Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

# अपनेपन की महक – सुनीता माथुर 

प्रिया तुम दौड़ दौड़ के अपनी सहेली मीना के घर जाती हो अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दो कुछ घर के काम सीखो क्या बात है। मम्मी आपको पता है मीना की दादी मेरा रोज इंतजार करती हैं और कुछ भी उनके घर बनता है मेरे लिए थोड़ा सा बचा कर रखती हैं ,और बोलती हैं ,जैसी मीना मेरी पोती है वैसी ही तुम भी मेरी पोती हो मुझे उनमें अपनेपन की महक आती है, मां मेरी भी दादी होती तो इतना ही प्यार करतीं ! मां यह सुनकर नाराज होने की जगह खुश हो जाती हैं।  चलो अच्छा है, मेरी बेटी को दादी का प्यार और दादी से अच्छे संस्कार मिलेंगे।    

सुनीता माथुर 

मौलिक , अप्रकाशित

पुणे महाराष्ट्र

 

#अपनेपन की महक – मनीषा सिंह

कोरोना रूपी बीमारी पिंजरे से कम नहीं थी••• जहां हम सब कैदी थे •••सब कुछ खत्म। ना किसी से मिलना, ना कोई मस्ती! जीवन बेरंग थी। रिश्ते मौत के डर के सामने घुटने टेक दिए थे। ऐसे में “जिंदादिल मोहनी डिप्रेशन का शिकार होने लगी••• तभी, मोहनी की “बॉस की मैडम” ने एक ऐसी योजना बनाई, जिसे “महिला क्लब” के सदस्या महीने में दो बार मिलना शुरू कर सके, लेकिन “सोशल डिस्टेंस”मेंटेन रख के•••। मानो मोहिनी को•• तिनके का सहारा मिल गया हो।

पंछी अगर पिंजरे में कैद हो और कोई उसे सही सलामत उड़ा दे और फिर वही उसको सही सलामत वापस अपने घोंसले में भेज दे तो जिंदगी का मजा दोगुना हो जाता है••••!

इसे कहते हैं••• “अपनेपन की महक” ।

मनीषा सिंह

 

“अपनेपन का एहसास’ – पूजा शर्मा

जब अपनेपन का एहसास ही ना हो तो साथ रहने का फायदा ही क्या, मैंने सोचा था अपनी देवरानी के साथ बहन की तरह रहूंगी मैंने तो अपनी तरफ से हर कोशिश की लेकिन नाकाम रही देवर जी ,हमरी वजह से आप अपनी गृहस्ती खराब मत कीजिए, नेहा आपके साथ अलग घर में रहना चाहती है तो कोई बात नहीं अगर दूर रहकर भी आपस में प्रेम बना रहे तो अच्छा है, तुम्हारे भैया और मैं तुम्हारे लिए हमेशा वैसे ही रहेंगे जैसे रहते आए हैं। लेकिन भाभी।?रवि के इतना कहते ही मानसी ने उसे अपनी कसम देकर चुप कर दिया। दोनों की ही आंख में आंसू भरे थे। 

पूजा शर्मा स्वरचित

 

अपनेपन की महक – नीलम शर्मा 

जब कल सिया अपने घर, गांव ,सखी- सहेलियों को पीछे छोड़कर बड़े शहर में पढ़ने के लिए आई , तो इस अनजाने शहर में बहुत ही अकेला महसूस कर रही थी। उसे रह- रहकर अपने घर की याद आ रही थी। फिर उसने सोचा पहले अपना समान ही सेट कर लिया जाए थोड़ा मन ही बहल जाएगा। 

अपने सामान में जब उसने मम्मी का बनाया आम का अचार और बेसन के लड्डू देखे, तो उसे उनमें अपनेपन की महक महसूस हुई। उसे लगा उसकी मम्मी भी उसके साथ वहीं हैं।

नीलम शर्मा 

 

*अपनेपन की महक* – पुष्पा जोशी

      विकास और शीला ने जबसे पॉश कॉलोनी में मकान लिया है, आधुनिकता का रंग चढ़ गया है,बड़ी-बड़ी पार्टियों में जाना और अपने आपको बड़ा समझने का भूत उनके सर चढ़कर बोलने लगा है, पुरानी बस्ती के लोगों को जो उनके जीवन का हिस्सा थे, अब उनका नाम लेना भी उन्हें पसन्द नहीं था। उनकी बेटी मीरा इन दोनों से भिन्न थी। वह अपनी बस्ती की सहेलियों से रोज मिलती थी।एक बार कॉलोनी में विवाह समारोह की पार्टी थी,उसी  दिन बस्ती में मीरा की सहेली की शादी थी।शीला ने जब मीरा से पार्टी में चलने के लिए कहा तो वह बोली-‘ माँ मैं बस्ती में सहेली की शादी में जाऊँगी वहाँ मुझे अपनेपन की खुशबू आती है।’

प्रेषक

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

 

