The Hidden Pain-श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

“माई मैं जा रही हूॅंं।” कस्बे के सरकारी स्कूल में टीचर प्रतिभा ने घर का गेट खोलते हुए कहा।

“अरे! रुक लाडो। इतनी हड़बड़ी में कहाॅं भागे जा रही है?”

“स्कूल जा रही हूॅंं, माई।”

“लेकिन, इत्ती सुबह-सुबह। अभी तो 6:00 बजे हैं। स्कूल तो 8:00 बजे लगे हैं ना!”

“हाॅं माई। लेकिन, आज हमारे स्कूल में बहुत खास लोग आने वाले हैं। उनके स्वागत की तैयारी के लिए जल्दी जाना है।”

“ठीक है। लेकिन, घर से खाली पेट नहीं जाते, लाडो। अपशगुन होता है। दही, रोटी खाकर जा।”

तब तक प्रतिभा के बाबूजी भी वहाॅं आ गए। “कौन आ रहा है बिटिया?”

“बाबूजी, प्रसिद्ध समाजसेवी रामलाल जी आ रहे हैं। वे आज स्कूल में बच्चियों को वजीफा बाटेंगे और वाटर कूलर और पंखों का भी दान करेंगे। उनके स्वागत की पूरी जिम्मेवारी मेरे ऊपर ही है। अच्छा माई, देख मैंने नाश्ता पूरा खत्म कर लिया। अब मैं निकलती हूॅं। देर हो रही है। कहकर वह फटाफट स्कूल के लिए निकल गई।

स्कूल का सारा काम निपटा कर आते-आते उसे दोपहर हो गई। अभी वह घर में आकर सुस्ता ही रही थी कि अचानक अचानक दरवाजे के जोर-जोर से खटखटाने की आवाज़ आई | इतनी गर्मी में कौन आ गया सोचते हुए प्रतिभा के बाबूजी, (दीनदयाल जी) दरवाजे की ओर बढ़े,दरवाजा खोलते ही उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ।सामने शहर के नामी सेठ और समाजसेवी रामलाल जी खड़े थे।

“इतने बड़े सेठ का मुझसे क्या काम?” अभी वे ये सोच ही रहे थे कि सेठजी की आवाज़ से उनकी तन्द्रा भंग हुई “मैं, अंदर आ जाऊँ दीनदयाल जी?”

अंदर आते ही उन्होंने कहा “देखिये  दीनदयाल जी, मैं घुमाफिरा बात नहीं करूँगा। मुझे आपकी बिटिया प्रतिभा अपने बेटे आकाश के लिए बहुत पसंद आ गयी है।आज स्कूल में इसकी कार्यकुशलता और प्रबंधन देखकर मैं मन ही मन इसे अपनी बहू मान चुका हूँ। बस,अब आपकी हाँ का इंतजार है।”

ये सुनकर दीनदयाल जी भौंचक्के रह गए ओर बोले “लेकिन सेठजी आपका और मेरा क्या मुकाबला?” 

“दीनदयाल जी,मैं ये ऊँच-नीच, अमीर-गरीब को नहीं मानता। यदि आपकी हाँ, हो तो मैं तो चाहता हूँ कि इसी हफ्ते यह शुभ काम हो जाए।”

 “ये तो प्रतिभा की खुशकिस्मती है लेकिन, इतने कम समय में तैयारी…..?”

“आप तो बस हाँ कर दें, बाकी सब हम पर छोड़ दें।” ये कहते हुए उन्होंने शगुन के कंगन प्रतिभा के हाथों में पहना दिए |

दीनदयाल जी और पूरे परिवार की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था क्यूँकि, अमीर होने के साथ ही साथ रामलाल जी और उनका परिवार बहुत ही धार्मिक,दयालु और जरूरतमंदो की मदद करने वाला था। महिलाओं का तो वे विशेष सम्मान करते थे।शहर के कई स्कूल-कॉलेज, हॉस्पिटल्स, विधवा आश्रम, अनाथ आश्रम उनके द्वारा संचालित थे। दीनदयाल जी बहुत खुश थे कि प्रतिभा इतने अच्छे और सच्चे परिवार की बहू बन रही है।

नियत समय पर काफी धूमधाम से शादी हुई और प्रतिभा अपने नए घर ‘रामसदन’ आ गयी। ससुराल में सभी उसे बहुत प्यार करते थे। उसका पति आकाश तो उसपर जान छिड़कता था। लेकिन घर पर रहते-रहते  प्रतिभा बोर होने लगी। इसलिए उसने अपने ससुर से कहा “पिताजी, मैं बच्चों को पढ़ाना फिर से शुरू करना चाहती हूॅंं। घर में बैठे-बैठे बोर हो जाती हूॅंं।”

“अरे! ऐसी बात है तो तुम मेरे साथ चलो। समाज सेवा करो।जरूरतमंदों की मदद करो। आज कुछ गरीब बच्चियों का सामूहिक विवाह है। चलोगी?”

