विश्वास का बंधन – अंजना ठाकुर
सुमित्रा जी ने पूरा घर सर पर उठा लिया था उनका खानदानी हार गुम हो गया था जिसका इल्जाम वो अपनी बहू नीला पर लगा रही थी ।नीला आंखों मैं आंसू लिए सफाई दे रही थी ।नीला की नई शादी हुई थी अभी अपने पति अमित को भी अच्छे से समझ नही पाई थी वो सोच रही कहीं अमित भी इसे सच ना समझ ले ।तभी अमित बोला मां आप मेरी पत्नी पर झूठा इल्जाम नहीं लगा सकती अगर आपको चोर लगती है तो हम यहां से चले जाते है।
नीला दुख मै भी खुश थी उसका विश्वास का बंधन
जन्मों के बंधन मै बदल गया था।।
अंजना ठाकुर
दिल का रिश्ता – लक्ष्मी साहू
जब हम इस दुनिया में आते हैं तब हम ना जाने कितने बंधनों में बंध जाते हैं। माँ का, पिता का, दादा का, दादी का, भाई या बहन का ऐसे बहुत से बंधनों से हम घिर जाते हैं। पहला बंधन हमारा होता है हमारी माँ से जोकी इस दुनिया में आने से पहले ही बन जाता है। वो एक ऐसा बंधन होता है जिसके बिना ना हम अपनी मां की कोख में जिंदा रह पाते हैं और ना ही मां हमें अपनी शक्ति दे पाती हैं। वो एक ऐसा बंधन होता है कि जन्म लेने के बाद भी बच्चा अपनी माँ को खोजता है और बाकी दुनिया उसे बेगानी लगती है। माँ और बच्चे का बंधन ऐसा बंधन होता है जो कभी तोड़े नहीं टूट सकता। ये बंधन बहुत ही प्यारा और पवित्र होता है।
लक्ष्मी साहू
बंधन – अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
“बहू बुरा मत मानना, पर रिवाज़ के अनुसार तुम्हारे घरवालों को हम सभी को उपहार देना चाहिए था।” बेटे की शादी की पहली सालगिरह पर मिले तोहफ़े देखते हुए सास बोली।
“और ज़्यादा नहीं तो, आपके पेरेंट्स को आपको एक सोने का सेट तो देना ही चाहिए था।” ननद मुँह बनाते हुए बोली।
“अरे वो सब छोड़ो, अब यह बताओ मुझसे क्या तोहफा चाहिए ?” बात सँभालते हुए पति देव बोले।
“ज्यादा कुछ नहीं, बस इन रिवाजों के बंधनों मुक्ति।” मायूस से स्वर में बहू बोली।
व्यंग्यबाण करने वाली नज़रें आज न जाने क्यों झुक गईं थीं ।
अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’
जन्म का बंधन – कुमुद मोहन
रीमा और राहुल जुडवां भाई बहन थे!दोनों एक जिस्म दो जान थे जैसे!दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते!वक्त बीता !रीमा का ब्याह मनु से हो गया!दोनों भाई बहन अलग तो हो गए पर रोजाना फोन पर या अक्सर मिल कर एक दूसरे से बंधे रहे!
फिर अचानक एक दिन मनु को राहुल की कोई बात ऐसी बुरी लगी कि उसने ससुराल से रिश्ता ही तोड़ दिया!जीजा साले की लड़ाई में बेचारी रीमा पिस कर रह गई!वो मां बनने वाली थी!मनु ने उसके मायके जाने पर पाबंदी लगा दी!
रीमा को राहुल से न मिल पाने का घुन अंदर ही अंदर खा रहा था!
डिलीवरी के वक्त रीमा को खून की जरूरत हुई!उसका ब्लड ग्रूप ओ नेगेटिव था जो मुश्किल से मिलता था!मनु जानता था राहुल का ब्लड ग्रूप भी ओ नेगेटिव है!उसने झिझकते हुए राहुल को फोन किया!राहुल बिना विलंब के आया उसने डाक्टर को कहा कि वह उसके खून का एक-एक कतरा ले ले पर उसकी बहन को बचा ले!
