राखी – भगवती सक्सेना गौड़
बिट्टन बुआ रक्षा बंधन में पोटली में ढेरों राखी और मिठाई लेकर आती। चार दशक पहले राखी के दिन पूरे मोहल्ले में भाई बहनों के साथ त्योहार मना जाती।
पच्चीस बरस बाद अपने बुजुर्ग चाचा के यहां गयी। उनकी बेटी प्रतियोगिता की सीढ़ियां चढ़कर जर्मनी पहुँच गयी, बेटा हैदराबाद में बस गया।
बुआ जी पूछ बैठी, “नाना या दादा बने या नही?”
“नही, बिट्टन, अब डबल इनकम नो चाइल्ड का जमाना है।”
“हे राम, हमहू सुनत हई, बीस बरस पहले हम दो हमारे दो था फिर एक ही संतान अच्छी, अब हई अंग्रेज़ी वाले नारे में तो, एको नही।
स्वरचित
भगवती सक्सेना गौड़
बेंगलुरु
अनमोल उपहार – दिक्षा बागदरे
दीपिका का दिल आज सुबह से ही बहुत जोरों से धड़क रहा था।
20 साल बाद उसके बड़े भाई का आज अचानक फोन आया कि- मैं आ रहा हूं।
आज रक्षाबंधन है। यूं तो यह है खुशियों का त्यौहार।
मगर उनके फोन के बाद से ही दीपिका भय से कांप रही थी। किसी बड़े तूफान के आने की आशंका से उसका मन घिर गया था।
20 साल पहले उसका प्रेम विवाह हुआ था। तब से ही सबसे बड़े भाई ने सारे संबंध तोड़ लिए थे। वे नाराज तो इतने थे, कि तब भी वे दीपिका और उसके पति की जान ले लेना चाहते थे।
दिपिका जानती थी कि आज भी वे यहां कोई खुशी लेकर आने वाले नहीं है।
आखिर वह समय आ ही गया। वे आए, आते ही कुछ प्रॉपर्टी के पेपर आगे किए। उसने बिना पढ़े ही साइन कर दिए। वो जानती थी कि पेपर्स में क्या लिखा होगा। उसने पेपर्स आगे बढ़ा दिए।
वे तुरंत चले गए।
घर में सब सोच रहे थे। आज सालों से जमी रिश्तों की बर्फ पिघलेगी। मगर नहीं, वो जानती थी- ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। “20 सालों की नफरत का पहाड़ एक पल में ढ़हने वाला नहीं है।”
सुबह से आया हुआ तूफान अब थम चुका था।
उसने बहन होने का फर्ज निभा दिया था।
अपनी तरफ से रक्षाबंधन का “अनमोल उपहार” उन्हें दे दिया था।
स्वरचित
दिक्षा बागदरे
16/8/24
आशीष – मंजू ओमर
हेलो भइया राखी पर भेजे गए आपके उपहार और पैसे मिल गए मुझे, अच्छा अच्छा खुश रहो मेरी प्यारी बहना।पर भइया इतने साल हो गए उपहार और पैसे भेजते भेजते क्यों परेशान होते हैं भइया अब न भेजा करें।आप लोग याद करते हैं यही बहुत बड़ी बात है। नहीं बेटा बड़ा भाई हूं थोड़े से उपहार और पैसे भेज देने से मेरे पास कम तो नहीं होगा न।और नेहा बेटा बहन बेटियों को देने से कम नहीं होता और बरक्कत होती है भाई के जिंदगी में ।भर भर
के भाई और मायके के लिए आशीष जो देती है बेटियां। भइया की बातें सुनकर नेहा की आंख भर आई ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
16 अगस्त
# राखी – डॉक्टर संगीता अग्रवाल
“मां!रक्षाबंधन में ,मैं भी राखी बांधूंगी..”की जिद करती सोना रोते हुए सो गई थी ,जब उसकी मां ने
कहा,”करमजली! कोख में आते ही बाप को खा गई,अब भाई की कामना है।”
सोती हुई बेटी को देखकर उसकी मां के आंसू बहने लगे,”क्यों बेचारी का दिल दुखाया मैंने,अगर उसके पिता
युद्ध में शहीद हुए तो इसमें उसका क्या कुसूर है?”
