चौका तो संभालना ही है ” श्रुति को कमलनाथ जी की नाराज़गी से बचाने के लिए कह तो देती लेकिन उन्हें पता था अगर वो श्रुति से कुछ भी कहेंगी तो वो सुनने वाली नहीं उल्टे उन्हें ही सुनाएगी ” ।
कमलनाथ जी और सुनयना जी एक बेटे सजल और एक बेटी श्रुति के मातापिता हैं । दोनों बच्चे हमेशा से बाहर रहकर पढ़ें लिखे । वहां हास्टल में तो हर काम खुद ही करते लेकिन घर आते ही एक काम को भी हाथ नहीं लगाते । बेटा सजल तो फिर भी मां की तकलीफ़ समझकर काम कर लेता लेकिन बेटी श्रुति वो किसी के कुछ भी कहने से मां की तकलीफ़ नहीं समझती बस अपने कमरे में पड़ी म्यूजिक सुनना घूमने फिरना मौजमस्ती करना ये सब उसकी आदतों में शुमार था ।
कोई कुछ कहता तो उसका यही जवाब होता ” सबकी मांएं करती हैं आप कोई अनोखा नहीं करती हैं अपने बच्चों के लिए और वो भी सुना सुनाकर ” तो सुनयना जी कुछ नहीं कहती जैसे भी होता ये सोचकर खुद ही कर लेती ” ससुराल जाकर खुद ही सुधर जाएगी । मेरे पास कितने दिन रहना है ” लेकिन कमलनाथ जी उसे टोकते रहते ।
वो शादी से पहले जैसी थी शादी के बाद तो और भी ज्यादा आलसी हो गई । ससुराल में भी कोई जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहती । जिम्मेदारियों से बचने के लिए जब जी चाहे बच्चों को लेकर चली आती । बच्चों को मां के भरोसे छोड़कर उसकी मौजमस्ती चालू रहती । जरा सा भी मां को परेशान देखती तो ” क्या मां ! मैं ससुराल से थक हारकर यहां आराम करने आती हूं और आप अपना रोना लेकर बैठी रहती हो । सब लड़कियों की मांएं पलकें बिछाए बैठी रहती हैं ” ।
कमलनाथ जी का बेटा बहू दूसरे शहर में थे लेकिन तीज त्योहार आते रहते । उनकी बहू जब भी आती तो सास को आराम करने के लिए कहती रहती । इस बार श्रुति दीपावली के त्योहार पर अपने बच्चों के साथ मायके आ गई । तभी उसके भाई भाभी भी आ गए । भाभी छवि ने उसे देखते ही कहा ” जीजी ! आप दीपावली पर यहां आ गई और जीजाजी और आपकी सासूमां इतने बड़े त्योहार पर वहां घर में अकेले हैं । तीज त्योहार पर तो घर परिवार के सभी सदस्य साथ में हों तो तभी अच्छा लगता है “।
” मुझे अपने मायके आने के लिए किसी की परमीशन की जरूरत नहीं है । ये मेरा घर है मेरा पूरा हक है । जब तक मेरे मम्मी पापा हैं तब तक मुझे यहां आने से कोई नहीं रोक सकता ” श्रुति ने अकड़ते हुए छवि से कहा ।
” छवि ने तुमसे ऐसा तो नहीं कहा सिर्फ तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां समझाई हैं । ये लोग बाहर से त्योहार मनाने हमारे पास आए हैं और तुम अपने घर का त्योहार छोड़कर अपने सास ससुर को अकेला छोड़कर मायके आई हो । मातापिता से इतना ही प्यार है तो अपनी मां का दर्द क्यों नहीं समझती ? अब इस उम्र में उन्हें भी आराम चाहिए । तुम बेटी होकर भी उनका दर्द नहीं समझती लोग तो कहते हैं बेटियां मां का दर्द बखूबी समझती हैं । तुम्हारी मां कभी शिकायत नहीं करती लेकिन मुझे पता है वो कितना परेशान हो जाती हैं । ये तुम्हारा घर हमेशा रहेगा लेकिन इसी तरह तुम सबकी तकलीफों को नजरंदाज करके सिर्फ अपनी खुशी के बारे में सोचती रही तो हमारे ना रहने पर तुम्हारा मायका जरूर खत्म हो जाएगा ” कमलनाथ जी ने बड़े ही दुखी स्वर में श्रुति को समझाते हुए कहा ।
श्रुति कमलनाथ जी की बातें सुनकर सोचने पर विवश हो गई कि सच में वो कितनी स्वार्थी हो गई कि कभी अपनी मां का ही दर्द नहीं समझ सकी । मां का फर्ज है अपने बच्चों के सुख दुख का ध्यान रखना तो क्या बच्चों का फर्ज नहीं है अपने मातापिता के दुख दर्द को समझकर उनका हांथ बंटाना । उसने कमलनाथ जी से कहा ” आज तक मैंने जो भी किया उसके लिए माफी चाहती हूं पापा ! लेकिन आगे से कभी ऐसा नहीं होगा मैं आपको और मां को परेशान नहीं करूंगी । आपने और भाभी ने सच ही कहा कि मुझे अपने घर का त्योहार छोड़कर यहां नहीं आना चाहिए था । मैं हमेशा काम से बचने के लिए यहां भाग आती हूं और मां को परेशान करती हूं ” इतना कहकर श्रुति वापस जाने की तैयारी करने लगी और इस बार उसे किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की क्योंकि हर कोई उसके व्यवहार से अजिज आ चुका था ।
दोस्तों हर जगह बेटे बहू ही बुरे नहीं है ये कई जगह बेटियां भी हद से ज्यादा स्वार्थी होती हैं । आपको मेरी ये स्वरचित और मौलिक रचना कैसी लगी कृपया पढ़कर अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया जरूर दें आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है मुझे फॉलो भी जरूर करें।
जल्दी ही मिलती हूं आपसे अपने नए ब्लाग के साथ तब तक के लिए राम राम
आपकी दोस्त
कीर्ति मेहरोत्रा
धन्यवाद
#दर्द