रीमा ने एक बच्ची को जन्म दिया जिसने भाई बहन के प्यार के बंधन को अमर कर दिया वह बंधन जिसे दुनिया की कोई ताकत तोड़ नहीं सकती!
कुमुद मोहन
स्वरचित-मौलिक
अनजाना सा बंधन – रश्मि प्रकाश
“आपका बहुत बहुत धन्यवाद आपने मेरी जितनी मदद की उतनी तो कोई अपना भी नहीं कर सकता था।” रेवती ने पड़ोसी अभय से कहा
माँ अक्सर बीमार रहती अकेली बेटी होने के नाते वो अपना फ़र्ज़ निभा रही …शादी कभी की नहीं बस माँ बेटी ही रहती उसी शहर में रिश्तेदारों की जमघट पर वो सब बंधन बेमानी।
“ इसमें धन्यवाद की क्या बात है… माना आपसे मेरा मिलना जुलना कम होता पर आँटी जी से तो हर दिन का मिलना होता है…उनके साथ एक बंधन सा महसूस होता है माँ के जैसा…माना हम पड़ोसी है पर अजनबी शहर में एक दूसरे के काम आ ही सकते हैं… कुछ भी हो एक कॉल कर लीजिएगा ।”अभय कह कर निकल गया
रेवती को आज एहसास हो रहा था माँ के मिलनसार स्वभाव ने उन्हें एक बंधन में बाँध कर अभय के रूप में एक बेटा दे दिया।
रश्मि प्रकाश
कच्चे धागों का पक्का बंधन – अंजना ठाकुर
ऑपरेशन के बाद आंख खुली तो सबसे पहले पूजा को फरहान का ध्यान आया उसने पूछा कैसा है वो ,पूजा के पति ने कहा ठीक है आज पूजा को अहसास हो रहा था बचपन मै भाई की कलाई पर राखी बांधते समय फरहान ने भी कलाई आगे कर दी तो पूजा ने कहा था बहन की रक्षा करनी पड़ेगी।
तब फरहान ने कहा जान भी दे दूंगा बहन के लिए और आज अपनी एक किडनी दे कर कच्चे धागे का पक्का बंधन निभा दिया उसने ।।
अंजना ठाकुर
बंधन – सांची शर्मा
“मां, हर बंधन हम लड़कियों के लिए ही क्यों, क्या लड़कों के लिए किसी बंधन की जरूरत नहीं है इस समाज में?”, चीख चीख कर खून से लथपथ एक लड़की का निर्जीव शरीर अपनी मां से पूछ रहा था।
मृत अवस्था में पड़ी वो लड़की जिसके साथ एक राक्षस ने हैवानियत जैसा कुकृत्य करा था, अपनी मां तथा इस दुनिया से पूछ रही थी कि क्या एक मां लड़की के जन्म में कुछ काम दर्द उठाती हैं या उसको 9 महीने से कम अपनी कोख में रखती है या फिर उसमें अपने पिता का अंश नहीं होता जो सारी हैवानियत बस उसके लिए ही होती है।
“यहां मत जाओ, उससे मत बोलो, ऐसे मत बैठो, जोर से मत हंसो, ऐसे कपड़े मत पहनो, देर रात तक घर से बाहर मत रहो” – हजारों बंधन में पली बड़ी वो, पर अपने घर में अपने बाप भाई के आगे भी सुरक्षित नहीं है, कभी घर पर, कभी सड़कों पर, कार्यालय में, कहीं भी आदमी की हवस का शिकार हो जाती है पर बंधन में भी बस वो ही रहती है।
क्यों कभी हमारा समाज कोई बंधन किसी लड़के पर नहीं लगाता, क्यों कभी उसको यह नहीं समझाया जाता की नवरात्रि में पूजी जाने वाली कन्या है वो, देवी दुर्गा और मां लक्ष्मी का रूप है वो, वो ही है जो इस संसार को चलाती है और इस हैवान रूपी इंसान को भी वो ही पैदा करती है,