अगले दिन,सेना का एक जवान सोना से राखी बंधवा रहा था,उसे नेग में रुपए देते वो बोला,”हर शहीद
बाप,भाई की बहन हमारी अपनी बहन है और उसकी उम्मीद कभी धूमिल न पड़ने देंगे।”
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
राखी – रश्मि प्रकाश
राखी की नाजुक सी रेशम की डोर
हाथ पर बँधे तो बन जाए मज़बूत जोड़,
ये बंधन है भरोसे का, बचपन के प्रेम का
बहन भाई के लड़ाई झगड़े का,
शिकवे शिकायतों के अंबार का
इन सबके साथ साथ अपनेपन का,
कितनी होती ताकत पतली सी डोर में जिसे
कलाई पर बाँध भाई के ,बहन जताती प्यार अपना !!
रश्मि प्रकाश
राखी – स्वाती जितेश राठी
नम आँखों से स्नेह मैसेज को पढ़ रही थी। भाई से सिर्फ पता ही तो माँगा था ताकि राखी भेज सके।पर जवाब आया क्या जरूरत है मत भेजो फालतू में राखी ।
भाई परिवार से अलग हो गया था सालों पहले पर मन में तो हमेशा था पर आज राखी के लिए बेरूखी से मना कर क्या दिल से भी अलग होना चाहता था।
बुझे मन से राखी का लिफाफा उठाकर मंदिर में रख आई थी कि भगवान मेरे भाई को लंबी उम्र देना।
आज घर में सब को राखी बाँधते बँधवाते देख आँख भर आई थी ।
सबके राखी बँधने के बाद कमरे में जाने लगी कि एक हाथ सामने आया मेरी कलाई आज भी खाली है मैम ।
इस पर आज तो अपने स्नेह का धागा बाँध दिजिए ना ।
मैं आज भी आपको बहन कहने और मानने का हक चाहता हूँ।
देखा तो शरण था उसका पुराना छात्र जिसकी जिद थी की वो राखी उसके हाथ से ही बँधवाएगा नहीं तो उसकी कलाई खाली ही रहेगी।
स्नेह के पति को सब पता था और आज उन्होंने आखिर शरण और स्नेह के पवित्र रिश्ते को अपना लिया था।
आँसुओं की बारिश के बीच आज शरण की कलाई भी राखी से सज गई थी।
स्वरचित
स्वाती जितेश राठी
कदर – हेमलता गुप्ता
मां … बुआ इतनी अमीर होकर भी हर साल रक्षाबंधन पर घर की बनी हुई मिठाई और राखी क्यों भेजती हैं, बाजार में कितनी तरह की मिठाइयां और सुंदर-सुंदर राखियां मिलती हैं! रश्मि की बात सुनकर मां ने उसे एक कप चाय बना कर लाने को कहा, रश्मि के हाथ कीचाय पीकर मधु जी बोली… कितनी बेकार चाय बनाई है बिल्कुल स्वादहीन! मम्मी.. मैंने इतनी मेहनत से और मन से चाय बनाई है और आपको मेरी मेहनत की कदर ही नहीं है! तो बेटा बुआ ने भी तो कितने प्यार से खुद अपने हाथों से राखी और मिठाई बनाकर भेजी है तो क्या तुम्हें बुआ के प्यार और मेहनत की कदर है? इन सब में बुआ का प्रेम झलक रहा है! हां मम्मी.. मुझे माफ कर दो मुझे समझने में गलती हो गई, आगे से मैं ऐसा कभी नहीं कहूंगी!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
राखी – सांची शर्मा