“जी, पिताजी इसी प्रकार वे रोज प्रतिभा को अपने साथ कभी अनाथ आश्रम, कभी विधवा आश्रम ऐसी अलग-अलग जगहों पर ले जाते। ससुर जी की समाज सेवा देखकर प्रतिभा का सम्मान उनके प्रति बढ़ता ही जा रहा था। वे प्रतिभा से हमेशा कहते “आकाश को तो इन सब चीजों में कोई इंटरेस्ट नहीं है। मेरी समाज सेवा की विरासत तुम्हें ही संभालनी है।” 

इसी तरह दिन बीत रहे थे। फिर एक दिन प्रतिभा को पता चला कि वह माॅं बनने वाली है। उसके अंदर नए जीवन की कोंपल फूट पड़ी है। यह सुनते ही पूरे घर में खुशी की लहर फैल गई। सभी उसका बहुत ज्यादा ध्यान रखने लगे।खास कर उसके ससुर रामलाल।

प्रतिभा की प्रेगनेंसी को 3 महीने पूरे हो चले थे। एक दिन वह कमरे में आराम कर रही थी तभी उसकी सास कमरे में आई

“सो रही हो क्या बहुरिया?”

“नहीं माॅंजी, ऐसे ही लेटी हूॅंं। आइए ना बैठिए।”

“मैं यहाॅं बैठने-वैठने नहीं आई हूॅं। अपना सामान पैक करो और पीहर जाने की तैयारी करो। अपना सारा जरूरी सामान रख लेना। अब तुम यहाॅं डिलीवरी के बाद ही आओगी।” वह कठोर शब्दों में बोली।

“यह आप क्या कह रही हैं माॅंजी!”

“सही कह रही हूॅं।हमारे यहाॅं की रीत है। अभी 1 घंटे में तुम्हें निकलना है। मैं ड्राइवर को बुला देती हूॅं।”

“लेकिन, माॅंजी ऐसी कोई रीत के बारे में तो आपने पहले बताया नहीं। कल मेरा डॉक्टर से चेकअप है और कल से ही नवरात्रि पूजन भी शुरू हो रहा है जिसकी जिम्मेदारी पिताजी ने मुझे दी है। पिताजी भी यहाॅं नहीं है। देवी माॅं की मूर्ति लाने बाहर गए हैं। उनके पीछे से मैं सारी तैयारियों को छोड़कर ऐसे कैसे जा सकती हूॅंं?”

“तैयारियों की चिंता मत कर। बची हुई सारी तैयारियाॅं मैं कर दूॅंगी। तू बस यहाॅं से जाने की तैयारी कर।”

“नहीं माॅंजी, मैं कहीं नहीं जाऊॅंगी। मैं नहीं मानती ऐसी किसी रीत को। बाबूजी आने वाले बच्चे का कितना चाव कर रहे हैं।मेरा कितना ध्यान रखते हैं और आप मुझे उनके पीछे से डिलीवरी के लिए मायके भेज रही है। पिताजी इसके लिए कतई तैयार नहीं होंगे। कल सुबह पिताजी के आए पहले मैं कहीं नहीं जाऊॅंगी।” प्रतिभा ने दृढ़ता से कहा।

“अरी! बावली तू समझती क्यों नहीं। अगर अपने बच्चे को बचाना चाहती है तो उनके वापस आने से पहले यहाॅं से चली जा।”

“क्या! क्या मतलब है माॅंजी आपका? आपको पता भी है आप यह क्या बोल रही है!” प्रतिभा ने अपनी सास को झकझोरते हुए कहा।

“हाॅं, अच्छी तरह पता है क्या बोल रही हूॅं।मैं तेरे से विनती कर रही हूॅं कि मेरी अजन्मी पोती को बचा ले। यदि तू यहाॅं रही तो वह दरिंदा (रामलाल) मेरी पोती को भी उसी तरह मार डालेगा जिसतरह उसने मेरी तीन-तीन अजन्मी बच्चियों को मेरी कोख में ही मार डाला था।” कहते-कहते हुए बिलख पड़ी। उनकी सारी व्यथा, उनका सारा अनकहा दर्द ऑंसुओं के द्वारा बहे जा रहा था।

यह सब सुनकर प्रतिभा स्तब्ध रह गई उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ लेकिन फिर उसने किसी तरह खुद को संभालते हुए पूछा

“लेकिन माॅंजी, आपको कैसे पता चला कि वो मेरे अजन्मे बच्चे को मारना चाहते हैं?”

