तू नौकरी क्यों करना चाहती हैं?? – मनीषा भरतिया 

रोमा बचपन से ही आत्मनिर्भर बनना चाहती थी| उसे पुरुष पर निर्भर रहना पसंद नहीं था| वह अपने माता पिता ज्ञानचंद जी और माता तारामणि जी की इकलौती संतान थी| उसके पिता ज्ञानचंद जी बहुत बड़ी रियासत के मालिक थे, घर में दूध की नदियां बहती थीं| यूँ कहो तो घर में पैसों की रेलम पेल थी|

बचपन से ही वह अपने पिताजी से कहती कि मैं बड़ी होकर नौकरी करूंगी और अपने पैरों पर खड़ी होऊंगी…… क्योंकि वो बहुत स्वाभिमानी लड़की थी…,बचपन में तो उसके पिताजी यह सोच कर टाल देते कि अभी तो बच्ची है बाद में अपने आप धीरे-धीरे समझ जाएगी, इसलिए कह देते कि ठीक है कर लेना|

रोमा को पढ़ाई को लेकर बहुत लगन थी, हर काम समय पर करना उसकी दिनचर्या थी| वह आज का काम कल पर नहीं छोड़ती थी|

वक्त पंख लगाकर उड़ते चला गया और वह भी बड़ी होते गयी| साथ ही साथ उसने एमबीए की परीक्षा भी अच्छे अंकों में पास कर ली|

अब शुरू हुई उसकी नौकरी करने की धुन| वह अपने पिता से बोली की पिताजी मैं नौकरी करना चाहती हूं, तो उसके पिता (ज्ञानचंद जी) ने कहा, बेटा घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं है, फिर तूं नौकरी क्यों करना चाहती है?

माँ (तारामणि) ने भी अपने पति (ज्ञानचंद जी) की हां में हा मिलाते हुए कहा “बेटा तू और जितना पढ़ना चाहती है पढ़ हमें कोई ऐतराज नहीं है| पर नौकरी करने की बात नहीं कर”|

हमारा समाज में एक स्टेटस है, रूतबा है…… लोग क्या कहेंगे???

“इतने बड़े रियासत के मालिक की बेटी नौकरी करती है…,.. ” हमारी तो इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी |

वैसे भी बेटा कामकाजी लड़कियों की शादी में अड़चनें आती है……. किसी भी अच्छे घर का लड़का उनसे शादी नहीं करता….. हम तेरी शादी अच्छे-इज्जतदार और अमीर घराने में करना चाहते हैं….. “जिससे की तू जैसे कि  यंहा राज करती है वैसे ही ही वंहा राज करेगी तुझे पैसों की तकलीफ कभी नहीं होगी……




” तो वह कहती की पहली बात तो यह कि मैं यह सब नहीं मानती की नौकरी करने वाली लड़कियों की शादी अच्छे घराने में नहीं होती और  दूसरी बात यह कि मैं नौकरी पैसों के लिए नहीं अपनी खुशी के लिए करना चाहती हूं”|

“मैं नहीं चाहती कि मैं किसी पर भी निर्भर रहूं….. ” और वैसे भी नौकरी करने में बुराई ही क्या हैं???

मान लेते हैं कि आपने मेरी शादी अच्छा घराना देख  कर दी लेकिन अगर कोई विपत्ति आ जाए और अचानक  मेरे ससुराल वाले निर्धन हो जाए तो मैं क्या करूंगी????

तब तो मुझे और मेरे पति दोनों को मिलकर घर चलाने के लिए नौकरी करनी पड़ेगी |

“इसलिए अगर मुझे नौकरी करने की आदत रहेगी तो बाद में भारी नहीं लगेगा….. ” और  अगर मैं शुरू से ही काम नहीं करूंगी तो बाद में मुझे  काम करना पहाड़ जैसा लगेगा|

वैसे भी समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता |

लक्ष्मी तो राजा महाराजा   के यहां नहीं टिकी तो फिर हम किस खेत की मूली है|

इसलिए  मम्मी -पापा प्लीज मुझे नौकरी करने दीजिये…. मुझे मत रोकिये |

आखिरकार थोड़ी देर से ही सही ज्ञान चंद जी और उनकी पत्नी तारामणि को रोमा की बात सही लगी और  उन्होंने उसे नौकरी करने की इजाजत दे दी |

दोस्तों क्या आप  रोमा की बात से सहमत है? ??अगर हां तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके अपनी प्रतिक्रिया जरुर बताइएगा  |और आपको ब्लॉग पढ़ कर अच्छा लगा हो तो इसे लाइक और शेयर करना मत भूलिए|

 

और हाँ मुझे फांलो  करना मत भूलिए|
#स्वाभिमान
स्वरचित व मौलिक

धन्यवाद

मनीषा भरतिया 

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