तो क्या मुझे मेरे मायके से हाथ धोना पड़ेगा ? – भाविनी केतन उपाध्याय 

” तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई वापस घर छोड़ कर आने की ? अभी शादी को दो तीन महीने ही हुए हैं और तुम तीन बार अपने पति से या अपने ससुराल वालों से कुछ ना कुछ लड़ झगड़ कर मायके वापस आ ही जाती है…. ऐसे कैसे जमेगी तुम्हारे पति और ससुराल वालों के साथ…!! और ना ही चलेगी गृहस्थी ” मनीष ने अपनी छोटी बहन गरिमा को डपटते हुए कहा ।

 

” तो क्या भैया इस घर में अब मेरी कोई जगह नहीं ? क्या विदा हुई तो क्या मुझे मेरे मायके से हाथ धोना पड़ेगा ? ” गरिमा ने गुस्से में कहा ।

 

दरअसल बात यह हुई है कि गरिमा की शादी उसके भाई ने उसी शहर में यह सोचकर कि अच्छे बुरे वक्त में भाई बहन एक दूसरे के साथ खड़े हो सकेंगे । मातापिता के ना रहने पर मनीष और उसकी पत्नी हेतल ने गरिमा का ख्याल खुद की बेटी की तरह ही रखा, खुद की बेटी और बेटा होने के बावजूद…. गरिमा शादी के बाद  पति और अपने सास ससुर जी से छोटी छोटी बातों में रुठ जाती और घर छोड़कर मायके आकर बैठ जाती, उसकी यहीं बात मनीष और हेतल को परेशान करती रही कि ऐसे ही चलता रहा तो कभी गरिमा में रचबस नहीं पाएगी। उसी बातों को लेकर गरिमा आज वापस आ गई तो मनीष का गुस्सा फट पड़ा अपनी बहन पर और उसने आज सबक सिखाना भी सोच लिया ।

 

” ऐसा ही चलता रहा तो तुम्हें मायके से तो क्या ?  कहीं अपने ससुराल से ही हाथ ना धोना पड़े ? ” मनीष ने गुस्से में कहा ।

 

” तो क्या मैं यह समझूं की आप और भाभी को मेरा यहां आना अखरता है ?” गरिमा ने आंखों में आसूं लिए कहा ।



 

” देख गरिमा,ना मुझे और ना ही तुम्हारी भाभी को तुम्हारा यहां आना अखरता है पर जब बार बार बिना मतलब की यानिकि बिना सिर पैर की छोटी छोटी बातों को लिए तुम रुठकर यहां आ जाती है वो जरुर अखरता है । मैं और तुम्हारी भाभी कभी भी यह नहीं चाहेंगे कि तुम दुखी हो कर इधर आओ ।

 

देखो बहन, जैसे तुम्हारे लिए सबसे एडजस्ट करना मुश्किल है उसी तरह उनके लिए भी तो तुम्हारे साथ एडजस्ट करने में मुश्किल होती होगी और यह सब बातों में धैर्य और संयम की जरूरत होती है जो तुम्हें कम है वो हमें पता है साथ ही उसे पर्याप्त समय भी देना पड़ता है ऐसे ही नहीं चलती गृहस्थी की गाड़ी …

 

तुम तो इधर रुठ कर आ जाती है कभी सोचा है कि तुम्हारे लिए वो लोग कितने परेशान होते हैं ? तुम्हें रोकने का प्रयास भी उनका मिथ्या हो जाता है …. जब तक तुम इधर पहुंच नहीं जाती उनके फोन सतत आते रहते हैं, तुम्हारी पल पल की खबर लेते रहते हैं वो लोग…. देख मेरी बहन, ऐसे ससुराल वाले और केयर करने वाला पति बड़ी मुश्किल से मिलते हैं अपनी नादानियों में इसे गंवा मत दो….सोचो, अगर तुम्हारी भाभी भी इस तरह से छोटी छोटी बातों पर हमें छोड़कर चली जाती तो क्या हमारी गृहस्थी रचबस सकतीं नहीं ना ? वो भी तो तुम्हारे से छोटी थी जब शादी कर के आई थी और हमारे से ज्यादा पैसे वाले भी था उसका मायका … फिर भी मां और तुम्हारे साथ साथ उसने मुझे भी समझा और एडजस्ट किया ना … 

देखो, मैं यह नहीं कहता कि हर बात और हर जगह पर एडजस्ट करो और ग़लत सहो पर शुरुआती दिनों में तो दोनों की तरफ से प्यार और अपनेपन से एडजस्ट करना और वक्त देना वो भी धैर्य के साथ बहुत जरूरी है। तुम्हारे साथ कुछ ग़लत होता है मेरे दिल के और मेरे घर के दरवाजे हमेशा खुले हैं तुम्हारे लिए…. दूसरी बात उन लोगों को भी कुछ ख्वाहिशें होंगी अपनी बहू को लेकर और तुम्हारी और दामाद जी की भी … बस सभी ख्वाहिशें चाहें पूरी हो ना हो पर उसे अधूरी भी मत छोड़ना ” मनीष ने गरिमा को सहलाते हुए कहा  ।

 

” भैया, मुझे माफ़ कर दो, मैं अपनी नादानियों की वजह से उनकी हर छोटी बड़ी बात पर रिएक्ट कर देती हूं और मुंह फूलाकर इधर आ जाती हूं। आप सही कह रहे हैं कि ऐसे ससुराल वाले और केयर करने वाला पति बड़ी मुश्किल से मिलता है, मैं उसे कभी नहीं खोऊगीं और दूसरी बात मेरी ख्वाहिश के साथ साथ उनकी ख्वाहिशें पूरी करने का प्रयास करुंगी। अच्छा चलती हूॅं भैया,अब हम सब साथ में ही आएंगे ” कहते हुए अपना पर्स उठाए गरिमा चल पड़ी अपने घर ….. मनीष उसे जाते हुए देखता रहा ।

 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद,

आप की सखी भाविनी

 

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