Top Ten Shorts Story in Hindi – हिन्दी लघुकथा

गलतफहमी – प्राची अग्रवाल 

श्रुति को शुरू से ही लगता कि उसके माता-पिता उसे कम और भाई को ज्यादा प्यार करते हैं। बचपन से ही उसके मन में गांठ बैठ गई थी। हर बात पर विरोध प्रकट करती। श्रुति होशियार थी हर बात में। उसका भाई शुरू से ही थोड़ा बीमार सा रहता इसलिए उसकी मम्मी उसकी फिक्र अधिक करती।

समय बढ़ता गया और श्रुति की कड़वाहट भी। उसकी शिकायतयें कभी कम नहीं होती।

समय आगे बढ़ता रहा। श्रुति विवाह करके अपनी नई दुनिया में आ गई। जिम्मेदारियों का बोझ भी कंधे चढ़ने लगा। श्रुति खुद दो बच्चों की माँ बन गई है। अब उसे एहसास होता अपनी गलती का। बच्चों को संभालना कितना कठिन कार्य होता है यह उसे अब पता चलता। बच्चों की शैतानियों को देखकर कभी-कभी तो आपा भी को देती। धुनाई भी कर देती बच्चों की फिर खुद भी रोती।

बचपन से बनी हुई गांठ अब खुल जाती है और वह माफी मांगती है अपने माता-पिता से। तब उसके पिताजी समझा कर कहते हैं कि जिस प्रकार हाथ की उंगलियां छोटी बड़ी होती हैं लेकिन काम सबका बराबर होता है उसी प्रकार माता-पिता के लिए उनके बच्चे महत्वपूर्ण होते हैं लेकिन जो कष्ट में होता है उसकी तरफ झुकाव अधिक हो जाता है। माता-पिता अपने बच्चों को कम ज्यादा प्यार नहीं करते बल्कि खुद से भी ज्यादा करते हैं।

प्राची अग्रवाल 

खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश 

#विरोध प्रकट करना पर आधारित लघु कथा

 

विरोध – मनीषा सिंह

“कम से कम बच्चों के सामने तो मत पियो”—-! रति अपने पति जो, बच्चों के सामने  ही दारू की बोतल खोल के पिये  जा रहा था तब— रति ने इसका विरोध किया।

 ‘चल मुझे अपना काम करने दे’ जा– जाकर– कुछ खाने को लेकर आ— वरना–

 वरना क्या—? मारोगे मुझे—-तुम्हारी रोज-रोज की नाटक झेलने की शक्ति नहीं मुझमें—!

 तो क्या करेगी— मुझे भी मारेगी— चल निकल यहां से—! चेहरे पर एक अजीब सा भाव लाते हुए रमेश बोल पड़ा।

तुम सुधरोगे नहीं और बच्चों को तुम्हारे जैसा बने नहीं दूंगी—! इसलिए मैं तुम्हें सदा के लिए— छोड़ कर जा रही हूं। कहते हुए रति बच्चों को लेकर वहां से चली गई और रमेश देखता ही रहा ।

मनीषा सिंह ।

 

बेटी की ढाल – शिव कुमारी शुक्ला  

जसवंत सिंह की जोरदार आवाज गूंजी कि अब राधा आगे नहीं पढेगी। उसकी शादी होगी।

तभी सुधा जी की गुस्से में भरी आवाज आई राधा आगे पढेगी और उसकी शादी अभी नहीं होगी।

जसवंत सिंह ठगे से खड़े रह गये। जिसने बीस साल में चिल्लाना तो दूर जोर से भी नहीं बोला वह आज इतनी जोर से चिल्ला रही थी।

वे फिर बोले मैंने क्या कहा सुना नहीं।

सुना और ये एक मां बोल रही है कि मेरी बेटी पढेगी। मैं नहीं चाहती कि इतिहास फिर से दोहराया जाए।जो मैंने झेला वह मेरी बेटी भी झेले। कोई उसे खाना, कपड़े सिर पर छत होने का ताना दे। किसी के रहमो करम पर उसकी जिंदगी गुज़रे।

सुधा जी का प्रबल विरोध देख और उसका ताना सुन जसवंत सिंह की आवाज नहीं निकली।वे आत्म ग्लानि से भर उठे,सच ही तो कह रही है सुधा मैंने यही सब तो उसे दिया है।