उसकी इज्जत करो
उसकी रक्षा करो
उसका सम्मान करो
काश की कोई बंधन हमारा समाज इन राक्षसों की सोच पर भी लगाए,
उनकी परवरिश पर भी लगाए,
तो शायद हर लड़की खुल के सांस ले पाए
और निडर होकर इस दुनिया में जी पाए।
आदरणीय पाठकों, आपके विचारों का इंतजार रहेगा
स्वरचित एवं अप्रकाशित
सांची शर्मा
हरिद्वार
भातृ-प्रेम – विभा गुप्ता
” लाजो…बिटिया की शादी सिर पर है और हाथ खाली।कैसे सब इंतज़ाम होगा।” अपनी पत्नी से कहते हुए रामेश्वर सिर पर हाथ रखकर बैठ गये।
तभी दो आदमी अपने हाथों में सामान उठाये भीतर आये तो रामेश्वर चौंक गये।पीछे से सिद्धार्थ आया और उनकी पगधूल अपने मस्तक पर लगाते हुए शिकायती लहज़े में बोला,” भइया..बेशक हमने एक माँ का दूध नहीं पीया है लेकिन रगों में तो एक ही पिता का खून दौड़ रहा है।आप-भाभी तकलीफ़ में रहें और मुझे खबर भी न हो..भइया..हमारे बीच रक्त-बंधन है जो कभी नहीं टूट सकता है। आप बस हुक्म करते जाये..बिटिया की शादी उसी तिथि पर धूमधाम से होगी।”
” मेरे भाई..।” कहते हुए रामेश्वर ने छोटे भाई को अपने सीने-से लगा लिया।देवर के लिये चाय लाती हुई लाजो का हृदय भी भातृ-प्रेम देखकर भाव-विभोर हो उठा।
विभा गुप्ता
# बंधन स्वरचित, बैंगलुरु
बँधन – रश्मि प्रकाश
“अतीत की यादों से बाहर आओ मैडम ये दुनिया ऐसी ही है… जहाँ मतलब होता सब चिपक जाते और फिर ओहदे की महत्ता तो सभी जानते हैं.. तुम क्यों सोच रही हो इतना उसकी छोटी सी बुद्धि मे जितना आएगा वो वैसा ही व्यवहार करेंगी।” फोन पर अपनी दोस्त से कुछ साझा करती रजनी से सुचि ने कहा
“हाँ यार मैं लोगों से दिल का बँधन निभाने लगती और लोग इसका फ़ायदा उठाते और देखो जब मतलब नहीं तो ऐसे व्यवहार कर रही जैसे जानती ही ना हो… सच कहते हैं लोग खुद को मतलबी लोगों के बँधन से आज़ाद कर अपना दिल साफ रखो।” सुचि से इतना कहकर रजनी ने उन सभी बंधनों से खुद को आज़ाद कर लिया जो सिर्फ़ मतलब के यार थे
रश्मि प्रकाश
जड़ — -संध्या त्रिपाठी
धीरे निकालना, जड़ टूट न जाए ..वाह मम्मी आपने परिवार के जड़ को प्यार सम्मान और समझदारी से मजबूत बनाया ही है, उस नन्हे पौधे की जड़ कमजोर ना पड़ जाए इसका भी पूरा ख्याल रखी हैं.. !
हां बहू , जड़ अपने चारों ओर के मिट्टी को अपना सहारा समझता है बंधन नहीं.. विरासत के रूप में मेरी एक समझाइस याद रखना.. नया पौधा हो या नया सदस्य… जब एक घर छोड़कर दूसरे घर में आता है.. उसे कोमलता प्यार व समझदारी से व्यवस्थापित करना.. ताकि नए घर में मर्यादाएं संस्कार रीति रिवाज परंपराओं को बंधन ना समझ उन पर अमल कर गर्व करें .. ताकि इनकी भी जड़े मजबूत हो सके..।
(स्वरचित) संध्या त्रिपाठी (छत्तीसगढ़)