तकदीर – डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
निहारिका को हर किसी ने कहा, “तुम लड़की हो, टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में क्या करोगी? यह तो लड़कों का काम है। तकदीर भी तुम्हारा साथ नहीं देगी।”
निहारिका ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया। उसने रात-दिन मेहनत कर कोडिंग सीखी और एक नई एआई एप्लिकेशन तैयार की, जो स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का तुरंत समाधान सुझाती थी।
जब उसका ऐप इंटरनेशनल अवॉर्ड जीत गया, तो वही लोग तारीफ करने लगे।
निहारिका ने कहा, “तकदीर हमारा जन्म तय करती है, लेकिन हमारी मेहनत और साहस उसे नई दिशा देते हैं। असली ताकत खुद पर यकीन रखने में है।”
समाप्त
प्रस्तुतकर्ता
डा.शुभ्रा वार्ष्णेय
तकदीर – सुभद्रा प्रसाद
” लिजीए दीदी, मिठाई, मेरा बेटा अफसर बन गया |” अनीता की गृह सहायिका लीला बोली |
” क्या ? ” अनीता का मुंह खुला रह गया | उसे वे दिन याद आ गये, जब लीला उसके पास अपने बेटे के प्रतियोगिता परीक्षा हेतु फार्म भरने, किराये और अन्य खर्चे के लिए पैसे उधार मांगने आती थी | वह पैसे तो दे देती, पर हंसी उडाते,ताना मारते हुए कि उसके बेटे की तकदीर में अफसर बनना नहीं लिखा है | वह और उसका बेटा बेकार हीं अपना समय और पैसे खर्च कर रहे हैं| बेहतर है उसका बेटा कोई भी छोटी- मोटी नौकरी करले |
” बधाई हो | मुझे माफ कर दे | मैं तुम्हें ताना मारती, व्यंग्य करती रहती थी |”
” नहीं दीदी, माफ़ी मत मांगो | यही ताने, उलाहने और व्यंग्य तो हम माँ- बेटे को तकदीर बनाने को प्रेरित करते रहे |” लीला की बात सुनकर अनीता को बहुत शर्म आई |
# तकदीर
स्वलिखित और अप्रकाशित
सुभद्रा प्रसाद
पलामू, झारखंड |
तकदीर – संध्या त्रिपाठी
मम्मा – मम्मा ये तकदीर क्या होता है? दादी बोल रही थी आपकी तकदीर अच्छी है और बुआ की खराब !
बुआ के ससुराल वाले उतने अमीर नहीं है और मैं निर्धन परिवार से अमीर परिवार में आई हूं ना.. शायद दादी इसीलिए बोल रही होगी पर ये कोई नहीं जानना चाहता कि व्यक्ति को चाहिए क्या होता है ।
मुझे तो अपने घर से ज्यादा बुआ का घर अच्छा लगता है, फूफा जी बुआ और पारुल हमेशा साथ होते हैं फूफा जी कितना समय देते हैं..पापा को तो फुर्सत ही नहीं ! मम्मा मुझे बुआ वाला ही तकदीर चाहिए । वाह मेरी बच्ची , इस सोच वाली बिटिया पाकर वाकई में मै तकदीर वाली हूं ।
(स्वरचित) संध्या त्रिपाठी, अंबिकापुर,छत्तीसगढ़
तकदीर में नहीं है – मंजू ओमर
अरे काकी अब इस उम्र में आप कैसे अकेले रहोगी बहू बेटे के पास चली जाओ। कहां चली जाऊं बेटा शारदा काकी बोली,बहू हमें रखना नहीं चाहतीं रोज़ रोज़ घर में बेटे से झगड़ा करती है । इसलिए अपने घर चली आई ।अब काका तो तुम्हारे रहे नहीं और कोई सहारा है नहीं तो अब ऐसे ही रहना है न।बड़ी हसरत से लोग अपनी औलाद को पाल-पोस कर बड़ा करते हैं कि वो बुढ़ापे का सहारा बनेगा ।इन कांपते हाथों को थामेगा, लेकिन जब तकदीर में सुख नहीं लिखा है तो कैसे मिलेगा।अब तो अकेले ही ऐसे ही गुज़र जाएगी जिंदगी ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
24 जनवरी
तकदीर – आशा किरण
विज्ञान ग्रेजुएट होने के बावजूद सीमा को नौकरी नहीं मिल पा रही थी . बीमार पिता व छोटे भाई के बढ़ते पढ़ाई के खर्चे के कारण, मजबूरी में प्लेसमेंट एजेंसी द्वारा मिली सत्तर वर्षीय वृद्धा की देखभाल का कार्य उसने स्वीकार कर लिया.
कुछ दिन पश्चात, दसवीं में पढ़ रहे उनके पोते को ग़लत फॉर्मूला रटते देख, टोककर सही फॉर्मूला समझाया.आश्चर्यचकित वृद्धा, सीमा की पुरी जानकारी लेती हैं.
*तकदीर* का खेल देखिए, आज सीमा उन वृद्धा (जोकि रिटायर्ड स्कूल प्रिंसिपल है) के घर अनेकों बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है जोकि वह अपने छोटे घर में नहीं कर सकती थी.
स्वरचित – आशा किरण (दिल्ली)
तकदीर – आशा किरण
दिल्ली के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की पढ़ाई छोड़, सपनों की नगरी मुंबई में जाकर एक्टिंग द्वारा नाम दौलत इतना कमाया कि चांद तक पर जमीन खरीदने में सफल हो गए.