तभी सुधा जी फिर बोलीं मैं  अपने लिए विरोध नहीं कर सकी पर अब बेटी के लिए ढाल बनकर हर गलत बात का दृढ़ता से विरोध करूंगी।

शिव कुमारी शुक्ला 

1-12-24

शब्द विरोध*****गागर में सागर

 

अब बस – विभा गुप्ता

           ” सुमित…अब बस….।” चीखते हुए आरती ने अपने पति सुमित का हाथ पकड़ लिया।

       तीन साल आरती की शादी सुमित के साथ हुई थी।सुमित ने यह कहकर उसकी टीचर की नौकरी छुड़वा दी कि मैं तो कमाता ही हूँ।दो-तीन महीने तो ठीक निकले, लेकिन उसके बाद से सुमित उसे पर शब्दों के तीर चलाने लगा।दोस्तों के सामने भी उसे अपमानित करने लगा।उसकी सहेलियाँ कहतीं कि आरती..तू अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहारों का # विरोध कर पर वो हँसकर टाल देती।आज मेहमानों के सामने ज़रा-सा पानी गिरने पर सुमित ने उस पर हाथ उठाना चाहा तब आरती ने उसका हाथ पकड़कर #विरोध प्रकट किया।दोनों में बहस होने लगी मेहमान चले गये, तभी आरती के पिता आ गये।उन्होंने गुस्से-से सुमित से कहा,” आज मेरा शक यकीन में बदल गया..तलाक के कागज़ात पर चुपचाप साइन कर देना वरना घरेलू हिंसा, मानसिक प्रताड़ना सहित इतने आरोप लगा दूँगा कि…।चल बेटी..।” आरती का हाथ वो बाहर निकल गये।सुमित सकते में था कि सीता समझा था, ये तो दस हाथों वाली दुर्गा निकली।

                                    विभा गुप्ता

# विरोध                      स्वरचित, बैंगलुरु 

विरोध करना – अंजना ठाकुर 

रजनी की शादी अमन से तय हो गई रजनी की एक ही शर्त थी ,कि अमन दहेज नहीं लेगा ।अमन भी तैयार था लेकिन शादी वाले दिन अमन ने मौके की नजाकत देख महंगी कार की मांग कर दी ।रजनी के पापा बदनामी के डर से तैयार हो गए देने के लिए रजनी को बात पता चली तो उसने इसके खिलाफ आवाज उठाई और शादी करने से इनकार कर दिया ।घर मैं सबने बहुत समझाया कि इस से बदनामी होगी।लेकिन रजनी ने कहा कि गलत बात का विरोध तुरंत नहीं किया था वो गुनाह बनते देर नहीं लगती अच्छा है असलियत पहले ही सामने आ गई । और रजनी ने बारात लौटा दी अपने फैसले से वो खुश थी।।

अंजना ठाकुर  

 

बेटी को पढ़ाओ – विभा गुप्ता 

         ” जानकी…तुम्हरा दिमाग तो ठीक है…बड़े भईया का # विरोध करके तुम उनका अपमान कर रही हो।” उमाशंकर पत्नी पर चिल्लाये।

   जानकी बोली,” नहीं जी..मैं जेठजी का अपमान नहीं कर रही…मैं तो बस इतना कह रही हूँ कि हमारी बिटिया पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर ले..उसके बाद उसका ब्याह कर दे।सरकार भी तो यही कहती है कि बेटी को पढ़ाओ…।हम तो पाँचवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ पाये लेकिन हमारी बेटी तो काॅलेज़ जा रही है..अब बीच में उसकी पढ़ाई छुड़वा देंगे तो हम विरोध करेंगे ही।निधि अपना बीए पूरा कर ले…उसे सही-गलत की समझ हो जाये….फिर उसका विवाह करने में हमें कोई आपत्ति नहीं होगी।”

        पत्नी की बात सुनकर उमाशंकर बहुत खुश हुए।उन्होंने तुरंत अपने भाई से कहा कि ग्रेजुएशन कंप्लीट होने के बाद ही हम अपनी निधि का ब्याह करेंगे।उसके भाई बुदबुदाये,जोरू का गुलाम.. जिसे उमाशंकर सुन कर भी अनसुना कर दिये।   

                                        विभा गुप्ता 

# विरोध                       स्वरचित, बैंगलुरु 

 

