सबक – तृप्ति उप्रेती

 नमित ने आज फिर गुस्से में खाना नहीं खाया। यह लगभग रोज की बात हो गई थी। किशोर बेटे के ऐसे व्यवहार से मोहिता आहत हो जाती। वह और रमन उसे कई बार समझा चुके थे पर नमित का स्वभाव दिनों दिन बदलता जा रहा था।

नमित मोहिता और रमन का इकलौता बेटा था। रमन की अच्छी खासी तनख्वाह थी। बहुत ज्यादा अमीर तो नहीं थे लेकिन  अपनी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी थी। मोहिता भी पहले एक स्कूल में पढ़ाती थी किंतु नमित के जन्म के बाद से उसने नौकरी छोड़ दी थी। नमित एक प्रीमेच्योर बेबी था और उसे जन्म के बाद से ही बहुत देखभाल की जरूरत थी। उसके बाद से वह घर गृहस्थी में  ऐसी उलझी कि दोबारा नौकरी करने का मौका ही नहीं मिला। हालांकि वह लाड प्यार में पला इकलौता बच्चा था लेकिन माता-पिता ने कभी भी उसकी नाजायज मांगों को पूरा नहीं किया और हमेशा उसको पैसों के महत्व को समझाया। नमित भी अपने मम्मी पापा को बहुत सम्मान करता और हर बात उनसे शेयर करता था। कुल मिलाकर छोटा सा परिवार हंसी खुशी अपना समय व्यतीत कर रहा था।

नमित के पड़ोस में कुछ महीने पहले एक नया  परिवार आकर बस गया था। बस यहीं से उनकी परेशानियों का सफर शुरू हुआ। उनका बेटा राघव भी नमित की उम्र का था। उसके माता-पिता दोनों नौकरी करते थे और उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी। अक्सर  नमित उसके घर खेलने जाता। उसके यहां महंगी चीजों को देखकर उस से अपनी तुलना करने लगता। उसे राघव को अपने घर बुलाने में झिझक महसूस होने लगी। वह मम्मी पापा से दिन-रात नई नई चीजें खरीदने की फरमाइश करने लगा। कभी वह पापा से आईपैड लेने की बात करता तो कभी महंगी बाइक लाने की।



माता पिता के समझाने का उस पर उल्टा असर होता। यही मोहिता और रमन की परेशानी का सबब बन गया। हालांकि दोनों परिवारों में बहुत मेलजोल था। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि कैसे अपने बच्चे को सही राह दिखाएं।  उम्र के इस नाजुक मोड़ पर बच्चों को ज्यादा डांटना  भी ठीक नहीं लगता। घर का माहौल दिन-रात तनावपूर्ण रहने लगा। ऐसे में नमित की पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ रहा था। एक दिन तो उसने मोहिता से यहां तक कह दिया कि यदि आप भी राघव की मां की तरह नौकरी करती तब हमारा घर भी उसकी तरह बन सकता था। रमन उसे कई बार समझाते कि यदि तुम मेहनत करोगे, पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी पा जाओगे तो तुम खुद ही अपनी इन सब इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हो। परंतु हर किशोर होते हुए बेटे की तरह उसे भी मां-बाप की कही हर बात  नागवार लगती।

         रमन के बङे भाई  पास के ही एक शहर में रहते थे। अचानक उनकी तबियत खराब  हो गई। उनके बच्चे दूर रहते थे।आने में काफी समय लगता। रमन ने  तुरंत मोहिता को जाने की तैयारी करने को कहा। किंतु नमित की समस्या आ खड़ी हुई। अर्धवार्षिक परीक्षा चल रही थी और उसका जाना संभव नहीं था। मोहिता और रमन ने आपस में विचार विमर्श करने के बाद राघव के माता-पिता से बात की।  उन्होंने तुरंत ही नमित को अपने यहां रखने के लिए हामी भर दी। अगले दिन सुबह रमन और मोहिता को जाना था। किंतु उससे पिछली शाम रमन की भाभी का फोन आया कि उसके भाई की तबीयत सीरियस है अतः दोनों ने शाम को ही निकलने का निश्चय किया और नमित को कुछ जरूरी सामान और कपड़ों के साथ राघव के घर भेज दिया। नमित  बहुत खुश था कि वह राघव के घर दो-तीन दिन रह कर खूब मजे करेगा। अभी तक राघव के माता-पिता ऑफिस से घर नहीं आए थे। राघव और नमित अंदर के कमरे में बैठकर पढ़ाई करने लगे।