“आज सुबह जब मैं पूजा के लिए फूल लाने बगीचे में गई तो वह दरिंदा वही झूले पर बैठा फोन पर डॉक्टर से बात कर बच्ची की हत्या का षड्यंत्र रच रहा था। उसने डॉक्टर को पैसे देकर बच्चे की लिंग जाॅंच कर कर यह पता कर लिया है कि आने वाला बच्चा लड़की है और अब उसने उसे मारने की पूरी प्लानिंग कर ली है।

कल नवरात्रि की पूजा के बाद जब तुम डॉक्टर के पास चेकअप के लिए जाओगी तो वह डॉक्टर तुम्हें इंजेक्शन देकर बेहोश करके बच्ची को तुम्हारी कोख में ही मार देगा। उनकी प्लानिंग सुनते ही मेरे होश उड़ गए मैंने किसी तरह खुद को संभाला और उनके बाहर जाते ही मैं तेरे पास आ गई तुझे यहाॅं से तेरे पीहर भेजने ताकि तेरे साथ वह सब ना हो जो मेरे साथ हुआ।”

“पर माॅंजी, वो तो महिलाओं का कितना सम्मान करते हैं। उनके लिए कितनी संस्थाऍं खोल रखी हैं। फिर यह!”

“सब दिखावा है बहुरिया। वह औरतों का कोई सम्मान-वम्मान नहीं करता। तुम्हें नहीं पता,वह रोज ही मेरे ऊपर हाथ उठाता है। इस घर में मेरा दम घुटता है। लेकिन, मैं कुछ नहीं कर पाती। तुझे भी अपने साथ-साथ इसलिए रखता है ताकि समाज में यह दिखा सके कि एक गरीब, साधारण परिवार की लड़की को वह कितना मान और आदर दे रहा है। बहुरिया चली जाए यहाॅं से और बचा ले अपनी बच्ची को। उसका वह हाल न होने दे जो मेरी अजन्मी बच्चियों का हुआ।”उसकी सास ने रोते हुए कहा।

“कुछ नहीं होगा माॅंजी। आप मुझे सिर्फ इतना बताइए कि आकाश भी इन सब में शामिल है?” उसने काॅंपते हुए स्वर में पूछा।

“नहीं रे बहुरिया। उसे कुछ नहीं मालूम। वह तो सही मायने में एक बहुत अच्छा बेटा और पति है।”

यह सुनते ही उसने चैन की साॅंस ली “जल्दी चलिए माॅंजी। हमें आकाश को सारी सच्चाई बतानी होगी।” यह कहकर वह अपनी सास को लेकर आकाश के पास गई।

सारी सच्चाई जानकर आकाश के होश उड़ गए और उसने उनका साथ देने का निश्चय किया।

“माॅंजी, आप निश्चिंत रहिए। कुछ बुरा नहीं होगा। मैं कहीं नहीं जाऊॅंगी। मैं यही रहूॅंगी आपके और आकाश के साथ और अपनी बच्ची को भी बचाऊॅंगी।”

दूसरे दिन रामलाल देवी माॅं की मूर्ति लेकर आ गया। मूर्ति-स्थापना के बाद

जैसे ही वो माँ दुर्गा की आरती के लिए थाल लिए खड़ा हुआ, प्रतिभा ने आगे बढ़कर उसके हाथ से यह कहते हुए थाल छीन लिया कि “जिसके हाथ मासूम कन्याओं की हत्याओं से रंगे हो उसे माता की आरती का कोई अधिकार नहीं|”

अचानक हुए इस अपमान से वह तिलमिला उठा “तेरी इतनी हिम्मत” कहते हुए उसने अपना हाथ उठा लिया और प्रतिभा का गला दबाने लगा। वैसे भी वह प्रतिभा से इस बात के लिए बहुत चिढ़ा हुआ था कि उसकी कोख में एक लड़की है।

सभी लोग रामलाल का यह व्यवहार को देख चौंक पड़े, अचानक लोगों का ध्यान आते ही उसने अपना हाथ नीचे कर दिया। “हाथ क्यों नीचे कर लिया मुझे भी उसीतरह मार डालो जिसतरह अपनी तीनों बच्चियों को जन्म लेने से पहले ही मार डाला था” प्रतिभा चिल्लाई। 

“यह झूठ है। यह मुझ पर उल्टेसीधे आरोप लगा रही है।” रामलाल ने घड़ियाली ऑंसू बहाते हुए कहा| 

“बस करिए,और कितना झूठ बोलेंगे आप। माँ ने मुझे सब सच बता दिया है। आपका असली चेहरा सबके सामने आ चुका है।” पुलिस के साथ दोषी डॉक्टर को साथ लेकर आते हुए आकाश ने कहा | 

“इंस्पेक्टर साहब इस इंसान ने मेरी तीन बच्चियों को जन्म लेने से पहले ही गर्भ में मरवा दिया और आज मेरी अजन्मी पोती के साथ भी वही करने जा रहा था। साथ ही इसने अभी-अभी सबके सामने मेरी बहू की भी गला दबाकर हत्या करने की कोशिश की है। गिरफ्तार कर लीजिये इस दरिन्दे को।” सासु माँ ने आगे आते हुए कहा। उनकी और डॉक्टर की गवाही पर पुलिस ने रामलाल को गिरफ्तार कर लिया।

कुुुछ समय बाद प्रतिभा ने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया जिससे उसके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ छा गईं।

धन्यवाद

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#अनकहा दर्द

लेखिका- श्वेता अग्रवाल

धनबाद, झारखंड

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