“ नीना आज फिर से तुमने मेरे वॉलेट से पैसे निकाले… कितनी दफ़ा कहा है जब भी निकाला करो मुझे बता दिया करो।” ऑफिस से घर आकर मयंक पत्नी पर ग़ुस्सा करते हुए बोला
“ पर मैंने कोई पैसे नहीं निकाले कुछ दिनों से तुम मुझसे यही कह रहे हो अरे जब निकालूँगी तो बता दूँगी ….घर से पैसे ग़ायब हो रहे ये तो सोचने वाली बात है कहीं… ।” कहते कहते नीना वही पास में सोफे पर बैठ कर टीवी देखते अपने मौसेरे देवर को देख चुप हो गई
“ तो क्या पैसे ज़मीन निगल जाता या आसमान…सोच रहा था राशन वाले के पैसे दे आऊँगा पर जब पैसे गिने तो पूरे ही नहीं थे और तुम कह रही हो पैसे मैंने नहीं लिए …तो आख़िर वो गए किधर ?” सोच कर मयंक परेशान होने लगा एक बार मन में यह शंका भी हुई कहीं ये पैसे वो तो नहीं निकाल लेता पर ऐसे कैसे भाई पर शक करूँ
दूसरे दिन मयंक जब दुकानदार को पैसे देने गया तो देखता है एक नुक्कड़ की दुकान पर उसका भाई कुछ लड़कों के साथ सिगरेट फूंक रहा है मयंक धीरे से उधर गया तो उसके कानों में भाई की आवाज़ सुनाई दी,” तुम सब चिंता मत करो कल फिर मैं पैसे निकाल कर लाऊँगा।”
ये सुनते ही मयंक का पारा चढ़ गया पर उस वक्त वो कुछ नहीं बोला और जब वो दुकान से वापस आया तो ग़ुस्से में उसका चेहरा तमतमा रहा था
नीना के बार बार पूछने पर भी मयंक जवाब नहीं दे रहा था।
जैसे ही उसका भाई घर आया वो उसका हाथ पकड़ कर कमरे में ले गया और दरवाज़ा बंद कर दिया
“ ये सब क्या चल रहा है रमन… सच सच बता ये पैसे तेरे पास कहाँ से आ रहे तू हमारे घर में हमारे साथ रह कर हमारा ही गला काट रहा है … मैंने मौसी से पता कर लिया है तेरे पास एक फूटी कौड़ी नहीं है फिर तू ये सिगरेट कहाँ से लेता है और दुकानदार ने बताया तू वहाँ से बहुत कुछ खाने का सामान खरीद लेता है
और जो पैसे तू निकालता वही दे देता और जब नहीं होते तो खाते में लिखवा कर आ जाता है … मौसी के कहने पर ही मैंने तुम्हें यहाँ आने की इजाज़त दे दी थी
उन्हें लगा तुम कुछ काम धंधा करना सीखोगे पर तुम तो मेरे ही पैसे चोरी कर बाहर मटरगश्ती करने निकल जाते हो…अभी के अभी अपना सामान बाँधों और वापस गाँव चले जाओ मैंने मौसी को कह दिया है मैं भाई को रख सकता हूँ पर किसी ऐसे इंसान को नहीं जो साथ रहकर हमें ही ठग रहा हो ।” मयंक के ग़ुस्से को देखकर रमन चुपचाप सामान बाँधने लगा समझ गया पोल खुल चुकी है
रात की बस से ही उसे वापस भेज कर मयंक नीना से बोला,” पैसे रमन निकाल रहा था और मैं बेवजह तुम्हें कह रहा था।”
“ मयंक ये बात मुझे पहले से ही पता थी पैसे रमन निकाल रहा है पर कह नहीं पाई क्योंकि आप विश्वास नहीं करते कि कोई भाई ऐसे भी कर सकता है पर जब आपको खुद पता चल गया तो विश्वास करना आसान था… वैसे भी मौसी जी उनके आवारापन से परेशान हो कर ही यहाँ भेजी थी कि वो शायद आपकी देख रेख में सुधर जाएँगे पर जो इंसान अपनों का ही गला काट कर रहे उसके साथ रहना संभव तो नहीं ही था।” नीना ने कहा और चैन की साँस ली
दोस्तों बहुत बार कुछ रिश्तेदार ऐसे भी निकल जाते हैं जो कहने को तो अपने होते है पर हमारे साथ रहकर हमें ही ठगने लगते हैं…पता लगने पर तकलीफ़ भी होती है और उसपर आँख बंद करके रहा भी नहीं जा सकता ।
रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा।
धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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