          अचानक बाहर का दरवाजा खुलने के साथ उसे जोर जोर से चिल्लाने की आवाजें आई। पहले तो उसकी समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है। वह उठकर बाहर जाना चाहता था कि राघव ने उसे हाथ पकड़ कर बैठा दिया। उसको राघव के चेहरे पर बेचैनी और घबराहट दिखाई दी। बाहर राघव के माता-पिता के जोर जोर से झगङने की आवाजें आ रही थी। नमित ने दरवाजे के पीछे से झाँककर देखा कि राघव के पिता ने शराब पी रखी थी और उस की मां को डांट रहे थे बदले में उसकी मां भी जोर जोर से उनसे बातें कर रही थी। अचानक राघव के पिता ने हाथ में पकड़ा हुआ गिलास उसकी मां की तरफ फेंक दिया जो उनके सिर पर लगा। वह सिर थाम कर वहीं जमीन पर बैठ गईं। नमित ने  घबराकर  राघव से कहा कि तुम्हारी मां को चोट लग गई है जल्दी से बाहर चलो तो राघव ने यह कहकर उसे रोक दिया कि यह तो रोज ही की बात है। अब मैं इन सब का आदी हो चुका हूं। मेरे मम्मी पापा दिन-रात इसी तरह झगड़ा करते हैं। गुस्सा आने पर कभी-कभी पापा मुझे भी मारते हैं। अगर मैं मम्मी को संभालने जाऊंगा तो वह मुझे भी मारेंगे। यह कहते हुए राघव के चेहरे पर वेदना साफ दिखाई दे रही थी। नमित उसके घर का यह माहौल देखकर हैरान रह गया। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। राघव ने बाहर आकर धीरे से कहा कि नमित अंदर है। उसके माता-पिता को यह नहीं मालूम था कि वह उनके घर आ चुका है। यह देखकर उसकी मां तुरंत उठ कर उसके पिता का हाथ पकड़ कर कमरे में ले गई। उसके पश्चात हाथ मुंह धो कर आकर उन्होंने नमित से बात की और दोनों बच्चों को खाना बनाकर परोसा।



         नमित का उस घर में एक पल भी मन नहीं लग रहा था। उसे अपने माता-पिता की बहुत याद आ रही थी। और साथ ही उनसे किए गए अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदगी हो रही थी। दोनों उसे कितना प्यार करते हैं। मारना तो दूर उसे डांटते भी बहुत कम हैं। हर बात को प्यार से समझाने की कोशिश करते हैं। उससे राघव का दुख और शर्म से भरा चेहरा नहीं देखा जा रहा था। उसे समझ आ रहा था कि वह कितना गलत सोचता था। राघव को कितना खुश समझता था जबकि अंदर ही अंदर वह कितना दुखी और परेशान है। उसने किसी तरह से उसके घर में रात काटी। उसे अपने घर की याद आ रही थी जहाँ वो सब प्रेम से साथ रहते थे। उसने मम्मी पापा को कभी झगड़ते हुए भी नहीं देखा था और आज राघव के घर का यह माहौल देख कर वह सहम गया था।

अगले दिन सुबह मोहिता वापस आ गई और नमित को अपने घर ले गई। उसने नमित को बताया कि उसके ताऊ जी के बेटा बहू आ गए हैं और अब वह खतरे से बाहर हैं। नमित मोहिता के गले लग कर खूब रोया।  मोहिता को कुछ समझ नहीं आया। नमित ने उसे राघव के घर की पूरी बात बताई और कहा कि मां मैं समझ गया हूं कि असली खुशी महंगी चीजों में नहीं बल्कि आपस में प्रेम से मिलजुल कर रहने में होती है। राघव के पास सब कुछ है लेकिन फिर भी वह खुश नही। मुझे महंगी चीजों की जरूरत नहीं है। मुझे घर पर ऐसा खुशी का माहौल, आपका और पापा का पूरा साथ और  प्यार चाहिए। मोहिता की आंखों में भी आंसू आ गए पर ये आंसू खुशी के थे। जो बात इतने दिनों से वह और रमन नमित को नहीं समझा पाए वह एक दिन राघव के घर रहने से उसको समझ में आ गई।

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यह कहानी सर्वथा मौलिक एवं स्वरचित है। वैसे तो यह एक काल्पनिक कथा है किंतु यह हमारे समाज की सच्चाई भी है। भौतिक सुख-सुविधाओं की दौड़ में हम मानवीय मूल्यों की उपेक्षा करते जा रहे हैं और इस चमक दमक भरी जिंदगी की चाह में युवा वर्ग बहुत बार भटक जाता है।

आशा करती हूं आपको मेरा यह प्रयास पसंद आएगा। कृपया कहानी पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। सुधी पाठकों के विचार निश्चय ही मेरी लेखनी को निखारने में सहायक होंगे।

धन्यवाद

 तृप्ति उप्रेती

 

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