5 और 8 साल के दो भाई अंकुर और अंकित अपनी मां से जिद कर रहे थे कि हमें भी बहन चाहिए जो सिर्फ हमारी हो। मां ने हंसते हुए बच्चों से पूछा कि अचानक क्या हुआ तुम दोनों को जो यह जिद लेकर बैठ गए। मां के पूछने पर दोनों कहने लगे कि हमारे सभी दोस्तों की बहन है और वे सब बताते हैं की बहन सबसे प्यारी होती है, उनकी बहन उन्हें चॉकलेट भी देती है, उनको डांट पड़ने से भी बचाती है और उनको बहुत सुंदर राखी भी बांधती है, इसलिए हमें भी एक बहन चाहिए जो हमें राखी बांधे और हमें बहुत प्यार करें।
मां उन दोनों की जिद पर उनको समझाते हुए बोली की राखी बांधने से मतलब होता है प्यार का रिश्ता जो हमारी मदद करें और हमारी रक्षा करें। जिन भाइयों के बहन नहीं होती वह राधा जी को अपनी बहन बनाते हैं और जैसे हम राधा जी से प्यार करते हैं वैसे ही हमें हर लड़की से प्यार और इज्जत का भाव रखना चाहिए। तुम दोनों भी मुझसे वादा करो कि हर लड़की का सम्मान करोगे और जरूरत पड़ने पर उनकी रक्षा भी करोगे। अब तुम दोनों यह राखी लो और राधा जी के आगे रखकर एक दूसरे को बांधों और सभी बहनों की रक्षा करने का वादा करो।
सांची शर्मा
हरिद्वार
स्वरचित एवं अप्रकाशित
राखी – अमिता कुचया
सेजल घर में आते ही बड़े भैया भाभी को पूछती है तब उसकी मां कहती- अरे तू तो इतने बड़े -बड़े बैग लाई है क्या इतना ले आई!!! तब सेजल मां को बडी़ भाभी के लिए साडी़ ,झूमके कंगन के साथ सुहाग का सामान और भाई के लिए पेंट शर्ट दिखाती है। तब उसकी मां कहती कि और छोटी भाभी के लिए क्या लाई तब केवल एक सस्ता सा सूट दिखाती है, तब मां उसकी कहती है इतना फर्क बेटी लेनदेन में…. तब सेजल कहती -“छोटे भैया क्या ही दे देते है राखी में….. केवल दो सौ रुपये ही देते हैं, और बड़े भैया को देखो पिछली बार उन्होंने मुझे सोने के झूमके के साथ दो हजार भी नेंग के दिए। तो क्यों न दूं!! “
तब उसकी मां कहती – सेजल इतना भेदभाव सही नहीं, ये बड़ी भाभी ही है, तेरे आने पर कमरे से निकलती तक नहीं थी और आवभगत तो छोटी भाभी ही करती है, आज उसकी आथिर्क स्थिति अच्छी नहीं है तो इतना मन में तेरे मैल है। तब वो कहती- हां मां तुमने मुझे सही समय पर टोक दिया ,नहीं तो मैं अपनी नजरों में छोटी हो जाती पर अब मैं दोनों को समान रूप से देखूंगी।
स्वरचित रचना
अमिता कुचया
राखी – मनीषा सिंह
रिंकी- पिंकी दो जुड़वा बहनें थीं आज दोनों लाॅन में उदास बैठीं बहन पिंकी से बोली यार —!कल राखी का त्यौहार है ! और हम कल यूं ही बैठी रहेंगी हर राखी के त्यौहार में हमारे घर चिंटू भैया (बुआ का लड़का) आते थे पर इस बार तो उन्हें एनडीए की ट्रेनिंग की वजह से बाहर जाना पड़ा।
काश हमारा भी कोई अपना भाई होता, जिन्हें हम राखी बांधते और खुशियां मनातीं ! हां— ये बात तो है! थोड़ी उदास होकर पिंकी बोली।
इन दोनों की बातें बच्चियों की” मां” मधु सुन रही थी।
वह पीछे से दोनों को थपथपाते हुए बोली अरे क्या हुआ—? तुम्हारा भाई नहीं है तो–! तुम दोनों हो ना ,एक दूसरे को राखी बांधने के लिए–! और एक दूसरे की रक्षा के लिए—! दोनों बच्चियों मां की गोद से लिपट गईं।
मनीषा सिंह