विरोध – डाॅक्टर संजु झा

दफ्तर  में   बाॅस नवीन का   शीना के प्रति कुछ ज्यादा ही झुकाव था । दोनों शादीशुदा थे,परन्तु काम के बहाने कभी नवीन शीना के कंधे पर हाथ  रख देता ,तो कभी भद्दा -सा मजाक कर देता।सबकुछ जानते-समझते हुए  भी शीना  खामोश थी।आज तो नवीन ने हद ही कर दी।लंच के समय सभी सहकर्मी  बाहर गए  थे,नीना वाॅशरूम जा रही थी,उसी समय नवीन ने  उसका रास्ता रोककर हाथ पकड़कर  कहा -” जानेमन!कभी-कभार  तो मुझे भी अपने यौवन का रस पिला दिया करो।”आज नवीन का व्यवहार  असहनीय हो गया ,शीना ने विरोध का स्वर मुखर करते हुए थप्पड़ उसके मुँह जड़ दिया।उसी समय सारे सहकर्मी आकर शीना का साथ देते हुए नवीन  को अपनी करनी के लिए  माफी माँगने को मजबूर कर दिया।

 सच में अन्याय के खिलाफ विरोध का स्वर उठाना साहसिक कदम है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

 

विरोध – एकता बिश्नोई

 विन्नी आकर  खाना खाले….माँ ने रसोई घर से आवाज लगाई 

नहीं….. जब तक आप मुझे फ्रॉक नहीं दिलाओगी मैं खाना नहीं खाऊंँगी…. शाम को रति के जन्मदिन पर मैं क्या पहन कर जाऊंगी…?

       दरअसल कल विन्नी माँ के साथ अपने लिए फ्रॉक खरीदने बाज़ार गई थी अपनी सहेली के जन्मदिन पर पहनने के लिए…मगर फ्रॉक इतनी महंगी थी कि मांँ विन्नी को वह  नहीं दिलवा पाईं…तब से ही विन्नी नाराज थी .. और आज स्कूल से आकर सीधे छत की सीढ़ियों पर आकर बैठ गई।

       यह विरोध करने का उसका अपना तरीका था।वह जब भी किसी से नाराज होती तो यहीं आकर बैठ जाती थी।

        अच्छा पहले अंदर तो चल …. विन्नी बेमन से माँ के साथ चली आई…माँ अलमारी में से एक सुंदर सी फ्रॉक निकाल कर लाई और विन्नी के सामने फैला दी।

         अरे वाह! इतनी सुन्दर फ्रॉक…यह तो उससे भी अधिक सुंदर है माँ…… कहाँ से लाईं….?

       कहीं से नहीं..यह मैंने अपनी पुरानी साड़ी से खुद सिली है..अपनी बिटिया के लिए…… ।

     विन्नी हैरान सी अपनी मांँ से लिपट गई….”तुम कितनी अच्छी हो माँ”…..बस बस अब ज्यादा मस्का न लगा…कहकर माँ हंसने लगी।

नाम – एकता बिश्नोई

तलाक़ – मंजू ओमर

मां बाप के विरोध के बावजूद राहुल ने सलोनी से शादी कर ली ।और अब शादी के मात्र नौ महीने बाद ही सलोनी की तरफ से राहुल को तलाक़ का नोटिस आ गया । राहुल के मम्मी पापा बहुत परेशान थे और राहुल को समझा रहे थे देखो बेटा हम लोगों के विरोध के बावजूद तुमने सलोनी से शादी करने की ज़िद पकड़ी थी । जबकि हम लोग मना भी कर रहे थे कि लड़की और उसका परिवार ठीक नहीं लग रहा है लेकिन तुम नहीं माने ।अब शादी की है तो उसे निभाओ भी। राहुल बोला नहीं अब नहीं निभ सकती ,तो भुगतो बात न मानने का नतीजा ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

29 ंनवंबर 

विरोध – रूचिका

आँखों में आँसू लिए बुखार से तपते शरीर के साथ वह बर्तनों के ढेर को माँज रही थी।

लता ने देखते हुए कहा ,अरे तुम्हें तो बुखार है।

छोड़ दो,सुबह माँजना।

तभी पीछे से एक रौबदार आवाज गूँजी, इतने बर्तन धोने से मर नही जाएगी।

ज्यादा शुभचिंतक बनने की जरूरत नही है।

लता एकदम चुप हो गयी।

वह विरोध करती भी तो कैसे,वह रौबदार आवाज उसकी सास की थी जो परिवार की मुखिया थी।जिनके आदेश के बिना एक पत्ता भी नही हिलता था।

रूचिका

सीवान बिहार

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