ठेंगना (कहानी ) – डाॅ उर्मिला सिन्हा

डाॅ उर्मिला सिन्हा

      इस भरे -पूरे परिवार में ..ठेंगना और इसके जन्मदाता की जरा सा भी इज्जत नहीं…कहने को सभी सगे…किंतु ठेंगना के पिता का अर्द्धशिक्षित होना ..मां का साधारण रंग-रुप ..मोट-महीन सब घरेलु कार्य करना ..उसपर ठेंगना जैसा पुत्र..चपटी नाक ,तवे जैसा रंग ,कंजी आंखें और लम्बाई सामान्य से कम।

    मां-बाप के जिगर का टुकडा़ ..पूरे घरवालों के लिये हंसी का पात्र था..उसके कद-काठी ..रंग-रुप को लेकर सभी मजाक उडा़ते..”यह देखो आ रहा है बावन वीर ठेंगन महाराज। “

      सभी हो- हो कर हंस पड़ते साथ में ठेंगना भी ठी-ठी करता .

      मां ने अपने बेटे का नाम रखा ठाकुर प्रसाद,”इसी बहाने दिन भर भगवान का नाम होठों पर रहेगा..”और दुनिया वालों ने नामकरण कर दिया”ठेंगना.”

  परिवार के अन्य कमाऊ..पढे़ लिखे ,पैसे वाले बच्चों की ठाट ही निराली थी ,”यह चाहिये.”

 “वह मुझे लेना ही है।”

  “यह करना है,वहां जाना है ..”अकड़ राजा- महाराजाओं की .

  वहीं ठेंगना के माता-पिता अशिक्षित,निर्धन.. उपेक्षित अवश्य थे किंतु समय की नजाकत समझते थे…उन्हें जो भी समय मिलता अपने बेटे ठेंगना को पढाने..चरित्र-विकास .,अच्छी-अच्छी शिक्षा देने में लगाते.




   समय ने पलटा खाया ..परिणाम सामने है ..आज ठेंगना गांव के सरकारी स्कूल में पढकर ,गुरुओं के सानिंध्य और स्वाध्याय से बैंक में चयनित हो गया.

“मां पिताजी मेरा चयन बैंक में हो गया..”खुशी से नाच उठा .

” मेरा लाल..ठाकुर प्रसाद ।”

माता-पिता आनंद विभोर ,गद- गद हो गये।

   “वाह ..आज ठेंगनवा.. ना..ना..ठाकुर प्रसाद ने अपने माता-पिता ही नहीं वरन गांव-जवार का नाम भी रौशन कर दिया।”

  लोग बधाईयां देने लगे..वहीं घर के अन्य छह फुट्टे अपने गुरुर ..ओछी सोच ..दुसरों का मजाक उडाने वाले हंसी के पात्र बने हुए हैं ।

   क्योंकि वे पढे़ जरुर महंगे अंग्रेजी स्कूल में …सुख -सुविधाओं के बीच लैकिन अपने घमंड,अधछेडे़ ज्ञान के बल पर किसी प्रतियोगिता में सफल नहीं हुए..

“हाय,हमारा भाग्य..”पैसे वालों के पैर के नीचे की धरती खिसक गई.

  बुजुर्ग ब्रह्मलीन हुए..जो रह गये उनके न गांठ में धेला..न शरीर में पहले वाली शक्ति..

“गढा़ हुआ घास कितने दिन चलेगा। “

  छह फुट्टों को ऐश आराम..में कमी नहीं..किंतु आमदनी नादारद..

  वहीं ठेंगना उर्फ ठाकुर प्रसाद..के साधारण रुप-रंग को कोई नहीं देखता..उसके मां-बाप की निर्धनता बीते दिनों की बात हो गई  ।तिरस्कार करने वाले  मुँह के बल गिरे।

इसे कहते हैं…  समय का पहिया।

   सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना-डाॅ उर्मिला सिन्हा©®

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