षड्यंत्र कहो या फिर महत्वाकांक्षाओं का पूरा ना होना… एक दिन पाया गया फांसी से लटकता सुशांत सिंह राजपूत का निर्जीव शरीर .
*तकदीर* के आगे बेबस परिवारजन आज भी यही सोचते होंगे ,काश तकदीर में मुंबई जाना ना लिखा होता तो आज इंजीनियर बन बेटा साथ खड़ा होता.
जो कमाया धन दौलत , वो परिवार के किस काम का, जब मन्नतों से मांगा हुआ वह लाडला ही नहीं साथ.
स्वरचित – आशा किरण (दिल्ली)
तकदीर से जंग – रूचिका
बचपन से ही अपनी बीमारी के तकलीफ से जूझती सपना को जब उसके करीबी रिश्तेदार हेय दृष्टि से देखते तो सपना बहुत रोती और अपने तकदीर को कोसती रहती थी।
तभी उसकी माँ ने उसे समझाया बेटा, तकदीर से लड़ो।खूब मेहनत करो।
जब तुम एक अच्छी नौकरी पा लोगी तो यही लोग तुम्हारा सम्मान करेगा।
और यही सच भी हुआ।
आज जब सपना उच्चाधिकारी बन गयी है तो सभी लोग उसके तकदीर से रश्क करते और उसके आगे पीछे घूमने लगे हैं।
रूचिका
सीवान बिहार
दृढ़-निर्णय – विभा गुप्ता
” ये क्या मालती…नमिता का फिर से विवाह..एक विधवा के पुनर्विवाह पर लोग थूकेंगे।नौकरी तक तो ठीक था लेकिन शादी…।” पुष्पलता ने अपनी देवरानी को समझाना चाहा तो मालती बोली,” जीजी..जब मेरे पति की मृत्यु हुई तब आपने हमें कहा था कि तुम माँ- बेटी की #तकदीर में यही लिखा था।हमने मान लिया।नमिता पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी लेकिन जेठजी ने जबरदस्ती उसका ब्याह एक शराबी से करा दिया।साल भर में ही वो विधवा हो गई..।तब भी आपने यही..।बड़ी मुश्किल से तो वो अपने दुखों से बाहर निकली है।उसने अपनी पढ़ाई पूरी की..स्कूल में टीचर बनकर अपनी तकदीर खुद लिखी है।अब वो अपने मनपसंद साथी के साथ विवाह करके अपनी गृहस्थी बसाना चाहती है।सुन लीजिए.. मैं किसी को भी अपनी बच्ची की खुशियों के आड़े आने नहीं दूँगी।”
” लेकिन मालती..।”
” बस जीजी..दरवाज़ा उधर है।” मालती ने हाथ से इशारा किया और कमरे में चली गयी।दरवाज़े की ओट में खड़ी नमिता ने अपनी माँ का दृढ़-निर्णय सुना तो ‘ मेरी अच्छी माँ ‘ कहकर मालती के गले लग गई।
विभा गुप्ता
# तकदीर स्वरचित, बैंगलुरु
तकदीर – एम. पी. सिंह
कॉलेज के फाइनल एग्जाम्स शुरू होने में अभी 2 महीने बाकी थे, कैंपस प्लेसमेंट के लिए एक कंपनी आई। अंकिता ओर राधा, दोनो सहेलियों ने भी इंटरव्यू दिया। कुछ दिन बाद आशा को नोकरी का अपॉइंटमेंट लेटर मिल गया अंकिता को नोकरी नही मिली, जिसके कारण वो तनाव में आ गई। उसके पापा ने इसके तनाव को महसूस किया ओर उसको समझाया, की निराश मत हो। हो सकता हैं तुम्हारे लिये इससे अच्छा आफर इंतजार कर रहा हो। अपने फाइनल्स की तैयारी करो, बाकी ऊपर वाले पर छोड़ दो। कुछ दिन बाद कॉलिज में एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी आई और अंकिता का सिलेक्शन हो गया और पैकेज भी ज्यादा था।
अंकिता ने पापा को थैंक यू बोला, ओर कहा कि आप सही कहते थे, जो होता है वो अच्छा ही होता है। हमें बस मेहनत करनी चाहिए और बाकी सब तकदीर पर छोड़ देना चाहिए।
गागर में सागर प्रतियोगिता (तकदीर)
लेखक
एम. पी. सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
23 Jan.25
माँ का त्याग – चाँदनी झा
“तकदीर बदल दिया तुमने बेटा, मुझे तुम पर गर्व है।” मीनाजी के इतना कहते ही छोटी,…अतीत में खो गयी, पूरे घरवाले का विरोध कर मुझे स्नातक करवाया माँ ने। घरवालों की मानसिकता, बेटी की शादी कर छुटकारा पाओ, से लड़ी। मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया, मेरी पढ़ाई के खर्च के लिए सिलाई करती, मुझे ट्यूशन पढ़ाने केलिए प्रेरित किया। आज मैं अपने मेहनत से ज्यादा माँ के त्याग और प्रेरणा के कारण, आईपीएस जैसे परीक्षा पास कर पाई हूँ। सारे घरवाले इसकी सफलता से खुश हैं, पर माँ के त्याग का मोल सिर्फ छोटी समझ पा रही थी।
चाँदनी झा