ठंडी छाँव – कमलेश राणा

#मायका 

“मायका “शब्द के नाम से ही हर महिला के चेहरे की रौनक ही बदल जाती है।यह वह स्थान है जहाँ जीवन का सब से स्वर्णिम समय गुजरता है।बिल्कुल मस्ती से भरपूर,जिम्मेदारी से मुक्त,सब के स्नेह से सराबोर।

शादी के बाद तो इसकी एहमियत और भी बढ़ जाती है।जब भी मायके से बुलावा आता तो खुशी के मारे मेरी तो भूख भी चली जाती।

अब तो शादी को 38वर्ष हो गये हैं।ससुराल से मायके पहुँचने में सिर्फ़ एक घंटा ही लगता है,उसमें ही मम्मी का 2बार फोन आ जाता,”कहाँ आ गई,कितनी देर में घर आ जाएगी।”

भाई-भाभी का फोन,”दीदी,पास आ जाओ तो बता देना,हम रोड तक लेने आ जाएंगे।”

इतनी बेसब्री से इंतजार दिल को बाग-बाग कर देता है।मैं अक्सर शाम को ही पहुँचती।मम्मी के साथ ही साथ पड़ोस की भाभियाँ भी घर के बाहर कुर्सी पर बैठी मिलती।सब से गले मिलने के बाद ही अंदर जा पाती पर जब से मम्मी दूसरी दुनियाँ में चली गई दरवाजे की रौनक ही चली गई।

कहते हैं कि मायका तभी तक है जब तक माँ है लेकिन मेरे भाई-भाभी जितना प्यार मुझ से पहले करते थे आज उस से भी कहीं ज्यादा ही करते हैं।

रिश्तों की सही पहचान जरूरत और मुसीबत के वक्त ही होती है।आज से 10वर्ष पहले मैं गम्भीर बीमारी से जूझ रही थी उस वक़्त भाभी हमेशा कहती,”दीदी,आपका जब भी जितने दिन के लिए मन करे,आप यहीं रहो मेरे पास।”


सुबह ही पूछ लेती,”दीदी,नाश्ता क्या बना लूँ।खाना भी मेरी पसंद का ही बनता।रात को सोते समय दूध और पानी रखना भी कभी नहीं भूलती।”

उस समय हमारे पास कार नहीं थी तो जहाँ भी जाना होता भाई हमेशा कार लेकर तैयार रहता।

एक बार ट्रेन से treatment के लिए अकेली जा रही थी।

जब सुबह स्टेशन जाने लगे तो भाई बैग ले कर तैयार।मैने पूछा,”ये बैग क्यों ?”

बोला,”आप के साथ चल रहा हूँ न,कहीं आप को खून की  जरूरत पड़ी तो?”

दरअसल उस समय मेरी कीमोथेरेपी चल रही थी और उस समय कैसे हालात बन जाये,पता ही नहीं होता था।

भाभी ने कभी भी यह एहसास नहीं होने दिया कि मैं बीमार हूँ।तेल तक लगाया मेरे हाथ पैरों में।इतने जी जान से मेरा साथ दिया कि वो कठिन वक़्त कैसे गुजर गया पता ही नहीं चला।

मेरा परिवार तो हमेशा मेरे साथ खड़ा ही था पर मम्मी और भाई भाभी का योगदान भी कम नहीं रहा।उन सब के प्रयास से मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ।इस बात को 10साल बीत चुके हैं।

आज भी जब भी कभी जीवन की जिम्मेदारियों और टेंशन से मन वैरागी होने लगता है तो मैं मायके आ जाती हूँ और यहाँ आ कर मुझे “ठंडी छाँव “जैसा सुकून  मिलता है।अब तो 7साल का भतीजा भी जब भी फोन करता है तो,”बुआ जी आप कब आ रही हो,कहना नहीं भूलता।”

कमलेश राणा

ग्वालियर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!