बेटे का प्यार – मंजू ओमर

सुगंधा का 18 साल का बेटा बहुत लापरवाह था हर मामले में।उसकी इस आदत से सुगंधा बहुत परेशान रहती थी।जिसकी वजह से सुगंधा हर वक्त बेटे रोहित को समझाती और टोकती रहती थी । जिससे रोहित मां से चिढ़ा चिढ़ा रहता था।

            12वी के बाद कम्पिटीशन की तैयारी के लिए दोस्तों के संग कोचिंग लेने कानपुर जाना चाहता था । लेकिन सुगंधा को बहुत चिंता थी कि ये अकेले कैसे रहेगा । कहीं किसी परेशानी में न फंस जाएं । सुगंधा के मना करने पर भी वो जिद लगाए बैठा था जाने की और बोला मुझे जाना है और बोला कम से कम वहां आप तो न होगी न दिनभर रोकने टोकने के लिए।

              और रोहित चला गया जिद करके।चार दिन बाद रोहित का फोन आया मम्मी तुम्हारी बहुत याद आ रही है और तुम्हारे हाथ का खाना भी ।बेटे के इस अपने पन‌से सुगंधा की आंखें भर आईं ।

  मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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अपनेपन की महक – नेहा अंगत मांडोत

आकांक्षा का हाथ खींचकर विक्की उसे खरी–खोटी सुना रहा था। 

उस भोली लड़की को पूरी महफिल घूर रही थी और वह सिर झुकाए हुए सब सुन रही थी ,विक्की खुद को सुपीरियर समझ रहा था , और अपना हाथ उठाने ही वाला था कि सामने आकर साहिल ने उसका हाथ पकड़ लिया ।

विक्की ने साहिल से कहा कौन हो तुम ?

जो हमारे पारिवारिक मामले में पड़ रहे हो ।

साहिल – मामला पारिवारिक हैं तो यहां सामाजिक तौर पर किसी महिला को क्यों बेआबरू किया जा रहा है।

साहिल के के संस्कार सागर की तरह बह रहे थे, और विक्की सागर में गागर की तरह अपने छोटे संस्कार सामाजिक कर रहा था ।6v नेहा अंगत मांडोत

 

अपनेपन की खुशबू – रूचिका

सुनिए,इस बार मिलने आइए तो दो-चार दिन मेरे पास रूकना है मैं कोई बहाना नही सुनूँगी।

यह बात जब शिखा भाभी ने फ़ोन पर कही तो ऋचा की आँखों में आँसू आ गए।

कहने को तो वह पराई थीं पर उनका प्यार अपनों से भी बढ़कर था।

एक और ऋचा की सगी भाभी उसे देखना नही चाहतीं थीं वही शिखा भाभी उसे अपनी ननद से भी ज्यादा प्यार दुलार देती थीं।

ऋचा को उनके व्यवहार में जो अपनेपन की खुशबू मिलती थी वह उसके जीवन की अनमोल पूँजी थीं।

और इसके लिए वह ईश्वर की शुक्रगुजार थी।

रूचिका

सीवान बिहार

 

अपनेपन की महक – खुशी 

रेवती बस से आगरा जा रही थीं। टिकट लेकर बस में बैठी बीच में बस रुकी तो सब चाय पीने उतरे।रेवती भी उतरी चाय नाश्ता करके जैसे ही बैग में से पर्स निकालने लगीं तो देखा पर्स गायब अब रेवती परेशान सी सब तरफ ढूंढने लगी बस वाला चिल्ला रहा था सब बस में बैठो।रेवती रोने को आ गई ढाबे वाले के पैसे कैसे दे।तभी वहां एक लड़का आया उसने पूछा दीदी क्या कहा आप क्यों परेशान हो रेवतींबोली मेरा पर्स कही खो गया है ढाबे वाले को पैसे कैसे दूं।वो लड़का बोला दीदी घबराओ मत उसने ढाबे वाले को पैसे दिए।और रेवती को किराए के भी बोला दीदी बाद में दे देना मैं भी आगरा का ही हूँ। रेवती को लगा जैसे उसका अपना सगा भाई हो जैसे उसके व्यहवार में अपने पन की खुशबू थी वैसे ही उस लड़के के व्यवहार में भी थी।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी 

 

# अपनेपन की महक – डॉ आभा माहेश्वरी

“अम्मा आज  उदास थीं।बाबा को घर छोड़कर अपने गुरुजी की शरण में गये हुए एकसाल होगया था– । अम्मा बेचारी क्या करतीं।कोई आगे ना पीछे– कोई संतान नही थी अम्मा की।आज तो अम्मा बहुत बीमार थी– उठ भी नही पारहीं थीं– कोई नही था जिसे वो अपना कहसके।उसी दिन रात को अचानक अम्मा के गाँव का एक लड़का आया और बोला कि,” बाबा ने भेजा है मुझे आपकी देखभालके लिए” अम्मा की आँखों से आँसू बहने लगे–अम्मा अबतक बाबा को निर्मोही समझती रही थीं किंतु आज उन्हें बाबा के प्यार में अपनेपन की महक आरही थी।।

    लेखिका

   डॉ आभा माहेश्वरी अलीगढ

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