तिरस्कार या प्यार – ऋतु गर्ग

वह नव दंपति अभी कोई बच्चा अपनी जिंदगी में नहीं चाहते थे।

अभी कुछ माह पूर्व ही तो उनकी शादी हुई थी।

यह एक और आफत!

हां !यह आने वाले बच्चों को समय से पहले आने वाली आफ़त मान रहे थे।

       दोनों ने फैसला किया कि हम डॉक्टर सुनीता के पास चलते हैं क्योंकि हमें यह बच्चा अभी नहीं चाहिए।

    दोनों सुबह सुबह ही जब डॉक्टर सुनीता के क्लीनिक पहुंचे तो डॉक्टर साहिबा ने बहुत ही आदर के साथ उनकी आने का कारण पूछा उन दोनों ने सारी बात सच्चाई के साथ कही।

डॉक्टर ने बहुत ही समझदारी के साथ उन दोनों को समझाते हुए कहा कि यह तो भगवान का सुंदर उपहार है।

 तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे सपने साकार होंगे जो तुम्हारे जीवन को खुशियों से भर देंगे।

  डॉक्टर के समझाने पर वे दोनों घर आ गए।

   जैसे ही कुसुम में अपनी सास सविता को बताया कि अब उनके घर में किलकारियां गूंजने वाली है तो उसकी सास की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।




   रवि के जन्म के बाद और पूरे 27 साल बाद घर आंगन में खुशियां छाएगी।

सास ने दो बेटे को जन्म दिया था । जिसका उन्हें बहुत अभिमान था।

   वह आशा कर रही थी कि कुसुम का आने वाला बच्चा लड़का ही हो।

    बहुत ध्यान रखती और सोच कर खुश हो जाती की आने वाली औलाद लड़का ही होगा।

वह भी भगवान से प्रार्थना करती कि भगवान मुझे संतान के रूप में लड़का ही देना मेरी सास को खुश रखना।

   कभी-कभी कुसुम को डर लगता  कि यदि लड़की हो गई तो?

    सास सविता के मन में लड़कियों के प्रति बिल्कुल भी लगाव न था।

   वह हमेशा दोनों बेटों की परवरिश पर तो बहुत ध्यान देती मगर कुसुम जो घर की बहू थी उसे हमेशा बचा हुआ खाने के लिए प्रेरित करती।

हमेशा अपने दिनों को याद करती और बहू को उलहाना देती।

औलाद तो बेटा ही होना चाहिए।




मेरी सास के भी छः बेटे थे। बेटियां तो सिर्फ मां बाप पर बोझ होती है।

यह बातें सुनकर कुसुम का मन खिन्न हो जाता।

मगर वह कुछ नहीं कहती।

कुसुम में भी मन ही मन निर्णय  कर लिया था कि गर्भ में पल रहे शिशु की वह उचित देखभाल करेगी।

सभी की सोच उस पर इतनी हावी हो गई थी कि कोई दरवाजे पर आकर बोलता कि अमुक सामान हमें दे दो भगवान तुम्हें बेटा ही देगा ।

तो अंधविश्वास के अभिभूत कुछ भी देने के लिए तैयार हो जाती। कभी कभी हताश हो जाती थी।

लेकिन यह क्या ?

वह दर्द से कराह रही थी ।

उसे आनन-फानन में हॉस्पिटल ले जाया गया।

जहां उसने सुंदर और स्वस्थ कन्या को जन्म दिया।




सांस के तो जैसे सभी अरमानों पर पानी फिर गया।

घर में ऐसी उदासी का वातावरण बना लिया जैसे की किसी अनहोनी घटना ने दस्तक दे दी है।

कुसुम मन ही मन डर रही थी।

सास ने तो दो दिन से ढंग से बात भी नहीं की थी।

कुसुम के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

लेकिन जैसे ही ससुर ने आकर कुसुम के सिर पर हाथ रखा तो अचानक उसने अपनी भीगी आंखों से पलट कर देखा तो देखकर हैरान रह गई।

प पा पापा आप?

रूंधे गले से इतना ही बोल सकी।

हां! बेटा 

   वह बहुत ही आत्मीयता के साथ उसे समझा रहे थे।




 अपना दिल छोटा न करो। देखो तुम्हारे लिए रसगुल्ले ले कर आया हूं! हमारे घर तो लक्ष्मी आई है।

यह सुनकर वह बहुत विस्मित थी।

यह तो खुशी का दिन है।

आज मेरे बेटा बहू मां-बाप बने है और हम दादा दादी।

औलाद बेटा हो या बेटी दोनों ही समान होते हैं।

     बेटी की मां भी उतनी ही प्रसव पीड़ा सहन करती है जितना बेटा होने पर।

अरे !तुम्हें तो खुश होना चाहिए तुमने स्वस्थ संतान को जन्म दिया है।

तुम्हारी सास की चिंता नहीं करो मैं उसे समझा लूंगा।

 अपनी औलाद का भविष्य  संवारना प्रत्येक मां-बाप की जिम्मेदारी होती है।




सास की बातों को बुरा मत मानना वह दिल की बहुत अच्छी हैं।

   हम अपनी बेटी पोती को खूब पढ़ाएंगे।

आज यह सभी याद करके उनकी आंखों से बरबस ही आंसू लुढ़क पड़े।

वह ससुर की फोटो के आगे नतमस्तक थी। मन ही मन धन्यवाद दे रही थी।

पापा समान ससुर ने उसे बहुत संबल प्रदान किया था।

देखो पापा आज आप की पोती देश की सबसे बड़ी काबिल वकील बन गई है यह सब आपका ही आशीर्वाद है।

ऐसा लग रहा था कि फोटो में से पापा ससुर मुस्कुरा रहे थे उन्हें अपनी औलाद की परवरिश पर गर्व हो रहा था।

सास ने भी धीरे से आकर कुसुम के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा _बेटी मैंने बेटा बेटी में फर्क करके तुम्हें बहुत दुख दिया है, मुझे माफ कर दो।

सास बहू  दोनों एक दूसरे को प्यार भरी दृष्टि से देख रहे थे।

सास ने प्यार से कहा हमारी मैना तो लाखों में एक है।

भगवान सभी को एक ऐसी प्यारी सी बेटी जरूर दें।

#औलाद 

ऋतु गर्ग,सिलिगुड़ी,पश्चिम बंगाल

स्वरचित मौलिक रचना

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